fbpx

प्रार्थना- कैसे फलित होती है ?

प्रार्थना- कैसे फलित होती है ?

कैसे फलित होती है प्रार्थना

प्रार्थना में शब्द बोलने की जरूरत नहीं है, अपितु हृदय खोलने की जरूरत है। श्रद्धामय हृदय से जो निकलेगा, वह परमात्मा सुनेगा, टूटे-फूटे शब्दों को भी वह नजरंदाज नहीं करेगा।

कैसे फलित होती है प्रार्थना?

समुद्र किनारे किसी बन में भोले भाले, भावनाशील आदिवासियों का एक समूह रहता था। उस क्षेत्र में दो साधु पहुंच गये, उन्होंने सोचा ये लोग न तो सभ्यता से जुडे़ हैं, न ही इन्हें ईश्वर का पता है। क्यों न इन्हें भगवान को पाने की कुछ प्रार्थनायें सिखाई जायें। इस भाव से वे दोनों उन आदिवासियों के बीच गये और मंत्र और प्रार्थनायें सिखाईं। आदिवासियों ने उन पादरियों का अहसान मानते हुए, उन्हें भावना के साथ विदा किया।

वे नाव पर बैठकर समुद्र में अभी कुछ ही दूर गये होंगे कि आदिवासियों के समूह ने सोचा क्यों न प्रार्थना याद कर लिया जाये, लेकिन वे तो सब के सब मंत्र और प्रार्थनायें पूरी बोल ही नहीं पा रहे थे, भूल चुके थे। तब इस समूह ने सोचा अभी साधु समुद्र में सामने जा ही रहे हैं, चलें फिर से पूंछ लें। वे आधी अधूरी प्रार्थनायें दोहराते हुए उस समुद्र पर ही दौड़ने लगे।

साधु ने अपनी ओर समुद्र के पानी पर दौड़ती चली आ रही भीड़ देख आश्चर्य में पड़ गये। पास आकर आदिवासी समूह बोलने लगा कि आप ने जो प्रार्थनायें रटाई थीं, उनमें से किसी को भी पूरी याद नहीं हुई, इसलिए दौडे़ चले आये। कृपा करके मुझे फिर से बता दीजिये। साधु ने उन भावनाशील, पवित्र आत्माओं की ओर देखा और कहा तुम्हें किसी प्रार्थना की जरूरत नहीं है। तुम लोगों को जिसके लिए प्रार्थनायें सिखानी चाही थी, आप सब तो उससे भी आगे की साधना में सफल हो। बस इसी तरह भावना से ईश्वर को पुकारते रहना, इससे बढ़कर तुम्हारे लिए किसी प्रार्थना की आवश्यकता नही है।

प्रार्थना कोई सिद्धांत नहीं है

वास्तव में प्रार्थना कोई सिद्धांत नहीं है, अपितु अपने अंतःकरण के पवित्र प्रेम को भगवान के प्रति अर्पित करने का सरलतम प्रयोग है। जिससे जीवन की संघर्ष भरी राहों पर चलने की हिम्मत प्राप्त होती है, प्रेरणा मिलती है। अपनी भावनाओं को पूर्ण पवित्रता के साथ समर्पित करने का साधन है प्रार्थना। वेदों-उपनिषदों की प्रार्थनाएं, ऋषियों के हृदय से प्रकट हुई प्रार्थनायें, संत साधक, सिद्ध के हृदय से प्रकट हुई प्रार्थनायें, पवित्र हृदयी महामनाओं द्वारा शिलाओं पर बैठकर की गयी प्रार्थनाएं उनके शब्दों के कारण नहीं, अपितु उनमें स्थित भावना भरी दूसरों की पीड़ा दूर करने के लिए की गयी करुण पुकार होती है, इसीलिए उनकी सर्वाधिक प्रार्थनायें कुबूल हुई हैं।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

महामानवों ने अपने स्वार्थ एवं अहम को विलीन करके दूसरों के हित कल्याण के लिए सदैव प्रार्थनायें की हैं। जब मांगने की बारी आयी, तब उन संतों ने ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।’’ के भाव से मांगा। इसलिए परमात्मा उनकी झोली कभी खाली नहीं रहने दी।

प्रार्थना में जब निश्छल प्रेम के साथ भक्त अपने भगवान के प्रेम में निमग्न हो, उसे उस सत्ता का हो जाने की चाहत के साथ पुकारता है, पूर्ण प्रेम अर्पण कर पुकारता है, तो प्रार्थना अवश्य स्वीकार होती है। प्रार्थना उस परम सत्ता के प्रति प्रेम, उसकी कृपाओं को याद करके अंतःकरण में खुशी के आंसू और मुस्कान भर उठने की हूक जगाती है प्रार्थना। इस अवस्था में भक्त के भाव हृदय की भाषा बनकर प्रकट होते हैं।

