स्वतः प्रकाशित संत हमारे गुरुदेव
वस्तुतः, देवपुरुषों, महान् संतों का अवतरण लोक-कल्याण के लिए ही होता है। वे अपने लोकोत्तर कर्म से जगत् को कल्याण मार्ग की ओर प्रेरित करते हैं। उनके द्वारा प्रशस्त पथ पर चलकर अन्य व्यक्ति भी महानता को प्राप्त करते हैं। देश की ऐसी ही ऋषि-परम्परा, संत-परम्परा एवं गुरु-शिष्य परम्परा में सर्वत्र एक विलक्षण आत्म भाव में प्रतिष्ठित, राष्ट्र, समाज तथा मानवमात्र की सेवा एवं परिष्कार में निरंतर , गायत्री, गीता, श्रुति, स्मृति, सूत्र, नीति तथा संतवाणी के स्वाध्याय, प्रवचन व साधना में अनवरत रत, दान-प्रतिग्रह के विप्रधर्म में दीक्षित गुरुदेव श्री सुधांशु जी महाराज हैं। ये एक सद्गुरु रूप में युग को ईश्वर के वरदान स्वरूप प्राप्त हैं। जिनकी आध्यात्मिक सेवा व प्रेम-भावना, विचारशीलता, सहृदयता, मनस्विता तथा भगवद्भक्ति रूपी प्राण-वायु से सांस्कृतिक प्रदूषण से मुक्ति मिल रही है। तमस के घोर झंझा में मानवीयता के लिए श्वास-संरचरण की अनुभूति होती है।
मानवता के रक्षार्थ सन्नद्ध पूज्यश्री 20 वर्ष के अल्पवय से ही प्रवचन का अमृत बांटते हुए इस पृथ्वी पर विचरण कर रहे हैं। तब से अब तक की 45 वर्षों से अधिक की अवधि से गुरुदेव देश-विदेश में प्रवाहित 8 हजार से अधिक प्रवचनों की सत्संग धारा के माध्यम से आपने वेद, उपनिषद, गीता, रामायण, पुराण, पतंजलि योगसूत्र, अष्टावक्र गीता, नारद भक्ति सूत्र, सूत्रग्रंथ, नीतिग्रंथ, संतवाणी एवं अन्य अनेक प्राचीन ग्रंथों में समाहित ऋषि-महर्षियों के अमृत वचनों को अपनी सुललित, मधुर वाणी में जन-जन तक पहुंचाने का उपकार कर रहे हैं।
पूज्यश्री के असाधारण व्यक्तित्व में अनन्त गुणों की लय है। आपकी वाग्मिता के अद्भुत आकर्षण से अभिभूत होकर भक्त, श्रोता एवं श्रद्धालुजन दूर-दूर से खिंचे चले आते हैं। यह छंद हमारे गुरुदेव पर बिल्कुल सटीक बैठता है कि
अर्थात् बुद्धिमान, समस्त शास्त्रों के रहस्य का ज्ञाता, लोक-व्यवहार से परिचित, निरपेक्ष, प्रतिभावान, शांतचित्त, प्रश्न करने से पहले जिसने उत्तर देख लिया हो, प्रश्नों को सहन करने वाला, प्रभुता सम्पन्न, दूसरों के मन को हरने वाला, निंदा नहीं करने वाला, स्पष्ट एवं मधुर वचन बोलने वाला तथा गुणों के निधान आचार्य हैं हमारे गुरुदेव जी।
आपने गुरुवर हिमप्रांत में अपनी साधना पूरी करने के पश्चात् अपने नवयौवन काल में ही हिमालय के मैदानी भागों में सत्संग एवं प्रवचन की यात्रा का श्रीगणेश किया, तो असंख्य नर-नारी, बाल-वृंद आपके होते चले गये। आपने उनको दुःख-दर्द से उबारा। अपने करुणामय भावों से उन्हें दुःख-शोक से मुक्त करके सेवा में लगा लिया। यह सत्संग यात्रा नित्य निरंतर निर्बाध गति से आज भी चल रही है। इस क्रम में भारत के कोने-कोने से लेकर विश्व के अनेकानेक देशों तक आधुनिक युग में बढ़ते तनाव, भय, निराशा और अवसाद से ग्रस्त लोगों का मनोबल बढ़ाने हेतु उन्हें अनेक आध्यात्मिक प्रयोग भी दिए हैं।
आपके प्रवचनामृत का पान करके मनुष्य को नवजीवन मिलता है। मन में आशा और आस्था जागती है, उत्साह और विश्वास का संचार होता है, सोच सकारात्मक बनती है। आपके सान्निध्य में ध्यान करके साधकों को भय, विपत्ति, बीमारी जैसी विपरीत स्थितियों में सांत्वना, धैर्य एवं प्रेरणा मिलती है। गुरुवर आपके आभामण्डल से झरते आध्यात्मिक आलोक में प्रभु-प्राप्ति सुलभ लगने लगता है। श्रद्धालुओं को आपके तपोनिष्ठ जीवन छाया में आकर साधना, सेवा, सहयोग, सत्संग, धर्म, भक्ति, प्रेम, दया एवं करुणा जैसी उदार भावनाओं से भर उठने का अवसर मिलता है। इस प्रकार आपमें दिव्य आध्यात्मिक स्वरूप के दर्शन होते हैं। लगता है जैसे मानव-जाति को आधि-व्याधि एवं उपाधि से मुक्त करने के लिए ही आपने इस धरा का चयन किया है व विश्व जागृति मिशन के माध्यम से ध्यान, ज्ञान एवं आरोग्य के निमित्त अनेकानेक सेवा प्रकल्पों की स्थापना की हैं।
जहां एक ओर आपने मनाली (हिमाचल प्रदेश) में ध्यान- साधना के अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र की स्थापना की, वहीं ज्ञान-साधना के लिए मिशन के गुरुकुल एवं विद्यालयों का निर्माण करवाया। महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ आनन्दधाम एक प्रकाश स्तम्भ बनकर खड़ा हो रहा है। आपकी मानवता के प्रति करुणा ही है कि दुःख एवं रोग से पीड़ित जन समुदाय के उपचार के लिए अनेक अस्पताल बनवाए। वहीं धर्म एवं आस्था के केंद्र मंदिरों का निर्माण करवाया। इस प्रकार एक ओर यदि आप गरीब एवं अनाथ बच्चों को शरण एवं संरक्षण देने के लिए तत्पर हैं, तो दूसरी ओर वृद्धाश्रम के माध्यम से अपनों से उपक्षित एवं बेसहारा वृद्धजनों की देखभाल और सेवा प्रदान कर अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
इस प्रकार तीर्थ सा पवित्र एवं निश्छल प्रेम करुणा से भरा पूज्यश्री आपका अंतःकरण तथा सहज-सरल व्यक्तित्व संकल्पनिष्ठ ऋषि-मुनियों की चेष्टाओं और उसके व्यावहारिक स्वरूपों की गहराई को उद्घाटित करता है। सच कहें तो आप जैसे ऋषिकल्प महापुरुषों के गुणों को प्रकाशित करने के लिए किसी की लेखनी अथवा वाणी की क्या क्षमता, इतना विराट है आपका सागर से व्यक्तित्व। गहरा गहराई से युक्त अपने सद्गुरु के लिए। हम इतना भर कह सकते हैं कि कस्तूरी की सुगंध किसी शपथ की मोहताज नहीं, ऐसे स्वप्रकाशित संत हैं हमारे सद्गुरुदेव।