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माघ पूर्णिमा 2021 विशेष | कभी बुझे नहीं श्रध्दा -विश्वास की अग्नि

माघ पूर्णिमा 2021 विशेष | कभी बुझे नहीं श्रध्दा -विश्वास की अग्नि

कभी बुझे नहीं श्रध्दा -विश्वास की अग्नि (माघ पूर्णिमा 2021 विशेष)

भगवान कहते हैं-‘‘मेरा कोई अपमान कर ले तो उसे क्षमा मिल सकती है, मेरे प्रतिनिधि का अपमान क्षमायोग्य नहीं है।’’ गुरु भगवान का प्रतिनिधि ही है।

कभी बुझे नहीं श्रध्दा -विश्वास की अग्नि  (माघ पूर्णिमा 2021 विशेष)

भगवान कहते हैं-‘‘मेरा कोई अपमान कर ले तो उसे क्षमा मिल सकती है, मेरे प्रतिनिधि का अपमान क्षमायोग्य नहीं है।’’ गुरु-भगवान का प्रतिनिधि ही है। गुरु के प्रति जितनी गहरी श्रद्धा होगी, उतना ही ज्ञान फलीभूत होता जाएगा। उतना ही जीवन सुख-शांति, समृद्धि, उन्नति से भरता जायेगा। इसी श्रद्धा के सहारे शिष्य अपने जीवन का रूपांतरण करता जाता है। सद्गुरु के आशीषों के साथ देवी-देवता भी अपना आशीष देते हैं। तब शिष्य अध्यात्म मार्ग पर बढ़कर परमात्मा से अपने को सहज जोड़ पाता है, अंततः अनेक दिव्य शक्तियां गुरु के माध्यम से शिष्य के जीवन को धन्य करने लगती हैं। | माघ पूर्णिमा |

गुरु व ‘सद्गुरु’ की महिमा अनन्त

गुरु व ‘सद्गुरु’ की महिमा इसीलिए तो अनन्त एवं अतुलनीय मानी गयी है। कबीर भी तो यही कहते हैं। उनका ‘लोचन उघाड़ने’ का आशय शिष्य की पात्रता का सतत विकास ही तो है। ‘सद्गुरु’ को भगवान का प्रतिनिधि कहा गया है। क्योंकि वे लोगों को सद्मार्ग पर चलना सिखाते, सान्निध्य  में आये शिष्यों को दिव्य ज्ञान देते हैं। जैसे-जैसे शिष्य की पात्रता विकसित होती है, श्रद्धा-भावना  बहने लगती है, वैसे-वैसे गुरु आगे का मार्ग दिखाते हैं। इस प्रकार एक दिन उस स्थिति में शिष्य को लाकर खड़ा कर देते हैं, जहां पर अंदर ज्ञान व आनंद का सागर हिलोर मारता है। पर हर शिष्य का अपने गुरु की करुणा से जुड़ने के लिए श्रद्धा का संचार जरूरी है।

शिष्य में श्रद्धा जितनी गहन होगी, सद्गुरु की उतनी ही कृपा प्रभावी होगी। अपनी श्रद्धा की रक्षा करना शिष्य का काम है और अनुदान-वरदान देना गुरु का। सच कहें तो श्रद्धा और विश्वास का महत्व पूजा-उपासना से भी बढ़कर है। अतः शिष्य को चाहिए श्रद्धा की अग्नि को बुझने न दें। कहते भी हैं शिष्य गुरु के पास गहन श्रद्धा से जाये, गुरु की कभी अवज्ञा न करे, फिर गुरु कृपा बरसती ही है। जैसे कानून का अपमान करने वाले को सजा मिलती है, ऐसे ही गुरु का अपमान करने वाले को आत्म प्रताड़ना रूपी सजा भी भोगनी पड़ती है।

जब सद्गुरु रूठ जाएं तो

इसीलिए कहा गया कि जब सद्गुरु रूठ जाएं तो समझना चाहिए कि यह जिंदगी व किस्मत का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। कहते भी हैं रब को बाद में मना लेना, पहले अपने सद्गुरु को मना लें। सद्गुरु के द्वारा शिष्य को निखारने में अंदर की श्रद्धा ही काम करती है। कहा जाता है आध्यात्मिक भावदशा में गुरुशिष्य के मिलन अवसर पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश की शक्तियां गुरु में प्रकट होती हैं। इस अवसर पर गुरुआशीर्वाद से शिष्य में भक्ति, शक्ति, भाग्य का सहज उदय होता है। रोग और दुर्भाग्य दूर होते हैं, समस्याएं सुलझती हैं, शिष्य का प्रायश्चित पूरा होता है। नये जीवन का उदय होता है। अपने पूज्य सद्गुरुदेव इसी स्तर के हैं।

इसीलिए जब भी अवसर मिले तो गुरुशिष्य के इस महान मिलन को खोये नहीं। इसके लिए बस श्रद्धा-विश्वास बढ़ाते रहें, जिससे आंतरिक स्तर पर गुरु स्थापित होने का अवसर खोये नहीं। आइये! हम सब अपने गुरु से झोली फैलाकर सबसे पहले श्रद्धा-विश्वास ही मांगे, जिससे नाम जपने में बरकत हो और भक्ति में रस आए। जीवन का सौभाग्य उदय हो।

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