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गृहस्थ है तपोवन पर शान्ति के बिना प्रेम – सुख सम्भव नहीं

गृहस्थ है तपोवन पर शान्ति के बिना प्रेम – सुख सम्भव नहीं

गृहस्थ है तपोवन पर शान्ति के बिना प्रेम - सुख सम्भव नहीं

पति-पत्नी गृहस्थ रूपी रथ के दो पहिये हैं, ये चक्र हैं । इन दोनों चक्रों में समानता होनी चाहिए । लेकिन जिस धुरी में दोनों पहिये जुड़े होते हैं वह धुरी प्रेम है और प्रेम त्याग से, कुर्बानी से उत्पन्न होता है

गृहस्थ है तपोवन पर शान्ति के बिना प्रेम – सुख सम्भव नहीं

शान्ति के बिना सुख की कल्पना नहीं की जा सकती। सुख और शान्ति का जोड़ा है, दोनों को अलग नहीं रखा जा सकता। शान्ति है तो सुख है। शान्ति के लिए वाणी का संयम आवश्यक होता है। वाणी का असंयम ही द्वापर युग में महाभारत का कारण बना था।

पति-पत्नी के मधुर सम्बन्ध

शान्ति या अशान्ति के सारे बीज घर के भीतर विद्यमान होते हैं। सभी समस्याओं का समाधान घर के भीतर होता है, हरिद्वार में नहीं। आम जीवन में सुख-दुख के विभिन्न कारकों की चर्चा करते हुए उन्होंने पति-पत्नी के मधुर सम्बन्धों को पारिवारिक शान्ति का मुख्य आधार है । सुखी परिवार को सुखी समाज एवं समृद्ध राष्ट्र का मेरुदण्ड है।

जैसे  कई बार देखने में आता हैं कि किसी-किसी की टेबल पर इतनी फाइलें रखी रहती हैं, व्यक्ति उलझा रहता है। टेंसन में रहता है, काम सिमट नहीं पाता और व्यक्ति खोया-खोया सा रहता है।

ऐसा व्यक्ति जब घर पर आता है और पत्नी पूछती है क्या बात है, बड़े थके हुए लग रहे हो? तो उसे गुस्सा आता है। इसके बाद दोनों एक-दूसरे को कोसना शुरु कर देते हैं जिससे क्लेश हो जाता है।

ऐसे में वह व्यक्ति देर में सोता है, देर से उठता है। इसके बाद दफ्तर समय पर पहुंचने के लिए जल्दी-जल्दी भागता है। जल्दबाजी के चक्कर में रास्ते में किसी से टकरा जाए तो फिर सड़क पर अपनी बांह चढ़ाकर, गुनाह दूसरों पर डालेगा।

लापरवाही, आलस्य, जिद्द, अहंकार को दूर करना 

इसलिए टाल-मटोल करना, आज के काम को कल पर छोड़ना, परेशानी का ही कारण बनता है यह समझना चाहिए। स्वयं को स्वयं ही समझाइए। किसी को कल्याण की राह दिखाने के लिए ऊपर से अवतार नहीं आएगा। अपनी लापरवाही को, अपने आलस्य को और अपने जिद्द को, अहंकार को दूर करिए। इनसे इंसान कमजोर होता है, इसलिए शक्ति सम्पन्न बनने की कोशिश कीजिए। अपना बुद्घि बल, अपना शारीरिक बल, पारिवारिक बल बढ़ाइए, अपना धन बल, अपना जन बल बढ़ाइए, लगातार बढ़ाइए।

क्योंकि कमजोर को सब लोग दबाते हैं, सब लोग डराते हैं, सब लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। जीवन में कमजोर बनकर नहीं जीना, कमजोर बनकर नहीं रहना, बहादुर बनकर, निडर बनकर कर्म करना है यह तय कर लीजिए।

समय, अपनी, कर्म, व्  धर्म की कीमत समझिए

अपने समय की कीमत समझिए, अपनी कीमत समझिए, अपने कर्म की कीमत समझिए, अपने धर्म की कीमत समझिए। क्योंकि कोई भी नासमझी में किया गया कार्य, उठाया गया कदम, लिया गया निर्णय गलत ही होता है। उसके परिणाम सुखद नहीं होते।

पति – पत्नी गृहस्थ रूपी रथ के दो पहिये हैं, ये चक्र हैं । इन दोनों चक्रों में समानता होनी चाहिए । लेकिन जिस धुरी में दोनों पहिये जुड़े होते हैं वह धुरी प्रेम है और प्रेम त्याग से, कुर्बानी से उत्पन्न होता है । जिस घर में पति –पत्नी, परिवार के अन्य लोग त्याग को अपनाते है उन घरों में प्रेम अवश्य रहेगा

गृहस्थ आश्रम को एक तपोवन की संज्ञा दी जाये तो कोई गलत नहीं है । सुखी गृहस्थ के लिए वाचिक जप, उपांशु जप तथा मानसिक जप करना चाहिए ।