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रोम-रोम में प्रभुनाम को बसायें, ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ का विज्ञान अपनायें

रोम-रोम में प्रभुनाम को बसायें, ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ का विज्ञान अपनायें

रोम-रोम में प्रभुनाम को बसायें, ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ का विज्ञान अपनायें इन दिनों पोलूशन लेवल इतना ज्यादा बढ़ गया कि सांस लेना व जीवन जीना मुश्किल हो रहा है, इससे तरह-तरह की कोरोना जैसी बीमारियां आ रहीं हैं। इसलिए अपने एनवायरमेंट के प्रति, अपने धरती के प्रति जागरूक होना आवश्यक हो गया है। भगवान श्रीकृष्ण हमें ब्रह्माण्ड व्यापी पर्यावरण के प्रति जागरूक ही तो करते हैं। हम उनकी पूजा तो करते हैं, परंतु क्या हम उनके विचारों को समझना चाहते हैं? जब श्रीकृष्ण ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ का संदेश देते हैं कि यह सारा विश्व ही हमारा परिवार है और इससे प्यार करना हमारा कर्तव्य है तो क्या हम उनके इस सूत्र के प्रति जागरूक हैं? जब कि भगवान श्री कृष्ण के एक-एक वाक्य, एक एक श्लोक, साइंटिफिक और लॉजिकल हैं। जब कहते हैं ‘‘वसुधैव कुटुंबकम्’’ इसका मतलब है कि हम विश्व भर के व्यक्ति सब जुड़े हुए हैं एक दूसरे के साथ। आध्यात्मिक रूप मंध ही नहीं साइंटिफिक लेवल फिर भी। देखा जाए तो यह कथन सत्य है, क्योकि आत्माएं जुड़ी हुई हैं परमात्मा से और हम एक दूसरे से आत्मा द्वारा जुड़े हुए हैं। विज्ञान की दृष्टि से देखें तो हम सभी का ”दय, हम सभी की सांसें, मन एक दूसरे के साथ जुड़े हैं।’’ यह सच है कि हमारा दिल धड़क रहा है। हार्ट ब्लड को बाहर पंप करता है, परंतु दिल की धड़कन पूरे यूनिवर्स के साथ रिलेट है। शरीर में समाये आयरन का विज्ञानः श्रीकृष्ण के वाक्य को साइंटिफिक लैंग्वेज से जोड़कर देखें तो हमें हैरानी होगी कि ‘‘हमारे दिल की धड़कन ब्रह्मांड में तारें से जुड़ी हुई है। यह बड़ी अजीब बात लगती है, पर सच है। इसी प्रकार हमारे अंदर का रक्त है, ब्लड है, देखते हैं कि हार्ट रक्त को पंप करके बाहर फेंकता है तो इसमें भी एक विराट विज्ञान है। क्योंकि पूरे शरीर में रक्त जब तक नहीं घूमेगा, तब तक हमें ऑक्सीजन नहीं मिलेगी। हम रक्त की संरचना को देखें , तो उसमें हिमोग्लोबिन है और हीमोग्लोबिन के अंदर भी एक छोटा सा मॉलीक्यूल होता है, जिसे हम हैम्बी बोलते हैं। हैम्बी के अंदर आयरन होता है। शरीर में आयरन कम हो जाए तो अनेमिया हो जाता है। कहेंगे हेमोग्लोबिन कम हो गया है, दवाई लीजिए। इससे थकान लगती है, भूख नहीं लगती है, वजन कम होने लगता है। यह आयरन जो हमारे हृदय में है, हमारे रक्त में है, यह यहां कैसे आया? तो उत्तर मिलता है कि यह आयरन भी आता है तारों से। तारों से कैसे आएगा? इसे समझते हैं ‘‘जब सुपरनोवास होते हैं, अर्थात् जब तारे फटते हैं, बनते हैं या जब आकाशगंगाओं का एक दूसरे में विलय होता है। अर्थात् अब जब वह आकाशगंगा एक दूसरे के साथ जुड़ती हैं, तो वहां हाइड्रोजन, हिलियम और भी जो एटम्स हैं। वैसे ज्यादातर तो हाइड्रोजन और हीलियम ही होते हैं। वे एक दूसरे के साथ बार-बार टकराते हैं, और इस टकराव से बार-बार