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जप से अजपा की यात्रा में श्वांस विधाान और ओंकार

जप से अजपा की यात्रा में श्वांस विधाान और ओंकार

जप से अजपा की यात्रा में श्वांस विधाान और ओंकार

यदि साधक अपने आप को पूरी तरह से ध्यान में रख सका, तो श्वांस, चित्त, जप की बारम्बारता सब एक धरातल पर काम करने लगते हैं और व्यक्तित्व का दिव्य निर्माण सम्भव बनता है।

जप से अजपा की यात्रा में श्वांस विधाान और ओंकार

स्त्रीत्व एवं पुरुषत्व ऊर्जा

हमारे अस्तित्व की नींव पुरुषत्व एवं स्त्रीत्व दोनों ऊर्जाओं के मूल में है। पक्षी के दो पंखों के समान सहज उड़ान के लिए दोनों अति आवश्यक हैं। यही शिव व शक्ति है। दोनों के मिलन से दिव्य चेतना का जागरण होता है, ठीक जैसे इड़ा व पिंगला से सुषुम्ना। इड़ा रीड़ की हड्डी के बाईं ओर एवं उसी के सदृश्य पिंगला दाईं ओर होती हुई गमन करती है। सुषुम्ना रीढ़ की हड्डी के मध्य में सात चक्रों को भेदती हुई जाती है, जिसके निचले सिरे पर मूलाधार चक्र एवं शीर्ष सिर पर सहड्डार चक्र स्थित है। इड़ा चंद्रमा की ऊर्जा से युक्त  है, यह स्त्रीत्व पक्ष है, जिसका प्रभाव शीतल होता है। जबकि पिंगला सूर्य शक्ति  से युक्त  है, यह पुरुषत्व ऊर्जा है। श्वांस की इन दो धाराओं से संचालित दोनों ऊर्जाओं का समान महत्व है।

सुषुम्ना का जागरण कैसे सम्भव है ?

इड़ा स्त्रीत्व गुणों जैसे रचना, वृद्धि, संरक्षण एवं भावनाएं, प्रेम, देखभाल, करुणा, क्षमा, स्वीकार्यता जैसी भावनाओं को और पिंगला पुरुषत्व सम्बन्धी गुणों को आत्मसात करने में सहायता करती है। इस प्रकार दोनों मिलकर शिव एवं शक्ति  ऊर्जा के प्रतीक बनकर आत्मा के लिए दैवीय द्वार खोलते हैं। इनका उद्देश्य जीवन ऊर्जा में संतुलन लाना है, ताकि सहज जीवन जिया जा सके। साधक दिव्यता अनुभव करते हुए, भगवान शिव की शक्ति पूर्ण आभा में अभिभूत होकर जब ध्यान में उतरता है तो आत्मा कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए प्रयाण करती है।

पूज्य गुरुदेव कहते हैं

इस श्वांस ध्यान के माध्यम से इड़ा, पिंगला में संतुलन लाने के प्रयास से सुषुम्ना का जागरण सम्भव बनता है। यहीं से साधक ध्यान के सहारे गहरे आंतरिक विश्राम में प्रवेश करता है।

श्वांस ध्यान के साथ मंत्र जप को शरीर में गहरी विश्राम-अवस्था वाले अभ्यासों में महत्वपूर्ण माना जाता है। यह तनाव कम करने में सहायता करता है और आंतरिक शांति को बढ़ाता है। इसके लिए आवश्यक है कि साधक नेत्र बंद करके आरामदायक अवस्था में बैठे। अपने चुने हुए मंत्र का जाप करे, गुरु द्वारा दिये गये मंत्र का जाप सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

जप से अजपा में कैसे और कब साधक प्रवेश कर जाता है

मंत्र-जाप तब तक करे, जब वह मंत्र आत्मसात होने लगे और साधक विश्राम की अवस्था का अनुभव करने लगे। इस तरह कुछ समय उपरांत मन ही मन जाप करने की भाव अवस्था बनने लगेगी और साधक सकारात्मक ब्रह्मांडीय सूक्ष्म कंपनों को अनुभव करने लगेगा। यहीं से साधक अजपा जप में प्रवेश पाता है। विशेषज्ञों के अनुसार अजपा जप की तकनीक स्वतः अंदर काम करती रहती है। एक प्रकार से क्रिया योग का अभिन्न अंग है अजपा। अजपा जप क्रिया योग की तैयारी में मदद करता है। श्वांस और मंत्र के प्रति जागरुकता के विकास में मदद करता है। मंत्र की निरंतर पुनरावृत्ति से अजपा प्रकट होता है। जाप के माध्यम से मंत्र को इतना गहरा बनाया जाता है कि व्यक्ति पूरी तरह मंत्र के साथ स्पंदित हो उठे।

