fbpx

शुद्ध बुद्धि देकर परमात्मा के आकर्षण में बांधती है गीता

शुद्ध बुद्धि देकर परमात्मा के आकर्षण में बांधती है गीता

शुद्ध बुद्धि देकर परमात्मा के आकर्षण में बांधती है गीता

गीता जीवन में हिलोर जगाने का ग्रंथ है, उस हिलोर में आनन्दित होने की दृष्टि गुरु जगाता है। गुरु को सुनते-सुनते अपने आपको भुला देने के भाव ही गीता का जीवन में प्रवेश है।

शुद्ध बुद्धि देकर परमात्मा के आकर्षण में बांधती है गीता

करिष्ये वचनं तौ

गीता जीवन में हिलोर जगाने का ग्रंथ है, उस हिलोर में आनन्दित होने की दृष्टि गुरु जगाता है। गुरु को सुनते-सुनते अपने आपको भुला देने के भाव ही गीता का जीवन में प्रवेश है। अर्जुन को देखें तो वह कृष्ण को सुनते सुनते अपने को भुला बैठा। कृष्णमय हो उठा और बोला करिष्ये वचनं तौ। वास्तव में जब उच्चतम आनन्द के भाव जीवन में उतरते हैं, तो कृष्ण का जीवन में जागरण होता है। जीवन में गीता का जागरण, गीता का जीवन में प्रवेश यही तो है। यह जीवन में उतरती है, तो ऐसा ही होता है।

गीता देती है शुद्ध बुद्धि (Gita gives pure intellect)

यह शुद्ध बुद्धि देती है, शुद्ध बुद्धि जिसके पास है, उस व्यक्ति के जीने का अंदाज निराला हो उठता है। वह फिर रास रंग में हो या युद्ध भूमि में फरक नहीं पड़ता। अन्यथा लाख सत्संग सुनों, लाख गीता पढ़ो, सब बेकार है। यहां तक कि साक्षात् गुरु व भगवान भी बैठा हो, तो भी हमारा जीवन ऊब उठेगा। श्रीकृष्ण भगवान को तो जानते व मानते हुए भी अर्जुन कितने समय तक ऊबते रहे। पर जब मन व चित्त कृष्ण में लगाया, तो कृष्णमय हो उठे। तभी श्रेय भी मिला और साधना में सिद्धि भरी सफलता भी मिली।

शुद्ध-बुद्धि और नियंत्रित मन

जब हम-आपकी जिंदगी में ऐसा क्षण आ जाये कि मन स्वयं के वश में हो जाये, इच्छा शक्ति शुभ दिशा में चलने लगे, समझना जीवन में कृष्ण उतर रहे हैं। अब दुनिया में कुछ भी मुश्किल नहीं है। अतः सब कुछ पाने के लिये शुद्ध-बुद्धि और नियंत्रित मन चाहिये। श्रीकृष्ण इन्हीं दोनों को संभालने, दिशा देने की प्रेरणा ही तो भरते रहे हैं।

नियंत्रण भाव होते है कई लाभ

शुद्ध-बुद्धि से व्यक्ति को हर रोज कृष्णत्व की दिशा में थोड़ा-थोड़ा अभ्यास अवश्य करते रहना चाहिए, इसके लिए जैसे भोजन श्रीकृष्ण को ध्यान में रखकर करें, भाव रखें स्वाद नहीं, सेहत चाहिये। व्यवहार भगवत्ता को ध्यान में रखकर करे और समझें हम बन गये शुद्ध बुद्धि वाले समझदार, आत्म नियंत्रण वाले इंसान। अर्जुन ने भी कृष्ण को पाने के लिए साहस के साथ इसी तरह श्रेष्ठता का ही चयन तो किया। जैसे हम अपने स्वयं के बारे में सोचने लग जाते हैं, वैसे ही अपने ऊपर नियंत्रण आ जाता है। इस नियंत्रण भाव से सेहत का लाभ, भक्ति लाभ, उन्नति लाभ प्रारम्भ होता है।