सितारे बनते व टूटते हैं, इस टूटने से एक्सप्लोचन अस्तित्व के अंदर, ब्रह्मांड के अंदर आयरन की उत्पत्ति हुई और वही आयरन आपके हृदय में घूम रहा है। इस प्रकार आपके हृदय की धड़कन जुड़ी है इन तारों से, इस ब्रह्मांड से, ऐसे में भगवान यदि कह रहे हैं कि ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ तो वह यही विज्ञान है। शरीर के आक्सीजन का विज्ञानः इसी प्रकार हमारी सांसे भी ब्रह्मांड के साथ जुड़ी हुईं हैं। कहते हैं 3 बिलियन वर्ष पहले इस धरती पर ना कोई जीवन था, ना ही ऑक्सीजन थी। हम प्राणीगण तो थे ही नहीं। उस समय नाइट्रोजन एटमोस्टफेयर में घूम रही थी, बस उतनी ही नाइट्रोजन पृथ्वी पर थी। जबकि कार्बन डाइऑक्साइड बहुत ज्यादा थी। ऑक्सीजन तो थी ही नहीं। परंतु उस समय भी एक छोटा सा कण, एक छोटा सा सेल, जिसे हम ‘सैल्यूलर लाई, सिंगल लाइफ कहेंगे, वह था’ उससे साइनोबैक्टेरियम की उत्पत्ति हुई। सायनोबैक्टीरिया ने उस समय जितनी कार्बन डाइऑक्साइड थी उसको एक मैजिक के द्वारा ऑक्सीजन बनाना शुरू कर दिया। जिसे हम विज्ञान की भाषा में फोटोसिंथेसिस कहते हैं अर्थात् सूर्य की रोशनी और कार्बन डाइऑक्साइड को मिक्स करके ऑक्सीजन की उत्पत्ति कर देना। यह कार्य सायनोबैक्टीरिया ने किया। फिर ऑक्सीजन को समुद्रों में फैलाना शुरू किया और जीवन की उत्पत्ति होना शुरू हो गई। फिर पूरी ऑक्सीजन धरती के ऊपर घूमने लग गई और इस प्रकार पृथ्वी पर ऑक्सीजन का वातावरण बन गया। यह 900 विलीयन पूर्व की बात है। फिर थ्री हंड्रेड बिलियन वर्ष पहले ओजोन लेयर बनने लगी। सायनोबैक्टीरिया के कॉन्ट्रिब्यूशन से ओजोन लेयर बनी इस धरती के ऊपर। धीरे-धीरे इस धरती पर मल्टी सैल्यूलर लाइफ शुरू हुई। अर्थात् थोड़े बड़े जीव पैदा होने लगे, तत्पश्चात प्लांट्स आने लगे इस धरती के अंदर और आज हम सब अस्तित्व में हैं। अगर साइनोबैक्टीरिया उस समय ऑक्सीजन को न बनाते, तो शायद हम तो होते ही नहीं और वही साइनोबैक्टीरियल धीरे-धीरे प्लांट्स के रूप में, ट्रीस के रूप में, वृक्षों के रूप में आने लगे। आज वृक्ष अपने अंदर साइटोब्लास्फो फोटोसिंथेसिस करके जो आक्सीजन प्रोडड्ढूज करते हैं, वही ऑक्सीजन हमें मिलती है। हम कार्बन डाइऑक्साइड देते हैं वृक्षों को और वृक्ष हमें ऑक्सीजन देते हैं। इस प्रकार हमें ऑक्सीजन मिली और उन्हें कार्बन डाइऑक्साइड मिली। इस प्रकार हमारी सांस जुड़ी वृक्ष के साथ और वृक्ष की सांस जुड़ी हमारे साथ, तो हम सबकी सांसें एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई ही तो मानी जायेगीं। ये सब परमात्मा के विज्ञान द्वारा बड़े ही सूक्ष्म रूप से गुथा गया है। यदि हम अपने मन को देखें, तो मन भी जुड़ा हुआ है इस पूरे विश्व के साथ। ब्रह्माण्डीय सहअस्तित्व का विज्ञानः हम कंप्यूटर को देऽते हैं, कंप्यूटर, पियानो, हारमोनियम अथवा माइक बना, सब पुराने लोगों ने ऐसी जितनी खोजें कीं, उन सबकी विचारधारा, उन सबकी डेडीकेशन, उन सबने जो समर्पण भाव के साथ काम किया उसका भी महत्वपूर्ण अस्तित्व है जो एक पक्ष है। वह सब का सब वहां से वैचारिक व भाव स्तर पर चलता हुआ आया। दूसरा पक्ष कि कोई व्यक्ति आज पियानो सीख रहा है और पियानो में अपना जीवन लगा रहा है। किसी की उससे कमाई होती है, नाम