fbpx

पूर्णाहुति महोत्सव है विजयादशमी

पूर्णाहुति महोत्सव है विजयादशमी

पूर्णाहुति महोत्सव है विजयादशमी

कुल मिलाकर विजयादशमी का संबंध शक्ति से है। आइये! माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की साधना के साथ विजयादशमी पर्व मनायें और जीवन को निष्कंटक बनायें।

पूर्णाहुति महोत्सव है विजयादशमी

 

अक्सर लोग मनोकामना पूरी करने के लिए साधनाओं का रास्ता अपनाते हैं, पर पैसे-धन-सम्पत्ति से अधिक जरूरत रहती है जीवन जीने की सही शैली अपनाने की। साधनाओं का सुफल वास्तव में जीवन जीने के सही रास्ते के रूप में ही मिलता है।

झोपड़ी में रहकर भी राजा

धर्म-अध्यात्म के सभी पहलू जैसे ध्यान, जप, तप, यज्ञ, सभी सेवा-साधनायें जीवन को सही ढंग पर ले चलने की प्रेरणायें देते हैं, तब व्यक्ति झोपड़ी में रहकर भी राजा अनुभव कर सकता है। इस संदर्भ में नौ दिन चलने वाली नवरात्रि साधना का अत्यधिक महत्व है, नवरात्रि साधना में माँ आदि शक्ति जगदम्बा के नौ रूपों की साधना का

विधान है, जिससे दुनिया के लोगों को सदा हंसता- मुस्कुराता जीवन जीने का आशीष मिलता है। पूज्य महाराजश्री कहते हैं “नवरात्रि साधना से साधकों को धरती पर रहकर स्वर्ग जैसी अनुभूति करने की कृपा आशीर्वाद माँ आदि शक्ति से सहज मिलता है। माँ की कृपा से साधक सदैव खुश रहते हैं, संतुष्ट रहते हैं, उनके चेहरे सतत माँ जगदम्बा के प्रति आभार प्रदर्शित करते दिखते हैं, उनके अंतःकरण में धन्यवाद भाव की अनुभूति भरती है। जीवन के हर क्षण असीम कृपायें बरसती रहती हैं। इसीलिए नवरात्रि साधना भारतीय संस्कृति में शक्ति-साधना के विशेष महत्व के साथ मनाया जाता है।”

विजयादशमी है क्या ?

साधक नौ दिन तक माँ जगदम्बा की उपासना करते और दसवें दिन अपने अपने ढंग से विजयादशमी का महोत्सव मनाते हैं।

वास्तव में दशहरा पर्व भगवती ‘विजया’ के नाम पर ही विजयादशमी कहलाया। माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को विजय नामक मुहूर्त होता है। यह मुहूर्त सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है, इसलिये भी इसे विजयादशमी कहते हैं। आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये। स कालो विजये ज्ञेयः सर्वकार्यार्थसिद्धये।। कुल मिलाकर विजयादशमी का संबंध शक्ति से है। शक्ति के लिये दुर्गा की उपासना की जाती है। कहीं-कहीं तो यह त्योहार दस दिनों तक चलता रहता है।

अर्थात माँ जगदम्बा की साधना के साथ आश्विन मास शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर दशमी के दिन इस दशहरा पर्व की पूर्णाहुति होती है। प्रतिपदा के दिन रामलीला के साथ देवी भगवती की स्थापना की जाती है। आठ दिनों तक नियमपूर्वक देवी की पूजा, कीर्तन और दुर्गा पाठ, रामलीलायें होती हैं और दशमी को पूर्णाहुति की जाती है।

इस दौरान प्रायः लोग माता दुर्गा की शक्ति की पूजा, उपासना, आराधना, व्रत, नियम, जप-तप, यज्ञ-अनुष्ठान में लीन होते देखें जाते हैं। इन नौ दिनों माँ भगवती के सामने दुर्गा सप्तशती, देवी भागवत, पूजा ध्यान-आराधना से साधक आत्म शक्ति का अर्जन करते हैं। सनातन परम्परा में नौ दिन तक माँ भगवती के एक-एक स्वरूप का ध्यान करते हुए व्रत-उपवास, पूजन, अर्चन करना विशेष फलदायी माना जाता है।