अजपा का उद्देश्य क्या है

अजपा का उद्देश्य चित्त की ऐसी स्थिति तैयार करना है, जहां निर्धारित मंत्र चौबीस घंटे लगातार दोहराए जा सकें और मंत्र साधक के पूरे ध्यान पर छा जाए। काम कर रहे हों या खेल रहे हों, किसी भी कार्य को करते समय जप चलते रहने से यह क्रम अविश्वसनीय स्तर के केंद्रित दिमाग को जन्म देता है और तनाव के समय मानसिक अस्थिरता को रोकने में मदद करता है। शर्त है कि मंत्र श्वसन के साथ-साथ होना चाहिए।

मंत्र जब श्वांस में उतरकर आनंद अवस्था में प्रवेश करता है, तो किसी भी इंसान का श्वास अविश्वसनीय रूप से गिर जाता है, तब वह प्रकृति के साथ मन को शांत और गम्भीर बनाने में सफल होता है।

इस अवस्था में मंत्र जप के दौरान पूरे शरीर के हर हिस्से में कम्पन को महसूस करने की

स्थिति जन्म लेती है, जिससे मन नियंत्रित होता है।

ओम ( ॐ ) का जाप

किसी भी मंत्र को श्वास के साथ एकीकृत किया जा सके, तो अजपा में प्रवेश सम्भव बनता ही है। इसके लिए ‘ओम’ का व्यापक रूप से उपयोग किया जाना उत्तम है, क्योंकि यह मंत्र स्वाभाविक रूप से अंतःकरण से उत्पन्न होता है और श्वास लेने की वास्तविक गति से तत्काल तालमेल बैठा लेता है।

ओम मंत्र सर्वशक्ति मान सत्य का प्रतिबिंब है। यह ब्रह्माण्ड में व्याप्त कंपन का सबसे शुद्ध रूप है, इसे आदि-अनादि कहा जाता है, अर्थात् इसकी न कोई आदि सत्ता है और न ही कोई अंत है। शोध अनुसार इस ओम् मंत्र का जाप करते हैं, तो सकारात्मक ऊर्जा साधक के चारों ओर जमा होकर एक कवच बनाती है और नकारात्मक ऊर्जा से बचाती है। मंत्रमुग्ध होकर ‘ओम’ मंत्र का जाप करने से साधक के भीतर असीमित शक्तियों के द्वार खुलते हैं।

साधक ओंकार ध्यान व ओंकार मंत्र जप को अधिक गहराई तक लाने के लिए एक हवादार और शांत स्थान पर चटाई बिछाकर बैठे, आरामदायक आसन में बैठे, विशेष रूप से सुखासन पर आंखों को बंद करके बैठे। ओम जाप करना शुरू करते हुए, ‘ओ’ और ‘म’ पर समान रूप से बल दे।

सकारात्मक ऊर्जा को महसूस करें

मंत्र पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करें और जाप करते समय अपने अंदर व आसपास के कंपन को महसूस करें। इसप्रकार पूरा अस्तित्व एक साथ कंपित होता अनुभव होगा। तब चुपचाप बैठकर आस-पास के कंपन व मंत्र से प्राप्त सकारात्मक ऊर्जा को महसूस करें।

इस प्रयोग से आत्म-जागरण में मदद मिलती है। जो साधक प्रतिदिन सचेतन ध्यान व अजपा जप का अभ्यास करते हैं, स्वयं के बारे में ज्यादा जागरूक हैं, जिनका भावनाओं पर अधिक नियंत्रण है, हर समय ध्यान केंद्रित रहता है, उन्हें इस प्रयोग से वर्तमान क्षण का भरपूर लाभ पाने में मदद मिलती है। मानसिक रूप से अपने शरीर और सांस से पूरी तरह अवगत रहें कि श्वांस बाहर जा रही है, अंदर आ रही है। इस प्रकार यदि साधक अपने आप को पूरी तरह से ध्यान में रख सका, तो श्वांस, चित्त, जप की बारम्बारता सब एक धरातल पर काम करने लगते हैं और व्यक्तित्व का दिव्य निर्माण सम्भव बनता है।

 

डॉ. अर्चिका दीदी