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त्याग की साक्षात् मूर्ति है माँ

त्याग की साक्षात् मूर्ति है माँ

त्याग की साक्षात् मूर्ति है माँ

माँ ने सन्तान को जीवन में क्या नहीं दिया? (What did the mother not give to the child?)

माँ केवल शब्द नहीं, माँ स्नेह है, प्रेम है, वात्सल्य है, माँ बच्चे की मुस्कराहट है, माँ ममता की आहट है, माँ बलिदान है, माँ त्याग है, माँ शिशु की प्रथम मित्र है। पहली नजर है, दुनिया का प्रकाश दिखाने वाली जननी है, जीवन को दिशा देने वाली अवनि है माँ। तुमने सन्तान को जीवन में क्या नहीं दिया? तुम शिशु का श्वास हो, उसके जीवन की आस हो, भविष्य का विश्वास हो, उसकी सफलताओं का प्रयास हो, माँ तुम सन्तान के लिए सब कुछ हो।

माँ का बलिदान

भारत में ऐसी अनेक पौराणिक कथाएं हैं, जिनमें संतान के लिए माँ ने अपने जीवन के सभी सुख बलिदान कर दिये। ध्रुव की माता सुनीति ने अपने पुत्र को हरिदर्शन के लिए न केवल प्रोत्साहित किया, अपितु अपने पति राजा उत्तानपाद द्वारा अनेक यातनाएं भी इस कारण सहीं क्योंकि वह ध्रुव का सर्वदा पक्ष लेती थी।

उत्तानपाद स्वयंभुव मनु और शत्रुरूपा के पुत्र थे, किन्तु ईश्वर की परम सत्ता को न मानकर स्वयं को ही सर्व प्रभु सम्पन्न मानते थे। ध्रुव जब अपनी दूसरी माँ सुरुचि की गोद में बैठे तो उसने अपमान करके उसे गोद से उतार कर कहा, ‘‘मेरी गोद में बैठना है तो मेरी कोख से जन्म ले।’’ ध्रुव ने अपनी माँ सुनीति को जाकर यह घटना बताई तो सुनीति ने कहा, ‘‘श्रीहरि की गोद में बैठो, जो सबसे श्रेष्ठ व सुखद गोद होती है।’’

ध्रुव श्रीहरि की तलाश में वन-वन गये, तपस्या की और अन्ततः श्रीहरि के दर्शन किये। उसकी माँ सुनीति ने उसके लिए बहुत कष्ट सहे।

सर्वोतम संस्कार देती है माँ

माँ देवकी ने श्रीकृष्ण को आठवीं सन्तान के रूप में जन्म दिया। आकाशवाणी से उसे मालूम था कि कंस के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए स्वयं नारायण आठवीं सन्तान बनकर उसके गर्भ से कृष्ण के रूप में जन्म लेंगे। देवकी ने सात सन्तानों को जन्म देने में प्रसव पीड़ा इसीलिए सही कि जग कल्याण के लिए कृष्ण उसकी कोख से जन्म लेंगे। शिवाजी को उत्तम संस्कार उसकी माता से ही मिले। विनोवा भावे की माता का सभी सन्तानों से अथाह प्रेम था।

विनोभा जी के जीवन को श्रेष्ठ मार्ग पर प्रेरित करने का श्रेय उनकी माता को जाता है। गुरुदेव जी महाराज की माता कर्पूरी देवी जी ने उनको उत्तम संस्कार देकर उनके मन में भगवान शिव के प्रति असीमित श्रद्धा जागृत की। शिवकृपा से गुरुदेव जी ने जनमानस के लिए सैंकड़ों परोपकारी कार्य किये हैं और निरंतर कह रहे हैं। ऐसे त्याग, प्रेम व स्नेह के अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं।