इन नौ रूपों की साधना में

  1. प्रथम दिन ‘शैलपुत्री’ अर्थात् माँ नवदुर्गा के बालरूप शैलपुत्री का पूजन होता है। प्रथम दिन हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में एक वर्ष की कन्या के पूजन से नवरात्रि का शुभारम्भ होता है।
  2. नवरात्र के दूसरे दिन ‘द्वितीयं ब्रह्मचारिणी’ का ध्यान करते हुए सच्चिदानन्द स्वरूप की अनुभूति का विधान है।
  3. ‘तृतीयं चन्द्रघण्टेति’ तीसरे दिन तीन वर्ष की कन्या में आनन्ददायी चन्द्र का ध्यान करते हुये व्रत-उपवास पूजन-अर्चन का विधान है।
  4. ‘कूष्माण्डेति चतुर्थकम्’ नवरात्रें के चतुर्थ दिवस माँ कूष्माण्डा का ध्यान व्रत-उपवास-पूजन-अर्चन करते हैं।
  5. ‘पंचमं स्कन्दमातेति’ नवरात्र के पांचवे दिन स्कन्दमाता अर्थात् कार्तिकेय की माँ का ध्यान करते हुए पूजन करते हैं।
  6. ‘षष्ठं कात्यायनीति’ नवरात्र के छठे दिन माँ दुर्गा कात्यायनी के स्वरूप का ध्यान करते हुये नवदुर्गा की पूजा-आराधना अत्यधिक लाभप्रद होती है।
  7. सातवें दिवस ‘सप्तमं कालरात्रीति’ माँ के कालरात्रि स्वरूप का दर्शन करते हुए श्रद्धाभाव से माँ कालरात्रि के पूजन का विधान है।
  8. ‘महागौरीति अष्टमम्’ नवरात्र के आठवें दिन भगवती के महागौरी स्वरूप का पूजन करने का विधान है।
  9. नवरात्र के नवें दिन ‘नवमं सिद्धिदात्री’ नौ वर्ष की बालिका में सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाली मोक्षस्वरूपा माँ भगवती का ध्यान करते हुए व्रत-उपवास, अनुष्ठान की पूर्णाहुति की जाती है।

दशहरा पर्व को नौदुर्गा साधना का पूर्णाहुति महोत्सव भी कह सकते हैं। नौ रूपों में माँ आदिशक्ति के पूजन- अर्चन से साधक के व्यक्तित्व को पूर्णता मिलती है।

जीवन को निष्कंटक बनायें

शास्त्र में वर्णन है कि नवरात्रि साधना-अनुष्ठान यज्ञ और दान के बाद ही पूर्ण होते। अनुष्ठान का दशांश यज्ञ और ब्रह्मचारी, वृद्ध, गाय, गुरुकुल के विद्यार्थियों-आचार्यों व ब्राह्मणों को भोजन खिलाने से देवता व माता की कृपा से सर्वमंगल का मार्ग प्रशस्त होता है। यज्ञ के शेष भाग रूप में गाय, कुत्ता, चींटी, पक्षियों को भोजन खिलाने की भी परम्परा है। मान्यता है कि जैसे जैसे पवित्र कमाई के अंशदान से प्राणियों की भूख व प्यास रूपी व्याधि दूर होती है, उसी स्तर पर साधक के जीवन में विद्या, धर्म, तप, ज्ञान, मोक्ष आदि सभी नियम सधते हैं और उसका लोकमंगल जगता है। संकट कटते हैं और श्री, समृद्धि, यश, प्रतिष्ठा की बृद्धि होती है।

आइये! माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की साधना के साथ विजयादशमी पर्व मनायें और जीवन को निष्कंटक बनायें।

डॉ अर्चिका दीदी