‘ध्यान’ से स्वास्थ्य और उच्चस्तरीय चेतना का उदय
मन को नियंत्रित करने से सभी शारीरिक और मानसिक व्याधियां स्वयं दूर होने लगती हैं और ‘ध्यान’ का यही लक्ष्य है। ‘ध्यान’ अहंकार के मानकीकरण, अहम् के विसर्जन, चेतना के जागरण तथा जीवन के रूपान्तरण का महाविज्ञान है। इसलिए मन पर नियंत्रण आवश्यक है।
शरीर के समस्त रोगों में कहीं न कहीं मन का सम्बन्ध होता है। समस्त रोगों का उद्गम स्थल मन ही है। ‘ध्यान’ के पश्चात् मन का गुण और स्वभाव बदल जाता है। मन स्वास्थ्य रक्षक और रोगभक्षक भी है। मन चेतना के विकास का अंग है। नाड़ी मंडल, मस्तिष्क और चिंन्तन की सहायता से मन का कार्य सम्पन्न होता है। मन के कार्य का केन्द्र बिन्दु है ‘मस्तिष्क’। मस्तिष्क पूरे शरीर को नियंत्रित करता है। किसी प्रकार की असाध्य बीमारी होने के 3 या 6 महीने पूर्व मन के परमाणुओं में परिवर्तन शुरू हो जाता है।
मन को नियंत्रित करने से सभी शारीरिक और मानसिक व्याधियां स्वयं दूर होने लगती हैं और ‘ध्यान’ का यही लक्ष्य है। ‘ध्यान’ अहंकार के मानकीकरण, अहम् के विसर्जन, चेतना के जागरण तथा जीवन के रूपान्तरणका महाविज्ञान है। इसलिए मन पर नियंत्रण आवश्यक है।
सम्पूर्ण अचेतन को समग्र चैतन्य बनाने का कार्य करता है ‘ध्यानयोग’। श्वांस और मन दूध और पानी की तरह एक में मिले हैं। वैसे सम्पूर्ण अचेतन को समग्र चैतन्य बनाने वाले ध्यान के कई प्रयोग हैं।
ध्यान में मन विभिन्न प्रवृत्तियों से मुक्त होकर श्वांस-प्रश्वास सहित सतत सजग स्मृति में डूबा रहता है वैसी स्थिति में मन के द्वार खुलने लगते हैं। फ्रायड के अनुसार अचेतन मन में दमित, उपेक्षित और अव्यवस्थित विचारों का जमाव होने के कारण विध्वंसक तथा कुंठित भावनाओं का ध्रुवीकरण हो जाता है। पर ध्यान से विचार, चेतना तल पर आकर विसर्जित और विलीन होने लगते हैं।
अतः साधक शारीरिक रोग की स्थिति में तथा जीवनी शक्ति के अनुसार बैठकर, लेटकर या खड़े होकर, प्रत्येक स्थिति में रीढ़ को सीधा रखते हुए ध्यान करें। इस प्रकार शरीर को स्थिर, किसी एक आसन में 15 से 45 मिनट शांत, शिथिल तथा तनाव रहित छोड़ दें। पलकों को शिथिल कर धीरे से बंद करें। लेटने की स्थिति में सीधा लेटें। दोनों पैरों के मध्य 45 डिग्री तथा हाथ एवं बगल के मध्य 15 डिग्री का फासला रखें। हाथों को सीधा रखते हुए अंगुलियों को थोड़ा सा मोड़ें तथा शिथिलीकरण व शवाआसन की तरह अभ्यास करें। अभ्यास किसी योग्य तथा कुशल योग शिक्षक की देखरेख में करें। इस अभ्यास के बाद पलकों को खोलें।
वास्तव में ध्यान, योग और प्राणायाम हमारे ऋषियों की अनमोल धरोहर है। ध्यान से साधक का स्वास्थ्य भी उत्तम रहता है और उच्चस्तरीय चेतना का उदय होता है।