यह नौरात्रि पर्वोत्सव मातृ शक्ति का माह है, प्रत्येक व्यक्ति बढ़-चढ़कर विशेषकर हिन्दू परिवार नवरात्रि पर्व मनाता है। साधनात्मक वातावरण का यह माह पूरी तरह देवी माँ जगदम्बा की आराधना के प्रति समर्पित है। इसी के साथ चैत्र रामनवमी है, जिस दिन महान नारी माँ कौशल्या ने विश्व को दिशा देने के संकल्प से भगवान श्रीराम का प्राकट्य किया। रामनवमी पर्व शक्ति की पहचान व निराशा से मुक्ति का दिन तो है।
ऋषि वेदव्यास ने शक्ति को नारी रूप में देखते हुए कहा कि प्रत्येक मनुष्य के अंदर आधा भाग पुरुष और आधा भाग नारी का है, अर्थात् शिव और शक्ति का। जहां करुणा, ममता, कोमलता, मधुरता, परोपकार और उदारता आदि दिखाई देते हैं, ये गुण शक्ति व माँ के, गौरी माँ के हैं। पुरुष बहादुर, निर्भीक, रुद्र बनकर कमजोर को उठता है, यही शिव है। कहा गया है कि मनुष्य का पहला गुरु माँ ही है। यद्यपि माता और पिता दोनों ही बच्चे को संभालते हैं, किन्तु माँ बच्चे को 9 महीने गर्भ में धारण करने के कारण अधिक निकट होती है। माँ अपने श्वास से श्वास बांटकर, अपने भोजन के हिस्से से अपने उदर में पलने वाले बच्चे में जान डालती है। इस प्रकार शिशु को सशक्त करने का कार्य केवल माँ ही करती है। इसलिए कहा गया है-
माँ से बढ़कर कोई गुरु नहीं है। पत्नि से बढ़कर कोई दोस्त, बहन से बढ़कर कोई सम्मानित नहीं है। यदि हम नवरात्रि में माँ जगदम्बा का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो हमें मातृशक्ति का सम्मान करना आना चाहिए।
हम फिर कहेंगे कि हिन्दुस्तान में माँ जगदम्बा, महाकाली, सरस्वती को खूब पूजा जाता है, किन्तु उसके बाद भी लोग गर्भ में बेटी को समाप्त करा देते हैं। आश्चर्य कि महिलाओं को भी इसमें मुश्किल नहीं होती। ऐसे में शक्ति की साधना कैसे फलित हो सकती है। हमारे देश में स्त्री को महिला इसीलिए कहा जाता है कि वे अत्यत महती पूजनीय होती है। नारी अर्थात् नारीत्व शक्ति वाली। व्यास ऋषि ने इसी देवी की शक्ति को सम्मान दिया है। वे कहते हैं-
कहते हैं नारी साथ देने वाली हो, तो विजय प्राप्त हो जाती है। जिन्दगी में चमत्कार होते हैं। भारत नारी प्रधान देश था। देश में अनेक महान स्त्रियों के रूप में मीरा, दुर्गा, सीता, रानी लक्ष्मी बाई, माँ गांधारी ने नेतृत्व व त्याग का संदेश दिया। अतः इस शक्ति को अपने अंदर जगाइये। नारी सेवा को अपना कर्त्तव्य बनाइये। नारी को दिया गया विविध रूपों में सम्मान हमारे भाग्य को जगाता है। वह नारी चेतना ही है जो घर-परिवार के वातावरण को सुखमय बनाये रखने के लिए हमें जड़ी-बूटियों, औषधियों, उत्पादों, यज्ञों व मंत्रें से जोड़ती हैं और सम्पूर्ण परिवार सुखमय हो उठता है। सदियों से ऋषि प्रेरित परम्पराओं को वह आज भी ऐसे छोटे-छोटे प्रयोगों से जीवित रखे हुए है। जिससे हमारा भाग्य बदल सके।
माँ ही है जो हमें बताती है पवित्र अग्नि में आहुति देना, गऊ के लिए गऊ ग्रास निकालना, ग्रहों की दशा क्रूर हो तो गऊओं को हरा चारा खिलाना। अपने घर में दीप जलाकर गाय का घी, चन्दन पाउडर, गुग्गल, लोबान और गुड़ मिलाकर मिट्टी के पात्र में गाय के गोबर के बने उपले जला कर 5 या 7 आहुतियां गुरु मंत्र बोलकर उपलों की आग में देना। जिससे घर का औरा ठीक हो सके, ऐसे अनेक उपायों से ग्रहों के दुष्प्रभाव हटाना वही बताती है। आइये! हम सब मातृशक्ति को नमन करें, घर-परिवार को मातृ अनुशासन, मातृकृपा की छाया में सुख-शांति-सौभाग्य से भरें।