fbpx

समय के सदुपयोग की समीक्षा

समय के सदुपयोग की समीक्षा

समय के सदुपयोग की समीक्षा

समय के सदुपयोग की समीक्षा : कहते हैं उपासना-सुमिरन कुछ घंटे की होती है, लेकिन आत्म अवलोकन, आत्म परिष्कार 24 घंटे होनी चाहिए।

समय के सदुपयोग की समीक्षा
कहते हैं उपासना-सुमिरन कुछ घंटे की होती है, लेकिन आत्म अवलोकन, आत्म परिष्कार 24 घंटे होनी चाहिए।
आत्म समीक्षा, आत्म अवलोकन का मूल है। परमात्मा द्वारा दिये गये स्वाभाविक साधन अर्थात् शरीर, मन मस्तिष्क, चित्त आदि तथा परमात्मा द्वारा दी गयी विशिष्ट विभूति अर्थात् समय का हम किस रूप में उपयोग कर रहे हैं। यही है आत्म समीक्षा। कहते हैं जार्ज बर्नार्डशा कहते थे कि हर तीन साल के बाद अगर मुझे दुनिया का राज दे दिया जाए, तो मैं इंसान को कचहरी में बुलाऊंगा और पूछूंगा कि तीन साल का जो कीमती समय तुम्हें परमात्मा की ओर से मिला था, उसको तूने कैसे बिताया?
कहते कि मैं नहीं पूछंगा कि भगवान ने जो तुम्हें दौलत दी थी, उसका तुमने कितना दुरुपयोग और सदुपयोग किया, क्या कमाया, क्या खोया? पर भगवान ने तुम्हें वक्त दिया था, उसका हिसाब पूछूंगा। इसका अर्थ है कि समीक्षा समय के सदुपयोग भी होनी चाहिए। समय ही सबसे बड़ा धन है।
समय वह शक्ति है जिसको साधा गया, तो हम देवता व राजा बन सकते हैं। हम इतनी ऊंचाइयां छू सकते हैं जिसकी कल्पना नहीं, पर आत्म अवलोकन, आत्म परिष्कार के अभाव में समय का सदुपयोग न करके हम शैतान भी बन जाते हैं। वास्तव में इंसान की सफलता-विफलता, लाभ-हानि, उन्नति-अवनति केवल इस बात पर निर्भर है कि परमात्मा द्वारा मिले वक्त का मनुष्य ने उपयोग कैसे किया? सब कुछ समय का ही विस्तार है।
आत्मावलोकन में यह भी आता है कि हम कैसे दिन की शुरुआत करते हैं, कैसे रात में सोते हैं। भोजन करते हैं तो उस समय भाव-दशा कैसी है। परिवार में बैठते हैं, तो हम कैसे होते हैं, दोस्तों के साथ बैठते हैं तो कैसे होते हैं। महात्मा बुद्ध ने इसी को सम्यक् विचार, आचार, सम्यक् दृष्टि, सम्यक् वाणी, सम्यक् कर्म, सम्यक् चेष्टा, सम्यक् ध्यान के चरणों में बंटा है, जिससे दुख से मुक्ति तथा कष्टों से बचने के मार्ग मिलते हैं।
हम किसान को ही लें, यदि वह सम्यक् आजीविका को महत्व देता है, तो वह धरती में बीज बोते समय उसे अन्न देवता की उपासना मानकर काम करता है। वह सोचता है कि अन्न उपजने से मेरा भी पेट भरना और दुनिया का भी। लेकिन जब वही किसान को यह दिखाई दे कि अन्न नहीं, पैसा कमाना है, तो वह खेत में गेहूं नहीं, तम्बाकू बोएगा। उसी प्रकार जब आदमी अपनी रोजी-रोटी कमाते समय यह सोचे कि पैसे कैसे आए, बड़ा आदमी कैसे बनूं।, पैसे वाला कैसे बनूं। तो वह भ्रष्टाचार करेगा ही। फिर वह कितना जप-तप करे, कुछ आत्मिक प्रगति होनी नहीं है।
यही नहीं जब आदमी पैसे को बहुत महत्व देने लगे, तो सम्बन्ध टूटने लगे। रिश्ता खत्म होने लगे, क्योंकि सम्यक्ता समाप्त हो गई। आत्म अवलोकन व आत्म परिष्कार इसीलिए जरूरी है।