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पंच कोष में संतुलन  कैसे होगा ?

पंच कोष में संतुलन  कैसे होगा ?

पंच कोष में संतुलन  कैसे होगा

पंच कोष में जागरण व संतुलन तभी सधता है जब साधक का कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, स्वर योग, क्रिया योग, प्रार्थना योग आदि के सहारे व्यक्तित्व संतुलन प्रारम्भ होता है।

पंच कोष में संतुलन  कैसे होगा ?

आसक्ति एवं अहं का भाव नहीं

पंच कोष में जागरण व संतुलन तभी सधता है जब साधक का कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, स्वर योग, क्रिया योग, प्रार्थना योग आदि के सहारे व्यक्तित्व संतुलन प्रारम्भ होता है। कर्म योग निस्वार्थ भाव से किया गया वह कर्म है, जिसमें कोई आसक्ति एवं अहं का भाव नहीं है। इसमें देवत्व के प्रति स्वयं को समर्पित कर कर्म के नियम अनुरुप श्रमदेव की उपासना की जाती है। कर्म में एक विशेष गुण शुद्धतम व निष्काम भाव का होना आवश्यक है, यही कर्म एक दिन जीवन में वैराग्य की भावना लाता है।

श्रवण, कीर्तन, सुमिरन, पादसेवन, अर्चना, वंदना, दास्य, साख्य और आत्म-निवेदन अर्थात् आत्मा-समर्पण

 

इसीप्रकार शरीर से आगे बढ़कर जब मनुष्य भावनाओं को वश में करता है तो भक्ति योग उदय होता है। यही भक्ति दैवीय प्रेम एवं समर्पण सिखाता है। भक्ति का देवत्व के प्रति समर्पण ‘परम प्रेम’ है। भक्ति की कुल नौ विधियां हैं-

श्रवण, कीर्तन, सुमिरन, पादसेवन, अर्चना, वंदना, दास्य, साख्य और आत्म-निवेदन अर्थात् आत्मा-समर्पण। इस प्रकार साधक भक्ति भाव अवस्था के सहारे ज्ञानयोग की धारा में प्रवेश करता है।

ज्ञान योग अपनी वास्तविक प्रकृति, अहं एवं ब्रह्मांड के विषय में निरंतर परीक्षण के माध्यम से यथार्थ को जानने की विधि है। ज्ञान गहराई में स्थित जीवन संबंधी सत्यों को उजागर करती है। जीवन के सच्चे अर्थ  को समझने का यह एक बेहतर प्रयोग है।

‘‘करिष्ये वचनम तव’’

क्रिया योग वह व्यवस्था है, जिसमें मंत्र, ध्यान द्वारा जीवनी शक्ति को शान्त करने और शरीर एवं मस्तिष्क पर नियंत्रण एकाग्रता की तकनीकें सन्नहित  हैं। शुद्ध ईश्वर के साथ जुड़ जाने की प्रयोग विधि है यह। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के साथ भी इस प्रयोग को अपनाकर उसे ‘‘करिष्ये वचनम तव’’ के संकल्प  से जोड़ा था।

इसी मार्ग के सहारे भी होता है सारे कोष का जागरण

इसी परम्परा में स्वस्थ एवं समृद्ध जीवन के लिये स्वर योग आता है। मनुष्य में श्वांस चक्र प्रत्येक 60 मिनट से 120 मिनट में एक नथुने से दूसरे की ओर बदलता है। दायां स्वर सूर्य स्वर, बायां पिंगला नाड़ी अर्थात् चंद्र स्वर कहा जाता है और सुषुम्ना स्वर-सरस्वती वायु कही जाती है, जो कि दोनों नथुनों से एक साथ बहती है। इस मार्ग के सहारे भी कोष का जागरण किया जा सकता है।

  1. अन्नमय कोष

पर सबमें अनुभूति कराने वाली पांच इंद्रियों को मन द्वारा एकाग्रचित्त करने की परम्परा है। यही इन्द्रियों और मस्तिष्क का परस्पर योग है। ये सभी प्रयोग शरीर के पंचकोषों को जगाने में सहायक बनते हैं। इन कोषों में प्रथम है अन्नमय कोष। योगाभ्यास से अपने शरीर की मांसपेशियों को सुडौल बनाने के साथ सम्पूर्ण अणुओं में समाई ऊर्जा भी जगाई जा सकती है।

  1. प्राणमय कोष

दूसरा कोष प्राणमय है, जो कि प्राण या जीवनी शक्ति से मिलकर बना है। यह ऊर्जा शरीर है। योगासन और प्राणायाम करते समय साधक प्राणमयकोष को भी संतुलित कर रहा होता है।

  1. मनोमय कोष

मनोमय कोष का अर्थ सभी कोशिकाओं में विद्यमान मन से है। आहार शरीर की तरह मनः शरीर भी होता है। मनुष्य शरीर के बीच की अंतःक्रिया में योग से संतुलन लाते हैं। इससे शांत व्यक्तित्व जगता है।

  1. विज्ञानमय कोष

विज्ञानमयकोष हमारे अस्तित्व का सूक्ष्म स्तर है। यह कोष जगने पर मनुष्य आत्मा के विशाल अस्तित्व की दिशा में चल सकता है। इस अवस्था में जीवन में आनन्द स्थाई बनता है।

वास्तव में यही आनंदमय अवस्था बनी रहने पर व्यक्ति समय और स्थान से परे हो जाता है। योग द्वारा ‘परम मिलन’ यही तो है। आइये! हम सब योगाभ्यास द्वारा स्वयं को शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर ऊंचा उठायें। जीवन कोष की ऊर्जा से जुड़ें और स्वस्थ-सौभाग्यमय कहायें।

डॉ अर्चिका दीदी 

Mauritius Special Meditation Retreat by Dr. Archika Didi