होता है। इस प्रकार वर्षों पहले जिन लोगों ने डेडीकेशन के साथ इस खोज में मेहनत की, एक इंस्ट्रूमेंट आया, आज जो व्यक्ति इंस्ट्रूमेंट पियानो बजा रहा है उसकी विचारधारा भी साथ जुड़ी उन लोगों से, जिन्होंने उस इंस्ट्रूमेंट के ऊपर अपना वर्षों समय दिया। इन दोनों वर्गों की विचार प्रयास का परिणाम आज उन स्टूमेंटो के लोक महत्व में दिख रहा है। इस प्रकार हम जिस चीज के साथ आज जुड़े हैं, हम उसी चीज का जिन लोगों ने निर्माण किया है, उनसे भी जुड़े होते हैं। इस प्रकार इस संसार में कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है, जो एक दूसरे से नहीं जुड़ी है। ऐसा कह सकते हैं। यही कारण है भगवान अगर कहते हैं कि यज्ञ की भावना से निष्काम कर्म करो। इस धरती के लिए, इस ब्रह्मांड के लिए, इस यूनिवर्स के लिए तो भगवान के वचन के पीछे ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ का विज्ञान ही काम करता है और यही सत्य दिखता है। मतलब पूरा विश्व एक दूसरे के साथ जुड़ा हुआ है। हम सब एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। हम अपने हृदय से जुड़े हुए हैं, अपनी सांसो से जुड़े हुए हैं, मन से हमारी सारी चीजें जुड़ी हुई हैं। सृष्टि के अस्तित्व में आने से लेकर अब तक की एक लम्बी कड़ी है। इसमें से एक भी कण को निकालकर हम अस्तित्व हीन हो जायेंगे। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम इस प्रकृति के लिए, इस ब्रह्मांड के लिए हर कुछ करें। वसुधैव कुटुम्बक में कामनापूर्ति का विज्ञानः हम भगवान से मांगते हैं कि हमारी कामनाएं पूर्ण हो जाए, परंतु इस विश्व के लिए, इस प्रकृति के लिए क्या हमने सिर्फ पॉल्यूशन लेवल बढ़ाने पर जोर दिया? और ओजोन लेयर खराब किया। या हमने अपनी तरफ से कुछ कंट्रीब्यूशन दी। सोचिए यदि पृथ्वी पर सायनोबैक्टीरिया नहीं होते, सायनोबैक्टीरिया यह सोचते कि मैं ऑक्सीजन क्यों बनाऊं, तो शायद कभी भी इस धरती पर जीवन नहीं होता। आप और हम नहीं होते। इसलिए मैं चाहती हूं कि हम सब भगवान श्री कृष्ण को पूजें, परंतु उनके वचनों पर अमल करते हुए इस प्रकृति के लिए कुछ योगदान भी करें, हम वृक्ष लगाएं, अपनी तरफ से इस धरती को प्रेम दें। हम मनुष्य हैं इसलिए दूसरों की आवश्यकताओं, सहयोग को समझ सकते हैं। इस नॉलेज का यूज करके जरूर हम इस धरती को स्वर्ग बनाएं, स्वच्छ बनाएं। यदि हम इन कार्यों को कर पाएं, तो भगवान श्री कृष्ण के वचनों को सत्य कर पाएंगे। मेरी अपेक्षा है कि हम इस धरती को हरा-भरा करने के लिए जरूर कुछ योगदान करें। हम यह कार्य यज्ञ की भावना से करें, हमें यह पृथ्वी बहुत कुछ देती है, आकाश देता है, जल देता है, अग्नि देती है, सब दे रहे हैं, सब देवता है, तो हम मनुष्य केवल लेने पर ही क्यों उतारू हों। देना भी जाने। गौ माता, प्रकृति वृक्षारोपण, गरीबों से हम जुड़े, तो हम अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वर्ग जैसी धरती छोड़कर जाएंगे। हमारी जो पहले की पीढ़ियां थी, उन्होंने इस धरती को एक विशिष्ट समर्पण दिया, जिससे आज हम इस धरती का सौंदर्य देख सकते हैं। आगे जो हम इस धरती को देंगे, उससे हमारी आगे आने वाली पीढ़ियां धन्य होंगी। आइये इस दिशा में आज हम सब संकल्प लें।

