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ऊर्जामय शुरुआत का पर्व होली

ऊर्जामय शुरुआत का पर्व होली

ऊर्जामय शुरुआत का पर्व होली

‘‘होलिकोत्सव’’ मानवजाति का वैदिक कालीन पर्व माना जा सकता है। होली की पवित्र अग्नि में हवन करने का भी विधान है। होली में लोग हितैषी मूल्यों को आत्मसात कर अपने जीवन को पवित्रता के रंग से भरकर, जीवन को खुशहाल बनायें।

ऊर्जामय शुरुआत का पर्व होली

जीवन में हर्षोल्लास एवं उमंग का प्रतीक उत्सव है होली। इस पर्व पर सभी लोग ईर्ष्या, द्वेष को त्यागकर प्रेम के रंग-बिरंगे रंगों में रंगते हैं। होली के दिनों प्रकृति भी अपने रंगों में होती है। वह भी भावपूर्ण हो पर्व मनाती है। प्रकृति के कण-कण में इन दिनों सुंदर फूल खिलते हैं। ऐसा लगता है मानो परमात्मा ने अपने प्रेम को पृथ्वी पर फूलों की मुस्कान रूप में बिखेरकर मनुष्य को प्रेरणा दी है कि तुम अपने गमों को भूलकर, एक नई उमंग और एक नया उल्लास लेकर जीवन को संवारो। साथ ही संकल्प लो कि जो हो गया सो हो गया, जो बीत गया वो बीत गया, अब बहुत हो गया, जो हो ली सो होली। अब नई जिंदगी शुरु करनी है।

होली पर्व में महत्वपूर्ण मनोविज्ञान है

वह यह कि जीवन की सारी समृद्धि खुशियों, उमंगों से अंकुरित होती है। यदि आप यह सोचना शुरू कर दें कि जो बीत गया सो बीत गया। अब नई जिंदगी शुरू करनी है, तो आपकी संकल्पशक्ति बढ़ेगी। होली में लोग रंग डालकर गले मिलकर यही तो कहते हैं। कहते हैं कि जो हो गई, सो होली’। अब नया वर्ष, नया प्रभात आया है, अतः हम नया सूत्रपात करेंगे। नए ढंग से जियेंगे। होली के दौर में गाने वाले विविध प्रकार के गीत, मस्ती की लहर, तबले की थाप, ढोल बजाकर गाना, नाचना नवउल्लास के लिए ही तो है। होली में अपने गिरे हुए मनोबल को फिर से उठाने की कोशिश ही तो लोग करते हैं।

अर्थात् ‘हुतं लाति इति होली’ जैसे किसानों द्वारा बोया बीज उसे कई गुणा अधिक मात्र में वापिस मिलता है। ऐसे ही भाव व विचार के बीज अंतःकरण में बोते हैं, तो वह भी कई गुना मिलना सुनिश्चित है। तो फिर क्यों न बोने से पहले उगने वाली अथवा वापस मिलने वाली फसल की गुणवत्ता के बारे में सोचें।

होली यही संदेश देती है कि अब सकारात्मक हो लें। अर्थात् जो हो लिया है, उसी की चिंता में मन कुंठित करके नहीं रहना, अपितु अतीत के गिले-शिकवे, खट्टी-मीठी एवं कड़वी यादों को भुलाकर नए उत्साह, उमंग एवं उल्लास के साथ, नए जीवन के स्वागत के लिए उठ खड़े होना ही होली पर्व का संदेश है।

होली पर्व प्रतीक है समरसतापूर्ण नए सृजन का

कोई अपना है न पराया, न कोई ऊंच है न नीच। तो सभी से नूतनता, माधुर्य, प्रेमपूर्ण होकर क्यों न मिलें। इसीलिए होली के विविध रंगों में रंगे सभी चेहरे समान दिखाई देते हैं। कोई श्रेष्ठ या अश्रेष्ठ नहीं होता। सभी होली उत्सव वैरभाव को छोड़ एक होकर प्रेम रंग में स्वयं को एकाकार कर मनाते हैं। हम भी अपने अंतःकरण को विविध स्नेहिल रंगों से सराबोर करते होली मनायें।

होली उत्सव है, हमारे यहां उत्सवों की संस्कृति है। हर थोड़े अंतराल बाद पर्व-त्यौहार आते हैं, ताकि हम अपने उदासी मन में किसी न किसी रूप में उल्लासमय ऊर्जा पैदा करें। अनेक स्थितियां ऐसी आती हैं जब हम उदास और निराश हो जाते हैं, परेशान हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में पर्व सुखदाई लगता है। होली का पर्व तो और भी अधिक सुखद पूर्णता लाता है और दुःख को कम करता है। होली को उल्लासपूर्वक मनाकर लोग जीवन में उल्लास, उमंग सुख, शांति, प्रसन्नता लाते हैं।

होली का उल्लास हमें सही दृष्टिकोण देता है

जीवन में अक्सर जब हम दुःख को सुख रूप में तथा सुख को दुःख की दृष्टि से देखने लगते हैं। तो ऐसे में होली का उल्लास हमें सही दृष्टिकोण अपनाने की चेतना देता है। साथ ही संदेश देता है कि यदि आप अपने अभाव को देखेंगे तो निराशा, उदासी और दुःख की मात्र बढ़ेगी। अतः अपने पास जो कुछ भगवान ने दिया है उसे कृपा समझकर स्वीकार करेंगे तो आपका दुःख कम हो जाएगा। होली उदासीनता, निराशा और डिप्रेशन से मुक्ति का भी पर्व है। वास्तव में यह विश्वव्यापी त्यौहार भावनात्मक थेरेपी का कार्य भी करता है।

विभिन्न देशों में इसके अलग-अलग नाम और रूप हैं। रंग-अबीर-गुलाल से भरे इस अनोखे पर्व में उल्लास की प्रधानता होती है। यह रंगपर्व भी कहलाता है। जो पारस्परिक प्रेम, एकता एवं समानता को बल प्रदान करता है। वेदों और पुराणों में भी इस पर्व का उल्लेख है। अतः ‘‘होलिकोत्सव’’ मानवजाति का वैदिक कालीन पर्व माना जा सकता है। इस अवसर पर होली की पवित्र अग्नि में हवन करने का भी विधान है। अतः होली में लोग हितैषी मूल्यों को आत्मसात कर हम सब अपने जीवन को पवित्रता के रंग से भर लें, जीवन को खुशहाल बनायें।

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