ऐसी प्रार्थना में तीव्र संवेदना, गहरी चाह होती है, पर किसी के अनिष्ट की भावना कदापि नहीं होती। प्रार्थना द्वारा भक्त अपने भगवान की सत्ता का प्रयोग केवल अपनी सुख-सुविधाओं और विलासिता के लिए भी नहीं करता, अपितु अपना दुःख-दर्द दूर करने, अपनी खुशी के लिए, जीवन पर छाये गहरे कुहासे हटाने के लिए प्रार्थना करता है। कहते हैं भावश्रद्धा से जब सिर झुकते हैं आभार के लिए इसी अवस्था में प्रार्थना ताकत पाती है।

भगवान को समर्पित होना जरूरी है।

प्रार्थना के लिए सर्वप्रथम मन पूरी तरह भगवान को समर्पित होना जरूरी है। श्रद्धा भाव से भरे पवित्र मन की गहराई से पुकारने पर अवश्य ऊपर वाला कृपा करता है। प्रार्थना का यही विज्ञान है। प्रार्थना में शब्द बोलने की जरूरत नहीं है, अपितु हृदय खोलने की जरूरत है। श्रद्धामय हृदय से जो निकलेगा, वह परमात्मा सुनेगा, टूटे-फूटे शब्दों को भी वह नजरंदाज नहीं करेगा। सच कहें तो प्रार्थना के समय भगवान तक केवल भक्त की श्रद्धा भावनाएं पहुंचती हैं, शब्द नहीं।’

इसीलिए पूज्य सद्गुरुदेव श्री सुधांशु जी महाराज कहते हैं कि ‘‘प्रार्थना_आध्यात्मिक प्रयोग है, जो हमारी श्रद्धा की शक्ति के साथ जुड़कर चमत्कार दिखाती है। कोई भी व्यक्ति जब प्रार्थना का सहारा लेकर उस असीम, अनन्त सत्ता के प्रति श्रद्धा भाव से झुकता है, तो परमसत्ता आर्त भाव से की गयी उसकी पुकार सुनकर सहायता अवश्य करती है।’’ जब श्रद्धा-विश्वास के सहारे असहाय इंसान के जीवन में गहराई से भाव संवेदना का सहज उदय होता है तो प्रार्थना अवश्य फलित होता है।

धन्यवादी भाव

वैसे धन्यवादी भाव से की गयी प्रार्थनायें जीवन में अकल्पनीय चमत्कार लाती है। यह प्रार्थना ही है जो इंसान की आंखों में करुणा जगाती है। प्रार्थना के लिए कोई निश्चित समय नहीं होता कि साधक कितनी देर तक प्रार्थना करे, अपितु जब अंतःकरण अंदर से खुलने लगे, आंखें भीगने लगे, हृदय भावों में गहरे तक डूबने लगे, रोम रोम में पुलकन उठने लगे, तो समझना चाहिए की प्रार्थना_फलित होने के स्तर पर आ गयी है।

किसी किसी की प्रार्थना तो पांच मिनट में ही फलित होने लगती है, संत करुणामय अवस्था में जीवन जीते हैं, अतः उनका भाव हर पल प्रार्थना के अनुरूप बना रहता है। फिर भी प्रार्थना को प्रभावशाली बनाने के लिए प्रार्थना के क्षणों में हृदय से प्रेम उमड़े और आंखों से प्रेम के आंसू अवश्य बहें, इस प्रकार बिना शिकायत प्रभु कृपाओं के लिए करुण-निश्छल हृदय से धन्यवाद भावना में डूबकर की गयी प्रार्थना_फलित होती है और जीवन धन्य बनता है। ■

मुख वाणी की जगह हृदय वाणी हो

प्रार्थना में शब्द बोलने की जरूरत नहीं है, अपितु हृदय खोलने की जरूरत है। श्रद्धामय हृदय से जो निकलेगा, वह परमात्मा सुनेगा, टूटे-फूटे शब्दों को भी वह नजरंदाज नहीं करेगा। सच कहें तो प्रार्थना के समय भगवान तक केवल भक्त की श्रद्धा भावनाएं पहुंचती हैं, शब्द नहीं।’ इसीलिए पूज्य सद्गुरुदेव श्री सुधांशु जी महाराज कहते हैं कि ‘‘प्रार्थना_आध्यात्मिक प्रयोग है, जो हमारी श्रद्धा की शक्ति के साथ जुड़कर चमत्कार दिखाती है।
डॉ अर्चिका दीदी