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संतों को समझना आसान नहीं | Story Time

संतों को समझना आसान नहीं | Story Time

संतों को समझना आसान नहीं

संतों को समझना आसान नहीं

नानक देव के पुत्र थे ‘‘श्री चन्द’’ देखने में साधारण, वस्त्र भी सामान्य, कहीं भी बैठ जाते, किसी साधारण से साधारण के साथ घुल जाते। जंगल में वर्षों तक प्रारम्भिक दौर की साधना करने के दौरान एक दिन उनके मन में गुड़ खाने की इच्छा हुई। उन्होंने अपने शिष्य से कहा आत्म स्वरूप, जाओ कस्बे से थोड़ा गुड़ ले आओ। गुड़ खाने का मन है।

शिष्य गुड़ के एक बहुत बड़े व्यापारी के पास जाकर कहने लगा हमारे गुरुदेव के आश्रम के लिए थोड़ा सा गुड़ दे दो। यह सुनते ही सेठ ने भड़ककर कहा बोहनी का समय है, सुबह-सुबह माँगने आ गये। यदि सुबह-सुबह तुम्हें मुफ्त में दे दिया, तो सारा दिन खराब हो जाएगा। इसके बावजूद शिष्य बार-बार निवेदन करने लगा कि आपके तो इतने सारे गोदाम हैं, थोड़ा गुड़ हमारे गुरुदेव के लिये दे देंगे, तो कोई कठिनाई नहीं होगी। सेठ जी बोले अरे आगे जाओ, यहां कोई गोदाम नहीं है। इस गोदाम में मिट्टी भरी है। यह सुनकर शिष्य बिना गुड़ के ही श्री चन्द्र जी के पास वापस चले गये और जाकर सद्गुरु से कहा गुरुदेव एक ही जगह गया था और उस आदमी ने गुड़ देने से मना कर दिया। जब मैंने कहा तुम्हारा इतना बड़ा गोदाम है, तो उसने बोला, वो तो सब मिट्टी भरी है।

गुरु बोले अच्छा स्वरूप बैठ जाओ। मेरे मन में अब गुड़ की चाह नहीं है। पर शिष्य अभी शांत नहीं हो पाया था, उसने अपने गुरु से कहा-उसके गोदाम में तो गुड़ ही गुड़ है, फिर उसने ऐसा क्यों कहा। श्री चन्द जी बोले हो सकता है वह सच कह रहा हो, हो सकता है उसके पास मिट्टी ही हो। इस वाकिया के अभी कुछ ही समय बीता था कि सेठ के गोदाम में कहीं से पानी अंदर आ गया और गोदाम का सारा गुड़ खराब हो गया, कीचड़ भरने के कारण सारा गुड़ वास्तव में मिट्टी बन गया।

सेठ के गोदाम का गुड़ मिट्टी बनने की खबर पूरे शहर भर में फैल गयी। सेठ भी गुड़ न देने की बात बड़बड़ा रहा था। लोग भागते हुए महात्मा श्री चन्द से कहने लगे प्रभु! आपकी वाणी से उस बेचारे का बहुत बुरा हुआ, यह सुनकर श्री चन्द को भी बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, स्वरूप उठो अब यहां नहीं रहना। लगता है! भगवान का नाम जपते-जपते इस जुबान में शक्ति आ गयी और यह जुबान दुनिया के व्यवहार के लायक नहीं रही। उसका परिणाम कितना बुरा हुआ? लोगों ने श्री चन्द को लाख मनाया पर वे नहीं रुके।

 

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