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भारतीय जीवन शैली में छिपा कोविड के समाधाान का राज

भारतीय जीवन शैली में छिपा कोविड के समाधाान का राज

भारतीय जीवन शैली में छिपा कोविड के समाधाान का राज

प्राकृतिक जीवन ही कोविड की विकराल स्वास्थ्य समस्याओं से हमें दूर रख सकता है, तनाव मुक्त रखता है, सकारात्मक दृष्टिकोण से हमें जोड़ सकता है।

भारतीय जीवन शैली में छिपा कोविड के समाधाान का राज

पूरी दुनिया इन दिनों कोविड-19 के भिन्न – भिन्न  वैरिएंट वाली महामारी से जूझ रहा है, देश में भी मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। वैक्सीन अपना कार्य कर रही है, फिर भी व्यक्ति को इस भयावहता में अगर कोई आश्वस्त कर पा रही है, तो वह हमारी अपनी प्राकृतिक जीवन शैली। मन्त्रों का विज्ञान, संतों-महापुरुषों का आशीष, व्यक्ति से व्यक्ति की दूरी बनाये रखने, बार बार हाथ

धोने, मन की सकारात्मकता और जल-जमीन-वायु-पर्यावरण, अग्नि आदि पंच तत्वों से जुड़कर जीवन जीने की शैली, मानवीय आचार-व्यवहार और संस्कार का पालन।

वसुधैवकुटुम्बकम् की भावना

वसुधैवकुटुम्बकम् की भावना में जीवन जीने की संकल्पना भी हमें आंतरिक दृष्टि से प्रबल बनाती है, यही सब आज के स्वस्थ जीवन की नींव बनते जा रहे हैं। आज सम्पूर्ण विश्व के अधिकांश विशेषज्ञ भी महामारी से अछूते एवं रोगियों दोनों को शुद्ध प्रकृति के साथ जोड़कर इस महामारी का समाधान खोजने का प्रयास कर रहे हैं।

यद्यपि जड़ी-बूटी चिकित्सा एवं आयुर्वेद हजारों वर्षों से जीवन निर्माण की दिशा में कार्य करते आ रहे हैं। वैसे हमारी जीवन शैली से लेकर आहार-विहार के तरीके में हमारे विशेषज्ञों ने वषों तक वनौषधियां एवं आयुर्वेद सूत्रों  को समाहित कर रखा था, जिसे भूलने का भी दण्ड हम सब आज पा रहे हैं, हमें पुनः इसी प्रकृति की ओर लौटना होगा। क्योकि हमारी ऋषि अनुसंधित प्रकृतियुक्त भारतीय जीवन शैली में ही हमारी चिकित्सा, आरोग्यता व हमारा स्वास्थ्य स्वतः समाया हुआ है।

आयुर्वेद हमें औषधि से अधिक जीवन शैली को सुधारने का संदेश देता है। हमारे ऋषियों ने मानव मात्र के लिए निर्धारित जीवनचर्या द्वारा हमारे हर क्रिया कलाप में शुद्धता, पवित्रता, सात्विकता आदि का ऐसा समावेश किया कि सूक्ष्म से सूक्ष्म वायरस हमें छू न सके। साथ ही हमें शारीरिक-मानसिक से लेकर आत्मिक स्तर तक स्वस्थ रखे। इसी आधार पर हमारे आहार-व्यवहार का निर्माण किया।

भारतीय रसोई स्वयं में आयुर्वेद का भंडार

सदियों से हमारी अपनी भारतीय रसोई स्वयं में आयुर्वेद का भंडार रही है।  दालचीनी, लौंग, तुलसी, अदरक, काली मिर्च, सौफ, जीरा, मेथी, अजवायन, कलौंजी, गुड़, हल्दी आदि मशाले औषधीय गुणों से भरपूर स्वास्थ्य विज्ञान के मानकों पर खरे सिद्ध हुए हैं। तभी तो हमारे आरोग्यपूर्ण भारतीय मसालों की चर्चा सदियों से होती आ रही है। दैनिक जीवन में इसका सेवन पेय-काढ़ा, दाल-सब्जी, सालन आदि रूप में प्रयोग करके हम अपने स्वाद व स्वास्थ्य दोनों को बढ़ाते रहे हैं। हर प्रकार के इन्फेक्शन को मिटाने व रक्त शुद्धता बढ़ाने में सहायक इसी परम्परा में हम सब फिर क्यों न प्रवेश करें।

इसी तरह हमारे सोने-जागने, प्रातः बेला में उठने व सूर्यास्त के पूर्व भोजन ग्रहण करने आदि के पीछे भी स्वास्थ्य व आरोग्यमय जीवन मूल उद्देश्य है। इस संदर्भ में सामयिक है मनुस्मृति का यह कथन-‘‘नींद से जागने के बाद, भूख  लगने पर, भोजन करने के बाद, छींक आने, असत्य भाषण होने, पानी पीने और अध्ययन करने के बाद आचमन जरूर करें।’’ यह  दकियानूसी नहीं थी, अपितु हमें सूक्ष्म वायरस व कीटाणु आदि से बचने का अवसर भी देता है। साथ ही जब

जन्मदिवस पर पेड़ लगाने की बात कहते हैं हमारे संत-ऋषि तो वातावरण को आक्सीजन से भरपूर बनाये रखना ही उद्देश्य रहता है। आज के कोरोना संकट में आक्सीजन की कमी और व्यवहार-बर्ताव में पवित्रता का अभाव ही तो इस रोग का कारण है। आज हमारे डिजीज ‘‘कंट्रोल एंड प्रिवेंशन सेंटर’’ ने भी कोरोना काल में हमें सेहतमंद रहने के लिए हाथों को बार-बार साफ रऽना बेहद जरूरी बता रही है, उनमें कोविड-19 से बचाव व आरोग्यता में पवित्रता की कामना मूल है, हमारे संस्कृति ग्रंथ इसी को शौच-आचमन के रूप में सम्बोधित करते आये हैं। जैसे-