हमारी जो पहले की पीढ़ियां थी, उन्होंने इस धरती को एक विशिष्ट समर्पण दिया, जिससे आज हम इस धरती का सौंदर्य देख सकते हैं। आगे जो हम इस धरती को देंगे, उससे हमारी आगे आने वाली पीढ़ियां धन्य होंगी।

रोम-रोम में प्रभुनाम को बसायें, ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ का विज्ञान अपनायें

इन दिनों पोलूशन लेवल इतना ज्यादा बढ़ गया कि सांस लेना व जीवन जीना मुश्किल हो रहा है, इससे तरह-तरह की कोरोना जैसी बीमारियां आ रहीं हैं। इसलिए अपने एनवायरमेंट के प्रति, अपने धरती के प्रति जागरूक होना आवश्यक हो गया है। भगवान श्रीकृष्ण हमें ब्रह्माण्ड व्यापी पर्यावरण के प्रति जागरूक ही तो करते हैं। हम उनकी पूजा तो करते हैं, परंतु क्या हम उनके विचारों को समझना चाहते हैं? जब श्रीकृष्ण ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ का संदेश देते हैं कि यह सारा विश्व ही हमारा परिवार है और इससे प्यार करना हमारा कर्तव्य है तो क्या हम उनके इस सूत्र के प्रति जागरूक हैं? ||‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ का विज्ञान अपनायें||

जब कि भगवान श्री कृष्ण के एक-एक वाक्य, एक एक श्लोक, साइंटिफिक और लॉजिकल हैं। जब कहते हैं ‘‘वसुधैव कुटुंबकम्’’ इसका मतलब है कि हम विश्व भर के व्यक्ति सब जुड़े हुए हैं एक दूसरे के साथ। आध्यात्मिक रूप मंध ही नहीं साइंटिफिक लेवल फिर भी। देखा जाए तो यह कथन सत्य है, क्योकि आत्माएं जुड़ी हुई हैं परमात्मा से और हम एक दूसरे से आत्मा द्वारा जुड़े हुए हैं। विज्ञान की दृष्टि से देखें तो हम सभी का ”दय, हम सभी की सांसें, मन एक दूसरे के साथ जुड़े हैं।’’ यह सच है कि हमारा दिल धड़क रहा है। हार्ट ब्लड को बाहर पंप करता है, परंतु दिल की धड़कन पूरे यूनिवर्स के साथ रिलेट है।

शरीर में समाये आयरन का विज्ञान

श्रीकृष्ण के वाक्य को साइंटिफिक लैंग्वेज से जोड़कर देखें तो हमें हैरानी होगी कि ‘‘हमारे दिल की धड़कन ब्रह्मांड में तारें से जुड़ी हुई है। यह बड़ी अजीब बात लगती है, पर सच है। इसी प्रकार हमारे अंदर का रक्त है, ब्लड है, देखते हैं कि हार्ट रक्त को पंप करके बाहर फेंकता है तो इसमें भी एक विराट विज्ञान है। क्योंकि पूरे शरीर में रक्त जब तक नहीं घूमेगा, तब तक हमें ऑक्सीजन नहीं मिलेगी। हम रक्त की संरचना को देखें , तो उसमें हिमोग्लोबिन है और हीमोग्लोबिन के अंदर भी एक छोटा सा मॉलीक्यूल होता है, जिसे हम हैम्बी बोलते हैं।

हैम्बी के अंदर आयरन होता है। शरीर में आयरन कम हो जाए तो अनेमिया हो जाता है। कहेंगे हेमोग्लोबिन कम हो गया है, दवाई लीजिए। इससे थकान लगती है, भूख नहीं लगती है, वजन कम होने लगता है। यह आयरन जो हमारे हृदय में है, हमारे रक्त में है, यह यहां कैसे आया? तो उत्तर मिलता है कि यह आयरन भी आता है तारों से।

तारों से कैसे आएगा? इसे समझते हैं ‘‘जब सुपरनोवास होते हैं, अर्थात् जब तारे फटते हैं, बनते हैं या जब आकाशगंगाओं का एक दूसरे में विलय होता है। अर्थात् अब जब वह आकाशगंगा एक दूसरे के साथ जुड़ती हैं, तो वहां हाइड्रोजन, हिलियम और भी जो एटम्स हैं। वैसे ज्यादातर तो हाइड्रोजन और हीलियम ही होते हैं।

