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रोगों का निवारण भी होता है ‘योग निद्रा’ से

रोगों का निवारण भी होता है ‘योग निद्रा’ से

रोगों का निवारण भी होता है ‘योग निद्रा’ से

आध्यात्मिक नींद को ‘योग निद्रा’ कहते हैं। यह वह नींद है जिसमें जागते हुए सोना है। सोने और जागने के बीच की स्थिति ही ‘योग निद्रा’ है।

आध्यात्मिक नींद को ‘योग निद्रा’ कहते हैं। यह वह नींद है जिसमें जागते हुए सोना है। सोने और जागने के बीच की स्थिति ही ‘योग निद्रा’ है। यह अर्द्धचेतन जैसी स्थिति होती है। इसे किसी साधक विशेषज्ञ से सीखना चाहिए। योग निद्रा से तन और मन दोनों स्वस्थ रहता है। इससे रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, सिर दर्द, तनाव, पेट में घाव, दमा की बीमारी, गर्दन का दर्द, कमर का दर्द, अनिद्रा, अवसाद आदि में लाभदायक है। इसके चमत्कारिक लाभ हैं।

दिन के 24 घंटों में से 6-7 घंटे तो हम निद्रा में ही बिता देते हैं। नींद भगवान का सबसे बड़ा वरदान है जो थके हारे मनुष्य को अपनी गोद में लेकर आराम पहुंचाती है। यदि यह नींद हमारी समाधि बन जाए तो वो 6-7 घंटे बेहोशी में न बीतकर परमात्मा के चरणों में समर्पित हो जायेंगे। भक्ति परवान चढ़ने लगेगी, मानव का चोला सार्थक हो जाएगा।

प्रश्न यह उठता है कि इस नींद को समाधि बनाएं तो कैसे?

बहुत सरल तरीका है। योगी की तरह सोना सीख जाएं अर्थात् योग निद्रा का अभ्यास करने से रात्रि में समाधि का आनंद और दिन में सतत ध्यान का आनंद रस जीवन को पुलकित कर देगा।

  1. योग निद्रा के लिए पहले पूरा शरीर ढीला छोड़ते हुए आराम से सीधे लेट जाएं।
  2. मन ही मन ईश्वर को याद करें और उसने जो अपने नाम की लगन लगाने की प्रेरणा आपको दी है उसके लिए परमात्मा को धन्यवाद दें।
  3. शरीर को रिलैक्स करने के लिए गहरे लम्बे सांस लें और छोड़ें।
  4. शरीर के एक-एक अंग को मन की आंखों से देखें और मन ही मन शांत कहते हुए उसे शिथिल करते जाएं।
  5. इस क्रिया को सिर से प्रारम्भ करते हुए पैरों तक जाएं और फिर पैरों से वापस सिर तक लौटें।
  6. इसी अवस्था में सीधे लेटे हुए मन को अपनी नाभि में केन्द्रित कर लें।
  7. 7. एक खूबसूरत दृश्य की कल्पना करें कि आसमानों से जल की एक मोटी-सी बूंद आकाश से उतरी और नाभि से होकर उदर में समा गयी। इस जल के अमृत प्रभाव से वक्ष-मंडल में प्रेम और करुणा की ऊर्जा प्रवाहित होने लगी। उदर-मण्डल, हथेलियां, कंठ, सब ऊर्जा से भर रहे हैं। मुखमण्डल और सिर के ऊपरी भाग से ध्यान ऊर्जा अंदर प्रवेश कर रही हे। एनर्जी की बारिश हो रही है और मैं इसमें पूर्णतया भींगकर कर आनंदित हो रहा/रही हूं।
  8. आप आनंदित हैं अर्थात् आप ईश्वर से जुड़ चुके हैं। यही समय है उस परम प्रिय से मन की बात करने की। इसी क्षण प्रार्थना का बीज बो दीजिए, इच्छा प्रकट कर दीजिए और उस इच्छा को पूरा होते हुए दृश्यात्मक कीजिए। आप एक चुम्बकीय शक्ति से युक्त हैं और ब्रह्माण्ड से अपनी इच्छित वस्तु को अपनी ओर खींच रहे हैं आपकी झोली भर गयी और कृतज्ञता से आपकी अश्रुधारा बह कर आपके स्वामी के चरण पखारने लगेगी।
  9. सांसों पर मन को केन्द्रित करें और कुछ देर यूं ही स्थिर रहें।
  10. अब अपने तन का एहसास करते हुए हाथ-पांव को थोड़ा-थोड़ा हिलाएं, दोनों हथेलियों को नाभि केंद्र पर रखें और ऊर्जा दें।
  11. आज के अवसर के लिए धन्यवाद दें और बाएं करवट से उठ कर बैठ जाएं। अगर रात्रि का समय हो तो लेटे ही रहें। स्वयं ही गहरी नींद आ जाएगी और जब आप प्रातःकाल जागेंगे तो मन बहुत आह्लादित होगा। आपको लगेगा कि मैं कहीं की यात्रा से वापस लौटा हूं।

 

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