कहा जाता है कि व्यक्ति में एक खास बात होनी चाहिए, जो श्रद्धा को अपनाना चाहता है। आप अपने आपको सूप जैसा बनाओ, छलनी जैसा नहीं। सूप और छलनी दोनों ही आपके काम आती हैं, लेकिन दोनों का ढंग अलग-अलग है। छलनी से आटा छानतें हैं, लेकिन जो सार वस्तु है, महत्व की वस्तु है, उसे छानकर छलनी नीचे गिरा देती है, जो कचरा है उसको संभाल कर रख लेती है।
यह छलनी की आदत है, लेकिन सूप की आदत इससे बिल्कुल उल्टी है। सूप में, छाज में, ये विशेषता है कि छाज (सूप में) जो वस्तु रखेंगे, उसको लेकर जब साफ करते हैं, और सूप को पकड़ करके जैसे ही हिलाते हैं, छाज को जैसे ही हिलाया जायेगा, तो जो कूड़ा कचरा होता है, उसे वो उड़ा देता है, लेकिन जो अच्छी चीज है, उसे अपने पास रख लेता है। ये नियम है।
महान लोग, महान मार्ग पर चलते-चलते संसार के लिए रास्ता छोड़कर गये हैं, उनके मार्ग पर चलने की श्रद्धा जिनके अंदर जाग गयी, वो अच्छाई को ढूंढेंगे। दो मक्खियां हैं। एक मक्खी वो है, जिसे शहद की मक्खी कहा जायेगा जब भी ढूंढेगी फूलों को ही ढूंढेगी, लेकिन एक मक्खी और भी है, उस मक्खी की आदत है कि जब फूल दिखाई देगा तो फूल पर बैठेगी, और जैसे ही उसने देखा कि फूल के पास में कूड़ा भी पड़ा हुआ है तो फूल से उड़ेगी, और कूड़े पर जा बैठेगी।
लेकिन शहद वाली मक्खी फूल मिले या न मिले, लेकिन कूड़े पर नहीं बैठेगी। गंदगी को नहीं ढूंढेगी। भले ही फूल न मिल सके, शहद पाने का रास्ता न मिल सके, लेकिन कूड़ा तो पसन्द है ही नहीं। आप किसका चुनाव करेंगे, ये आप पर निर्भर है।
अगर आपके अंदर सच्ची श्रद्धा जागी हुई है, तेा फिर कूड़ा आप देखेंगे ही नहीं। गंदे लोगों का चुनाव आप करेंगे ही नहीं। आप का मार्ग गन्दा मार्ग हो ही नहीं सकता। जब भी आप चुनाव करेंगे, अच्छा मार्ग ही चुनेगें। गन्दे मार्ग पर तो आप जा ही नहीं सकते, क्योंकि आपके अंदर की श्रद्धा खींच रही है न। और यदि, अंदर श्रद्धा नहीं है, यह बात निश्चित है कि फिर सत्संग में लेकर के आइये किसी इंसान को। आदमी कहेगा कि इससे ज्यादा बोर होने वाली जगह दुनिया में कहीं है ही नहीं। सत्संग में आकर के ज्यादा परेशान होता है, लेकिन जिसके जन्म-जन्मान्तर की पुण्यों की स्थिति जागृत हो जाती है।
ज्ञानी महानपुरुषों का संग कीजिए। श्रद्धा होनी चाहिए। ज्ञानी महापुरुषों का संग क्या करता है? मनुष्य ऐसा प्राणी है कि उसे जैसा सिखाया जाता है, वह वैसा ही हो जाता है। न इसकी अपनी कोई भाषा है, अपने अंदर उठने वाले न कोई गुण। श्रद्धा आवश्यक है, मगर उससे भी अधिक आवश्यक है महान संगति।
चाणक्य चन्द्रगुप्त को मिला, तो एक नया चमत्कार संसार में घट गया। भेड़ चराता हुआ बच्चा हिन्दुस्तान का सम्राट बना क्योंकि एक गुरु की कृपा उसे मिल गयी। गुरु रामदास ने मिट्टी से खेलते बच्चे को छत्रपति शिवाजी बनाकर संसार के सामने खड़ा कर दिया। याद रखो महान बनने के लिए अच्छे लोगों की संगति और उनमें श्रद्धा बहुत आवश्यक है। महानता के यही सोपान है।
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