वे एक दूसरे के साथ बार-बार टकराते हैं, और इस टकराव से बार-बार सितारे बनते व टूटते हैं, इस टूटने से एक्सप्लोचन अस्तित्व के अंदर, ब्रह्मांड के अंदर आयरन की उत्पत्ति हुई और वही आयरन आपके हृदय में घूम रहा है। इस प्रकार आपके हृदय की धड़कन जुड़ी है इन तारों से, इस ब्रह्मांड से, ऐसे में भगवान यदि कह रहे हैं कि ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ तो वह यही विज्ञान है।

शरीर के आक्सीजन का विज्ञान

इसी प्रकार हमारी सांसे भी ब्रह्मांड के साथ जुड़ी हुईं हैं। कहते हैं 3 बिलियन वर्ष पहले इस धरती पर ना कोई जीवन था, ना ही ऑक्सीजन थी। हम प्राणीगण तो थे ही नहीं। उस समय नाइट्रोजन एटमोस्टफेयर में घूम रही थी, बस उतनी ही नाइट्रोजन पृथ्वी पर थी। जबकि कार्बन डाइऑक्साइड बहुत ज्यादा थी। ऑक्सीजन तो थी ही नहीं। परंतु उस समय भी एक छोटा सा कण, एक छोटा सा सेल, जिसे हम ‘सैल्यूलर लाई, सिंगल लाइफ कहेंगे, वह था’ उससे साइनोबैक्टेरियम की उत्पत्ति हुई। सायनोबैक्टीरिया ने उस समय जितनी कार्बन डाइऑक्साइड थी उसको एक मैजिक के द्वारा ऑक्सीजन बनाना शुरू कर दिया।

जिसे हम विज्ञान की भाषा में फोटोसिंथेसिस कहते हैं अर्थात् सूर्य की रोशनी और कार्बन डाइऑक्साइड को मिक्स करके ऑक्सीजन की उत्पत्ति कर देना। यह कार्य सायनोबैक्टीरिया ने किया। फिर ऑक्सीजन को समुद्रों में फैलाना शुरू किया और जीवन की उत्पत्ति होना शुरू हो गई। फिर पूरी ऑक्सीजन धरती के ऊपर घूमने लग गई और इस प्रकार पृथ्वी पर ऑक्सीजन का वातावरण बन गया। यह 900 विलीयन पूर्व की बात है। फिर थ्री हंड्रेड बिलियन वर्ष पहले ओजोन लेयर बनने लगी।

सायनोबैक्टीरिया के कॉन्ट्रिब्यूशन

सायनोबैक्टीरिया के कॉन्ट्रिब्यूशन से ओजोन लेयर बनी इस धरती के ऊपर। धीरे-धीरे इस धरती पर मल्टी सैल्यूलर लाइफ शुरू हुई। अर्थात् थोड़े बड़े जीव पैदा होने लगे, तत्पश्चात प्लांट्स आने लगे इस धरती के अंदर और आज हम सब अस्तित्व में हैं।

अगर साइनोबैक्टीरिया उस समय ऑक्सीजन को न बनाते, तो शायद हम तो होते ही नहीं और वही साइनोबैक्टीरियल धीरे-धीरे प्लांट्स के रूप में, ट्रीस के रूप में, वृक्षों के रूप में आने लगे। आज वृक्ष अपने अंदर साइटोब्लास्फो फोटोसिंथेसिस करके जो आक्सीजन प्रोडड्ढूज करते हैं, वही ऑक्सीजन हमें मिलती है। हम कार्बन डाइऑक्साइड देते हैं वृक्षों को और वृक्ष हमें ऑक्सीजन देते हैं।

इस प्रकार हमें ऑक्सीजन मिली और उन्हें कार्बन डाइऑक्साइड मिली। इस प्रकार हमारी सांस जुड़ी वृक्ष के साथ और वृक्ष की सांस जुड़ी हमारे साथ, तो हम सबकी सांसें एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई ही तो मानी जायेगीं। ये सब परमात्मा के विज्ञान द्वारा बड़े ही सूक्ष्म रूप से गुथा गया है। यदि हम अपने मन को देखें, तो मन भी जुड़ा हुआ है इस पूरे विश्व के साथ।

ब्रह्माण्डीय सहअस्तित्व का विज्ञान

हम कंप्यूटर को देखते हैं, कंप्यूटर, पियानो, हारमोनियम अथवा माइक बना, सब पुराने लोगों ने ऐसी जितनी खोजें कीं, उन सबकी विचारधारा, उन सबकी डेडीकेशन, उन सबने जो समर्पण भाव के साथ काम किया उसका भी महत्वपूर्ण अस्तित्व है जो एक पक्ष है। वह सब का सब वहां से वैचारिक व भाव स्तर पर चलता हुआ आया। दूसरा पक्ष कि कोई व्यक्ति आज पियानो सीख रहा है और पियानो में अपना जीवन लगा रहा है। किसी की उससे कमाई होती है, नाम होता है।

