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पतंजलि योग सूत्र गहरे धयान में उतारता है

पतंजलि योग सूत्र गहरे धयान में उतारता है

पतंजलि योग सूत्र गहरे धयान में उतारता है

भारत की यह प्राचीन पतंजलि योग विद्या आज पुनः तीव्रता से विश्व स्तर पर विस्तार पा रही है। इसके पीछे है विद्या का अत्यधिक व्यावहारिक होना।

पतंजलि योग सूत्र गहरे धयान में उतारता है

योग परम्परा में ध्यान का स्थान बहुत ऊंचा है। ध्यान के अनेक प्रकार हैं। ध्यान करने के लिए सबसे सरल विधि है- किसी साफ-स्वच्छ, हवादार, शांत वातावरण में बैठकर योग-प्राणायाम करें। तत्पश्चात आंखें बंद करके शांत मुद्रा में अंदर की ओर प्रवेश करने की स्थिति बनायें। आनंदित महसूस करने की अवस्था आते ही शरीर में ऊर्जा का संचार अनुभव करेंगे। शारीरिक मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व ताजगी का एहसास होने लगेगा।

पतंजलि के सम्पूर्ण चरणों का पालन करें

पर ध्यान की इस अवस्था तक जाने के पहले जो साधक योग और ध्यान का संयुक्त प्रयोग करते हैं, उन्हें सफलता के उच्च सोपान तक पहुचने में सरलता मिलती है। इसके लिए आवश्यक है पतंजलि के सम्पूर्ण चरणों का पालन करे, जिसके आठ चरण हैं,

  1. यम
  2. नियम
  3. आसन
  4. प्राणायाम
  5. प्रत्याहार
  6. धारणा
  7. ध्यान
  8. समाधि

इसमें से यम का सम्बंध वाह्य जगत से जुडे़ हुए अनुशासन से है, वहीं नियम आंतरिक जीवन अनुशासन है। आसन का संबंध मानव शरीर के विद्युत ऊर्जा धारा की क्रमबद्धता बनाये रखने से हैं, जिसके लिए आवश्यक है साधक का शारीरिक रूप से स्वस्थ व सबल होना, शरीर से स्वस्थ व्यक्ति ही ध्यान व समाज की सेवा कर सकता है और साधना-उपासना-ईश्वर भजन भी। इसीप्रकार मनःसंस्थान को सबल व स्वस्थ रखने का कार्य करता है प्राणायाम। यह मानव को मानसिक व भावनात्मक रूप से स्वस्थ, सबल बनाने की प्रक्रिया है। इसके बाद आता है प्रत्याहार, धारणा और ध्यान का सम्बंध। प्रत्याहार इंद्रियों को विषय से हटाने की प्रक्रिया है, दूसरे शब्दों  में बहिर्मुख विषयों से मुक्त होकर अतर्मुखी होने से है। प्रस्तुत सूत्र का संदेश यही है

                स्वविषयासम्प्रयोगे चित्तस्य स्वरूपानुकार इवेन्न्यिांणा प्रत्याहार

अर्थात् विषयों के साथ इन्द्रियों का संबन्ध विच्छेद करके चित्त के स्वरूप में तदाकार होना, प्रत्याहार द्वारा इन्द्रियों को पूर्णतः विषयों से मुक्त करके आत्मा के वशीभूत हो जाना। यहीं से समुचित धारणा सम्भव हो पाती है।

प्राचीन पतंजलि योग विद्या विश्व प्रसिद्ध होना

भारत की यह प्राचीन पतंजलि योग विद्या आज पुनः तीव्रता से विश्व स्तर पर विस्तार पा रही है। इसके पीछे है विद्या का अत्यधिक व्यावहारिक होना। यह प्रत्येक मानव के लिए शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक तथा सांसारिक रूप से हर स्थिति में लाभदायक है, इसलिए हर कोई इसमें अपना हित अनुभव करता है। भारत प्राचीनकाल से ही योग का प्रमुख केन्द्र रहा और पुनः यह योग के सहारे विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है। भारतीय योग वास्तव में धर्म-सम्प्रदाय से पूर्णतः मुक्त जीवन विज्ञान के अतिनिकट है, इस पर  वैश्विक स्तर पर एक ही विज्ञान सम्मत सूत्र लागू होता है, इस कारण अधिक प्रभावशाली है।

पतंजलि योग – ध्यान का उद्देश्य

ध्यान तथा समाधि आध्यात्मिक उपलब्धि का हिस्सा है। जिससे आत्मा (चेतना) परमात्मा (परम चेतना) के अस्तित्व व सत्य का अनुभव करती है। प्रत्याहार-धारणा-ध्यान मनुष्य के मन-मस्तिष्क की शांत निर्विचार अवस्था है। यही मस्तिष्क की अल्फा तरंग अवस्था कही जाती है। योगाभ्यास की प्राथमिक अवस्था के साथ अल्फा तरंगों का जगना प्रारम्भ हो जाता है और धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए ध्यान अवस्था तक यह प्रखरता पा लेती है, इन्हीं तरंगों से जीवन में प्रखर व्यक्तित्व का जागरण होता है, शांति-शुभत्व का विकास होता है।

ध्यान की यह भारतीय प्रणाली उपलब्धियों की दृष्टि से श्रेष्ठतम होने के कारण सर्वदेशीय मान्य है। क्योंकि यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा के सहारे शरीर और मनःस्थिति उच्च अवस्था के दैवीय प्रवाह को सहने के लिए योग्य बनता है। इस प्रकार ध्यान करने पर साधक की आंतरिक अवस्था उच्च हो जाती है और वह लोक सेवा के संकल्प उठाने के योग्य बन जाता है, जो हमारे भारतीय योग-ध्यान का उद्देश्य है।

शरीर-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार

आज की जिंदगी विसंगतियों से घिरी है। जीवन में मानसिक, भावनात्मक, शारीरिक अनेक प्रकार के तनाव से व्यक्ति घिरा है, जिससे मुक्त होने में यह योग-ध्यान अत्यधिक सहायक है। निरंतर योग-ध्यान से शरीर-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता में सहयोगी है। आइये! हम सब मिलकर इसका नियमित अभ्यास करें, जीवन को दिव्य ऊर्जा से भरें।

गीता प्रवचन एवं गोविन्द ध्यानम्