माँ त्याग की मूर्ति है

यथार्थ में भारत में प्रत्येक माँ त्याग की मूर्ति है, जो अपने दुःख को भूलकर भी सन्तान को सुख-सुविधा देने में सर्वदा तत्पर रहती है। यहां ऐसी ही एक सत्य त्यागमूर्ति की चर्चा यहां मैं कर रहा हूँ, जिनसे मैं परिचित हूँ और स्वयं उसे देखा है। वह एक मध्यवर्गीय परिवार में अपने एक आठ वर्ष के बेटे और पति के साथ खुशी से जीवन बता रही थी और एक दिन ऐसा वज्रपात गिरा कि पति की दुर्घटना में मृत्यु हो गई। यह सब अचानक हो गया, अचानक मृत्यु बहुत कष्ट देती है।

इंसान हंसता खेलता घर से जाते समय कहे, मैं अभी दो घंटे में आ रहा हूँ और वह लौट कर न आये, तो पत्नी के लिए इंतजार सारी उमर का इंतजार बन जाता है। इसी कारण से माँ को त्याग की साक्षात मूर्ति कहते है।

माँ अपने बच्चे के लिए जीती है

यह अमेरिका तो है नहीं, जहां पति का पत्नी को अधिकार है कि वे जब चाहें, तलाक दें और दूसरी शादी कर लें। वहां तो ऐसे राष्ट्रपति भी हुए हैं, जिन्होंने चार-चार विवाह किये। लोगों, रिश्तेदारों ने कोमल (काल्पनिक नाम) को भी कुछ मीनों के बाद कहना शुरू कर दिया। शादी कर लो, आयु भी अभी क्या है? किन्तु वह विश्वास से एक टूक जवाब देती, अब मैं इस अपने बच्चे के लिए जिऊंगी। इसकी जिन्दगी सवारूंगी।

उस समय कार्तिक (काल्पनिक नाम) तीसरी कक्षा में पढ़ रहा था। क्षेत्र के प्रसिद्ध कान्वेंट स्कूल थ। मासूम सा चेहरा, उसे तो अभी मृत्यु के रहस्य भी नहीं पता थे।

कोमल ने स्वयं को सम्भाला। प्रतिदिन प्रातः जल्दी उठकर बच्चे को तैयार करना, खाना बनाना, स्वयं तैयार होकर समय पर तैयार होकर बच्चे को स्कूल छोड़ना, अध्यापिका थी। स्वयं स्कूल समय पर पहुंचना।

दिन गुजरे-महीने गुजरे और साल गुजरते गये। कार्तिक ने दसवीं, बारहवीं में अच्छे अंक प्राप्त किये और कोमल ने उसे बी-टेक करने के लिये दिल्ली के इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश दिलवाया। जो उसने चार वर्षों में सफलता से पूर्ण कर लिया। क्योंकि कार्तिक की परफारमेंस अच्छी थी।

उसे विदेशी कम्पनी में अच्छी नौकरी मिल गई। किन्तु उसके मन में यह लग्न घर कर गई कि मुझे एमबीए करना है। इस बीच कोमल ने जीवन के सब शौक छोड़ दिये। एक धर्म गुरु से दीक्षा ली और मन को ईश्वर से जोड़ लिया। उसी में मग्न रहती। कार्तिक से कई बार कहती शादी कर ले और अपनी गृहस्थी सम्भाल। किन्तु उसे तो एम-बीए की धुन थीं और वह भी विदेश से करनी है और अंततः हुअ भी ऐसे ही।

कनाडा में मान्ट्रीपल नगर में एम-बीए में प्रवेश मिला लेकिन खर्चा लाखों रुपये। सामान्य परिवार इतनी राशि कहा से लाता। कोमल के सम्बन्ध काम आये और उसे राशि की व्यवस्था कर कार्तिक का एमबीए की शिक्षा पूरी की। यह है एक सामान्य माँ की अपने संतान के लिये त्याग की सच्ची कहानी।

परम पूज्य सुधांशु जी महाराज

गुरुदेव कहा करते हैं, जहां मन में दृढ़ता हो, परिश्रम करने का स्वभाव हो, गुरु में आस्था हो और ईश्वर में विश्वास हो तो सफलता व्यक्ति की प्रतीक्षा करती है। कोमल ने कार्तिक के जीवन को शिखर तक पहुंचाकर गुरुदेव जी के इस कथन को सत्य सिद्ध कर दिया।

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