“शौच ईपसुः सर्वदा आचामेद एकान्ते प्राग उदड़्ग मुखः” (मनुस्मृति)

गहराई में जायें तो भारतीय जीवन शैली में जीवन के प्रत्येक शुभ व सद्कार्य बिना आचमन अधूरे माने गये हैं। ऋषि कहते हैं आचमन से हृदय की शुद्धि होती है। मन निर्मल व शुद्ध होता है। व्यक्ति सत्कर्मों का अधिकारी बनता है। पूजा अर्थात कर्म का फल दोगुना मिलने की सम्भावना बढ़ जाती है और जीवन को पूर्ण तृप्ति-संतुष्टि मिलती है। मंत्र तो यही कहता है-

“एवं स ब्राह्मणों नित्यमुस्पर्शनमाचरेत् ब्रह्मादिस्तम्बपर्यंन्तं जगत् स परितर्पयेत् “ विचार करें तो भारतीय संस्कृति असंख्य वर्ष पूर्व जीवन शैली के वैज्ञानिक विधि के साथ विकसित हुई। जीवन शैली ऐसी कि सूक्ष्म से सूक्ष्म विषाणु-जीवाणु व वायरस तक को जीवन व स्वास्थ्य को प्रभावित करने का अवसर न मिले। लेकिन हम सबने स्वयं इसकी उपेक्षा किया।

वैसे हमने आधुनिकता के नाम पर अपनी जीवन शैली ही नहीं बिगाड़ी, अपितु इसका संदेश देने वाले ग्रंथों तक की उपेक्षा कर उन्हें हम भुलाने लगे, परिणामतः आरोग्यमय प्रेरणा के अभाव में स्वास्थ्य क्षीण होना रोग आना ही था। फिर हम तो बर्गर-पिज्जा हट, देर रात वाली पार्टियों में शामिल मित्रों , पेशेवर प्रतिबद्धताओं में फंसे प्रोफेशनल पर अवलम्बित हो गये और भूल गये कि एक स्वस्थ जीवन शैली के साथ जीवन जीना क्या है? आज अनुभव हो रहा है कि हमारे स्वास्थ्य का महत्व हमारे लिए

महत्वपूर्ण है। जब हम स्वस्थ होंगे, तभी अपने जीवन के अन्य कामों को कुशलता से कर पाएंगे। पर समझ के अभाव के चलते जो लोग अपने जीवन, अपने स्वास्थ्य के साथ जानबूझकर उपेक्षा कर रहे थे। अब गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से घिर कर इसका अहसास कर रहें हैं।

परम्परागत जीवन शैली

परम्परागत जीवन शैली में स्वास्थ्य का बड़ा राज छिपा है। यहां की साधना, प्राकृतिक पूजा-पद्धति, तीज-त्योहार, रीति-रिवाज आदि व्यक्ति के मानसिक, भावनात्मक एवं शारीरिक उल्लास को ताजगी देकर आरोग्यमय जीवन में मदद करते हैं। स्वास्थ्य का एक अकेला मापदण्ड नहीं है, जैसे हमारा इम्यून सिस्टम सुन्दर त्वचा, खूबसूरत बाल, चमकती आंखें, अच्छी नींद, खुली भूख, स्वस्थ पाचन तंत्र आदि यह सब तो हमारे मानसिक-भावनात्मक स्वास्थ्य से प्रभावित होते हैं। इसीलिए दिनचर्या में ईश्वर उपासना, साधना, सिमरन, सेवा, संतोष, दान-परोपकार से युक्त रहन-सहन के तरीके पर जोर दिया गया है। योगाभ्यास से लेकर भारतीय खान-पान, आहार-व्यवहार सब आरोग्यता से ही जुड़े हैं। कोरोना वायरस इसी प्रकार की जीवन शैली से दूर भागता है। यह सब मानव शरीर में प्राकृतिक रूप से मौजूद एण्टीबॉडीज को बढ़ाने में भी मदद करते हैं। कहते हैं कि अच्छा पौष्टिक आहार, संतुलित व्यायाम से भी कई गुना महत्वपूर्ण है, हमारी जागरूकता भरी सकारात्मक जीवन शैली।

हमारी वनौषधिक  धरोहर और योग आधारित संतुलित जीवन शैली वातावरण में मौजूद कीटाणुओं विषाणुओं से लड़ने में प्रभावी हैं, ऐसे में पुनः हमें अपनी प्राकृतिक जीवन शैली की ओर लौटना ही एक आधार है। हमें पुनः अपनी स्वस्थ आदतों को विकसित करने के लिए अपनी दैनिक दिनचर्या में बदलाव करने होंगे। जैसे स्वस्थ भोजन, स्वस्थ पहनावा-वार्तालाप-व्यवहार, स्वाद नहीं स्वास्थ्यपूर्ण आहार की आदतों का पालन करना, पर्याप्त नींद लेने और प्रत्येक दिन शारीरिक व्यायाम करने की जीवनचर्या बनानी होगी। जब हम स्वस्थ होंगे, तब ही हम अपने जीवन के अन्य पहलुओं पर कुशलता से बढ़ पाएंगे। प्राकृतिक जीवन ही इन विकराल  स्वास्थ्य समस्याओं से हमें दूर रख सकता है, तनाव मुक्त रखता है, सकारात्मक दृष्टिकोण से हमें जोड़ सकता है। आइये! हम सब प्राकृतिक जीवन शैली की ओर लौटें और आरोग्यता पायें।

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