fbpx

ध्यान का कोई धर्म नहीं है

ध्यान का कोई धर्म नहीं है

‘ध्यान’ का कोई धर्म नहीं है

‘ध्यान’ का कोई धर्म नहीं है, इसको किसी भी जाति, धर्म और सम्प्रदाय के लोग कर सकते हैं। किसी भी विचारधारा का पुरुष, स्त्री हर कोई कर सकता है। पर ध्यान के श्रेष्ठ लाभ प्राप्त करने के लिए इसका प्रतिदिन नियमित अभ्यास जरूरी है।

साधक द्वारा अपने ‘मन’ को चेतना की एक विशेष और आदर्श अवस्था में लाने का प्रयास ही ध्यान है। ‘ध्यान’ लगाने का उद्देश्य हर साधक का अलग-अलग होता है। इससे मन को शांति मिलती है, जीवनी शक्ति (प्राण) का निर्माण, करुणा, प्रेम, धैर्य, उदारता आदि उदात्त मानवीय गुणों का विकास होता है।

भारत में अनादिकाल से ‘ध्यान’ का प्रयोग होता चला आया है। चित्त को किसी वस्तु या स्थान पर केन्द्रित करे और बाह्य गतिवधियों का साधक पर एकदम प्रभाव न पड़े वही ‘ध्यान’ की स्थिति होती है। यह विचार रहित होने की प्रक्रिया है। ध्यान की अवस्था में साधक अपने आसपास तथा स्वयं को भूल जाता है।

वर्तमान में जीवन जिस गति से भाग रहा है, उतनी ही रफ्रतार से व्यक्तियों में तनाव और अन्य व्याधियां भी बढ़ती जा रही हैं। लेकिन ध्यान का अभ्यास करने वाले साधक के मन व शरीर में विशेष सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने लगता है।

बाहरी परिवर्तन में चेहरे पर शांति, आकर्षण, दिव्यता दिखाई देता है और भीतरी परिवर्तन के क्रम में अन्तःकरण संतुष्ट, प्रसन्नता, आत्मीयता महसूस करता है। इस अवस्था में प्राणतत्व (ऊर्जा) शरीर की सभी कोशिकाओं में भर जाता है। शरीर में प्राणतत्व की अधिकता होने से जीवन में प्रसन्नता, शांति और उत्साह का संचार होता है।
ध्यान से शारीरिक और मानसिक ऊर्जा के आंतरिक ड्डोत में वृद्धि होती है। सकारात्मक और अच्छा व्यवहार करने वाले सेरोटोनिन हारमोन अधिक बनने लगते हैं। उच्च रक्तचाप कम हो जाता है। तनाव के चलते होने वाला सिरदर्द, अनिद्रा तथा जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है।

साधक को मानसिक लाभ

ध्यान के साधक को मानसिक लाभ के अंतर्गत बहुत होते हैं। ध्यान से साधक की आंतरिक मनोवृत्तियों में प्रसन्नता का विस्तार होता है। बुद्धि कुशाग्र होती है और जीवन में सर्वतो मंगल भावना का विस्तार होता है।

‘ध्यान’ मस्तिष्क की तरंगों के स्वरूप को अल्फा स्तर पर ले आता है, जिससे मस्तिष्क पहले से अधिक कोमल और ग्राह्य क्षमता का अत्यधिक संवाहक हो जाता है। ध्यान मस्तिष्क के आंतरिक रूप को स्वच्छता ओर पोषण प्रदान करता है। जब व्यक्ति व्यग्र, अस्थिर ओर भावनात्मक रूप से परेशान हों ऐसे में ‘ध्यान’ लगाने से शांति मिलती हुई अनुभव होती है।

साधक को आध्यात्मिक लाभ

ध्यान के अनेक आध्यात्मिक लाभ भी हैं। ‘ध्यान’ का कोई धर्म नहीं है, इसको किसी भी जाति, धर्म और सम्प्रदाय के लोग कर सकते हैं। किसी भी विचारधारा का पुरुष, स्त्री हर कोई कर सकता है। पर ध्यान के श्रेष्ठ लाभ प्राप्त करने के लिए इसका प्रतिदिन नियमित अभ्यास जरूरी है।

‘ध्यान’ चेतना की आंतरिक यात्र है, इसमें चेतना, चैतन्यता बाहर से भीतर की ओर, शरीर की परिधि से केन्द्र की ओर, दूसरों से अपनी तरफ दृश्यमान (दिखाई देने वाली) से अदृश्य की ओर जाती है। अर्थात् अस्तित्व का एक जीवन्त क्षण है, जिसमें हम जी रहे होते हैं और जिसमें समस्त विश्व समाया हुआ है, उससे जुड़ना और उससे अलग होना और उसमें ही जीना ‘ध्यान’ है। ‘ध्यान’ समाधि का द्वार है अर्थात् ध्यान से होते हुए ही हम ‘समाधि’ तक पहुंच सकते हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ध्यान जीवन की चैतन्य ऊर्जा से जुड़ा ऐसा प्रयोग है जिससे व्यक्ति को ईश्वरीय सहायता मिलती है। ध्यान से शारीरिक, मानसिक तथा अन्त में आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति होती है। दैहिक, दैविक और भौतिक संतापों का शमन होता है और साधक के सौभाग्य के द्वार खुलते हैं। इसलिए मेरा सुझाव है कि ‘ध्यान’ की साधना अवश्य करें और मानव जीवन का आनंद उठायें।

 

Online Meditation Courses 

Immune Booster Program

Yogic Living Book

Kailash Mansarovar Yatra