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सद्गुरु जिसके साथ चलें, वो दुःख कैसे पावे (गुरुपूर्णिमा विशेष)

सद्गुरु जिसके साथ चलें, वो दुःख कैसे पावे (गुरुपूर्णिमा विशेष)

सद्गुरु जिसके साथ चलें, वो दुःख कैसे पावे

सद्गुरु बोध करवाते हैं कि परमात्मा के साथ सम्बन्ध ही सच्चा और स्थायी सम्बन्ध है। गुरुपूर्णिमा की आप सभी को बहुत-बहुत बधाई।

सद्गुरु जिसके साथ चलें, वो दुःख कैसे पावे

सम्बुद्ध सद्गुरु सौभाग्य से मिलते हैं। नरेन्द्रनाथ स्वामी रामकृष्ण के यहां नौकरी मांगने गये थे, स्वामी जी ने कहा ‘‘जाओ अंदर मंदिर में, माँ काली से मांग लो।’’ नरेन्द्र अंदर जाते, नौकरी मांग ही न पाते, कई बार अंदर गये, खाली आ जाते, स्वामी जी ने कहा ‘‘तुम्हारा जन्म नौकरी के लिए नहीं हुआ। तुम्हें भारत के सोये लोगों को जगाना है।’’ गुरु की कृपा हुई, उनका आशीर्वाद मिला और नरेन्द्रनाथ स्वामी विवेकानन्द बन गये, सारे विश्व में उनकी ख्याति हुई। वह अमर हो गये, आगे तक याद किये जायेंगे। गुरुकृपा में बड़ा चमत्कार है।

सद्गुरु जिनके साथ चलें—, इसका अर्थ है जो शिष्य अपने जीवन में सद्गुरु के उपदेशों का पालन करता है, जीवन में उन्हें उतारता है, दुःख उसके पास नहीं आता। शिष्य जागृत हो जाता है। उसका विवेक, उसकी बुद्धि निर्मल हो जाती है। उसके विचार सात्विक हो जाते हैं, उसकी ईश्वर में आस्था बढ़ जाती है। वैसे व्यवहारिक दृष्टि से तो न गुरु के साथ बराबर पर चलना चाहिये, न ही आगे, हमेशा गुरु के पीछे चलना चाहिये। गुरु की बात को भी नहीं काटना चाहिए। गुरु की आंखों में आंखें डालकर बात नहीं करनी चाहिए, आंखें झुका कर बात करें। गुरु के सामने चेहरे पर कोमलता, विनम्रता और आदर के भाव होना जरूरी है।

गुरु ही पथ प्रदर्शक हैं, सच्चे मार्ग पर चलने की सर्वदा प्रेरणा देते हैं। गुरु से ही संसार का वास्तविक, सच्चा, कल्याणकारी ज्ञान मिलता है। गुरु के बिना मनुष्य का जीवन दिशाहीन है। तभी तो हमारी भारतीय परम्परा में गुरु की शरण में जाने की हर किसी को प्रेरणायें दी जाती हैं। योगीराज भगवान श्रीकृष्ण तक ने श्रीमद्भागवद् गीता में अर्जुन को गुरु की शरण में जाने का उपदेश दिया।

                तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।

                उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।। (4/34)

अर्थात् तुम गुरु के पास जाकर सत्य को जानने का प्रयास करो। उनसे विनीत होकर जिज्ञासा करो और उनकी सेवा करो। स्वरूप सिद्ध व्यक्ति  तुम्हें ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य का दर्शन किया है।

अर्जुन की मनः स्थिति उस समय भ्रम में थी, वह संशय में था, वह मोहग्रस्त था, उलझन में था, निराश था, अवसाद में था। कृष्ण ने उसे मार्ग बताया, जीवन का सत्य जानने के लिए गुरु की शरण में जाओ। वैसे उलझन की स्थिति में अर्जुन ने पहले ही भगवान श्रीकृष्ण से उसे अपना शिष्य बनाने की प्रार्थना की थी। अर्जुन ने कहा था-

                कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः

                पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।

                यच्छ्रेयः स्यन्निश्चितं ब्रूहि तन्मे

                शिष्यस्तेऽहंशाधि मां त्वां प्रपन्नम् ।। (2/7)

अर्थात् अब मैं अपनी दुर्बलता के कारण अपना कर्त्तव्य भूल गया हूँ  और सारा धैर्य खो चूका हूँ । ऐसी अवस्था में मैं आपसे पूछ रहा हूँ  कि जो मेरे लिए श्रेयस्कर हो उसे मुझे निश्चित रूप से बतायें। अब मैं आपका शिष्य हूँ  और आपका शरणागत हूँ । कृपया मुझे उपदेश दें।

अब दो प्रश्न पैदा होते हैं, एक तो गुरु कैसे हों और दूसरे शिष्य के गुरु के प्रति क्या भाव हों? गुरुगीता में भगवान शिव और माँ पार्वती का गुरु के बारे में विस्तृत संवाद है, मां गौरी के पूछे जाने पर भगवान शिव ने गुरु के सम्बन्ध में तीन बातें बताई, जो मूल हैं और महत्वपूर्ण हैं।

आदि गुरु अर्थात् सबसे पहले गुरु स्वयं परम पिता परमात्मा हैं। गुरु का सम्बन्ध आदि गुरु से होता है। परमात्मा वह सब शक्तियां गुरु को देते हैं जिनसे मानव कल्याण सम्भव हो।

सामान्य व्यक्ति  सांसारिक सम्बन्धों को ही स्थाई और सच्चे मानकर अपने सारे क्रियाकलाप करता है। जबकि सद्गुरु उसे सच्चे सम्बन्ध का बोध करवाते हैं कि परमात्मा के साथ सम्बन्ध ही सच्चा और स्थायी सम्बन्ध है। और तीसरे इस प्रकार गुरु मनुष्य को अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश में ले जाते हैं। उसे लौकिक और पारलौकिक ज्ञान देते हें। इससे मनुष्य को सत्य मार्ग पर प्रेरित कर उसके मनुष्य जीवन को अर्थपूर्ण बनाते हैं। विद्वत वाणी है-

ब्रह्मबीज के गुरु सन्धाता

शिष्य सराहे कृपा विधाता

शब्द देखने पढ़ने में समान्य लगते हैं, किन्तु इन आठ शब्दों में ब्रह्म अर्थात् परमात्मा, जो आदि गुरु है, उन्होंने कृपा करके सम्बुद्ध सद्गुरु की शरण दे दी, गुरु ने शिष्य पर कृपा की, उसे सन्मार्ग बताया और उसे जीवन में सच्चे अर्थों में जीना आ गया, तो शिष्य परमात्मा का धन्यवाद कर रहा है कि प्रभु आपकी कृपा से सद्गुरु मिले। तो इस पवित्र वाणी ने परमात्मा, गुरु और शिष्य के रिश्तों को सत्य शब्दों में संजो दिया। यह शब्द किसी उच्च कोटि के विद्वान के विवेक से निसृत सुन्दर पुष्प हैं, जिनमें इन तीनों (परमात्मा, गुरु और शिष्य) के रिश्तों की खुशबू आती है।

‘‘मन बेचे सतगुरु के पास, तिस सेवक के काहज रास’’ जिसने अपना चित्त गुरु चरणों से जोड़ लिया, उसके आठो चक्र जागृत हो जाते हैं। बस अपना मन गुरु को दे दो, पार हो जाओगे।

गुरुपूर्णिमा की आप सभी को बहुत-बहुत बधाई।।

Special spiritual meditation and yoga session will be conducted by Dr. Archika Didi

From 20th to 25th August, 2022

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