इस प्रकार वर्षों पहले जिन लोगों ने डेडीकेशन के साथ इस खोज में मेहनत की, एक इंस्ट्रूमेंट आया, आज जो व्यक्ति इंस्ट्रूमेंट पियानो बजा रहा है उसकी विचारधारा भी साथ जुड़ी उन लोगों से, जिन्होंने उस इंस्ट्रूमेंट के ऊपर अपना वर्षों समय दिया। इन दोनों वर्गों की विचार प्रयास का परिणाम आज उन स्टूमेंटो के लोक महत्व में दिख रहा है। इस प्रकार हम जिस चीज के साथ आज जुड़े हैं, हम उसी चीज का जिन लोगों ने निर्माण किया है, उनसे भी जुड़े होते हैं।

इस प्रकार इस संसार में कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है, जो एक दूसरे से नहीं जुड़ी है। ऐसा कह सकते हैं। यही कारण है भगवान अगर कहते हैं कि यज्ञ की भावना से निष्काम कर्म करो। इस धरती के लिए, इस ब्रह्मांड के लिए, इस यूनिवर्स के लिए तो भगवान के वचन के पीछे ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ का विज्ञान ही काम करता है और यही सत्य दिखता है। मतलब पूरा विश्व एक दूसरे के साथ जुड़ा हुआ है।

हम सब एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। हम अपने हृदय से जुड़े हुए हैं, अपनी सांसो से जुड़े हुए हैं, मन से हमारी सारी चीजें जुड़ी हुई हैं। सृष्टि के अस्तित्व में आने से लेकर अब तक की एक लम्बी कड़ी है। इसमें से एक भी कण को निकालकर हम अस्तित्व हीन हो जायेंगे। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम इस प्रकृति के लिए, इस ब्रह्मांड के लिए हर कुछ करें।

वसुधैव कुटुम्बक में कामनापूर्ति का विज्ञान

हम भगवान से मांगते हैं कि हमारी कामनाएं पूर्ण हो जाए, परंतु इस विश्व के लिए, इस प्रकृति के लिए क्या हमने सिर्फ पॉल्यूशन लेवल बढ़ाने पर जोर दिया? और ओजोन लेयर खराब किया। या हमने अपनी तरफ से कुछ कंट्रीब्यूशन दी। सोचिए यदि पृथ्वी पर सायनोबैक्टीरिया नहीं होते, सायनोबैक्टीरिया यह सोचते कि मैं ऑक्सीजन क्यों बनाऊं, तो शायद कभी भी इस धरती पर जीवन नहीं होता। आप और हम नहीं होते। इसलिए मैं चाहती हूं कि हम सब भगवान श्री कृष्ण को पूजें, परंतु उनके वचनों पर अमल करते हुए इस प्रकृति के लिए कुछ योगदान भी करें, हम वृक्ष लगाएं, अपनी तरफ से इस धरती को प्रेम दें।

हम मनुष्य हैं इसलिए दूसरों की आवश्यकताओं, सहयोग को समझ सकते हैं। इस नॉलेज का यूज करके जरूर हम इस धरती को स्वर्ग बनाएं, स्वच्छ बनाएं। यदि हम इन कार्यों को कर पाएं, तो भगवान श्री कृष्ण के वचनों को सत्य कर पाएंगे। मेरी अपेक्षा है कि हम इस धरती को हरा-भरा करने के लिए जरूर कुछ योगदान करें। हम यह कार्य यज्ञ की भावना से करें, हमें यह पृथ्वी बहुत कुछ देती है, आकाश देता है, जल देता है, अग्नि देती है, सब दे रहे हैं, सब देवता है, तो हम मनुष्य केवल लेने पर ही क्यों उतारू हों। देना भी जाने। गौ माता, प्रकृति वृक्षारोपण, गरीबों से हम जुड़े, तो हम अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वर्ग जैसी धरती छोड़कर जाएंगे।

हमारी जो पहले की पीढ़ियां थी, उन्होंने इस धरती को एक विशिष्ट समर्पण दिया, जिससे आज हम इस धरती का सौंदर्य देख सकते हैं। आगे जो हम इस धरती को देंगे, उससे हमारी आगे आने वाली पीढ़ियां धन्य होंगी। आइये इस दिशा में आज हम सब संकल्प लें।

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