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अनैतिक रूप से अर्जित धन का परिणाम

अनैतिक रूप से अर्जित धन का परिणाम

अनैतिक रूप से अर्जित धन का परिणाम

धन के लिए अनीति का मार्ग अपनाने वाले व्यक्ति को धनवान होने का आभास मात्र होता है, इसके बदले उसे अपना सम्पूर्ण गवाना पड़ता है।

अनीतिपूर्वक कमाया हुआ धन मन को अशांत और बेचैन रखता है, घर परिवार में अनीति से कमाया धन गलत संस्कार लेकर आता है, ऐसे परिवार के लोग अनीति का रास्ता पकड़ने से नहीं बचते और बुरे कार्यों में फंसकर अपने को बरबाद कर लेते हैं। अनीतिपूर्वक कमाया गया धन मनुष्य का नैतिक पतन कर देता है।

धर्ममार्ग से कमायें और धर्मकार्य में दान करें।

इसीलिए हमारे वेद, उपनिषद, आर्षग्रंथ एवं संत आदि मनुष्य को धर्मानुसार आचरण करते हुए पूर्ण सदपुरुषार्थ के साथ अधिक से अधिक धन कमाने की प्रेरणा देते हैं।

ऋग्वेद भी ‘‘अग्निना रयिमश्नवत पोषमेव दिवेदिवे। यशसं वीरवत्तमम्।।’’

सूत्र के माध्यम से हमें यही संदेश तो देता है कि हम ईश्वर के बनाए नियमों से ही धन कमाएं, अनुचित रीति से कमाया धन हम से दूर रहे अर्थात् धर्ममार्ग से कमायें और धर्मकार्य में दान करें। कहते हैं धन के लिए अनीति का मार्ग अपनाने वाले व्यक्ति को धनवान होने का आभास मात्र होता है, इसके बदले उसे अपना सम्पूर्ण गवाना पड़ता है।

बेइमानी वाले तरीके से हमारी आत्मा पतित होती है

अनीति मार्गी सबसे पहले अपने भाव व मन को विकृत करके उसमें लोभ को स्थापित करता है, तत्पश्चात संबंध टूटते हैं, इसके बाद अपने स्वास्थ्य का नाश कर बैठता है। फिर परिवार व बच्चों की उपेक्षा प्रारम्भ हो जाती है, इस प्रकार जिसने एक बार गलत मार्ग पकड़ लिया, उसे किसी को धोखा देना, चोरी, घूसखोरी, करचोरी, बहुविधि भ्रष्टाचार आदि पर चलना सहज हो जाता है। बेइमानी वाले तरीके से हमारी आत्मा पतित होती है। अंततः मनुष्य लोभ-लालच में पड़कर सर्वत्र निंदनीय बनता है।

पैसा कमाये लेकिन येन केन प्रकारेण से नहीं

यह सच है कि जीवन संचालन से जुड़े प्रत्येक कार्य के लिए धन आवश्यक है। छोटा काम हो या बड़ा, धर्म हो या राजनीति, साधना हो या अनुष्ठान सभी के लिए पैसा की आवश्यकता पड़ती है। इसीलिए हमारे वेदों में धन संग्रह को एक आवश्यक कर्तव्य बताया गया है, पर येन केन प्रकारेण नहीं, अपितु नीति के मार्ग पर चलते हुए सद्पुरुषार्थ के साथ + कमाने की साधना पर जोर दिया गया है। अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को स्वीकार करने पर हमारे आर्षग्रंथों ने जोर दिया है। नीति एवं पवित्रता का मार्ग अपनाने से ऐश्वर्य और श्रीवृद्धि का वरदान मिलता है। ज्ञान, अनुभवजन्य कुशलता और दक्षता जैसे आवश्यक गुण सहज विकसित होते हैं, जो समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

बहुत बड़ा विकार है धन से अतृप्त रहना

वास्तव में धन से अतृप्त रहना बहुत बड़ा विकार है। क्योंकि यह मनुष्य को अमानवीय कर्म करने के लिए विवश कर देता है और इस प्रकार वह एक न एक दिन अपना सम्पूर्ण हानि कर बैठता है। इस प्रकार धन, धर्म और सुख तीनों से वंचित हो जाता है। इसके विपरीत जब घर में धन पवित्र होकर आता है, तो वह सुख, शांति व संतोष प्रदान करता है। ऐसा धन जहां भी उपयोग होता है, व्यक्ति आनंदित होता है। दान से लोककल्याण के कार्य सधते हैं, लोगों में सात्विकता का विकास होता है तथा उपयोग करने वाला सत्याचरण में प्रेरित होता है। अतः नीति की कमाई करें, जिससे जीवन सर्वविध कल्याणकारी साबित हो।

Dr. Archika Didi