श्रीकृष्ण भगवान कहते हैं जब तुम अपने पर नियंत्रण लगाते हो, तो आगे बढ़ने का मौका मिलता है। तब दुनिया का ऐश्वर्य और उसी के साथ ईश्वर की कृपायें भी मिलती हैं। कृष्ण कहते हैं यह सब इंद्रियों पर निर्भर करता है, क्योंकि तुम्हारी इन्द्रियां जहां तुम्हें लेकर जाती हैं, तुम उसी स्तर के हो जाते हो। तुम्हें उससे सावधान रहना है, उन गड्ढों से बचना है, जिनमें गिरकर तुम अपना पतन कर लेते हो।

स्वयं को परमात्मा के आकर्षण में बांध लो

श्रीकृष्ण कहते हैं कि तुम्हें शुद्ध-बुद्धि होकर स्वयं को परमात्मा के आकर्षण में बांध लेना चाहिये। परमात्मा के आकर्षण में बांध लोगे, तो हालत कुछ और ही हो जायेगी। इस संदर्भ में महात्मा बुद्ध से जुड़ी एक कथा का वर्णन आता है कि एक बड़ा धनपति जो बड़ा दानी था। दूर-दूर तक उसका नाम था। लेकिन उसको अपने लिए एक ही आवाज सुनाई देती थी पैसा, पैसा, पैसा। पैसा इकट्ठा करो। यह मान-सम्मान है, पैसा जिदंगी है। पैसे के कारण दुनिया तुम्हें पूजेगी। यह है तो भगवान का मंदिर भी बढ़िया बनवा लेंगे। तब बड़े-बड़े साधु संत भी रोज पास में आकर अच्छी-अच्छी ज्ञान की बातें सुनायेंगे। इस प्रकार वह पैसे लिए ही सम्पूर्ण जीवन खपाता रहता।

सुंदर कहानी

एक दिन उस धनपति को किसी ने आकर कहा कि अपने नगर में महात्मा बुद्ध आये हैं। वे राजा के बेटे हैं, दौलत छोड़कर आये और लोगों से कुछ लेते नहीं। लोग वहां जाते हैं, तो मानो जादू जैसा हो जाता है। हर एक को ऐसा लगता है, जैसे वे उन्हीं के दिल की बात कह रहे हैं। लगता है बरसों से जो सुनना चाह रहे थे, आज कोई अपना वही कुछ कह रहा है। यह सुनकर वे धनपति महोदय भी वहां चले गये।

बुद्ध को सुनने के बाद उसके मन में आया कि मेरा बेटा बिल्कुल बिगड़ा हुआ है, काम धन्धे पर उसका बिल्कुल ध्यान नहीं है। महात्मा जी तो कर्त्तव्य के बारे में बहुत अच्छा बतला रहे हैं। अगर मेरा बेटा यहां आये, तो उसे बहुत अच्छा समझ सकता है। सुनेगा तो कमाल हो जायेगा।

सन्त महात्मा बुद्ध आये है तो

उस धनपति ने बेटे के पास जाकर कहा, बेटे बड़े ज्ञानी सन्त महात्मा बुद्ध आये हैं। बड़े-बड़े लोग सुन रहे हैं। बेटा बोला, कोई भी सुने, बड़ा या छोटा हमें क्या लेना देना? पिता ने जेब से थैली निकाली और कहा बेटा इसमें सौ सिक्के हैं, तू संत को सुनकर आयेगा, तो रोज सौ सिक्के दूंगा। लड़का बोला, ऐसी बात है, तो चलते हैं। पर जितने समय तक सत्संग चलेगा, उतने समय तक मैं बैठूंगा जरूर, लेकिन मेरा मन वहां नहीं होगा। पर आपके पास आते ही सौ सिक्के ले लूंगा। पिता राजी हो गया, बोला ठीक है। वह पहले दिन गया और बैठकर आ गया। घर में जैसे ही घुसा पिता ने उसे पैसे की थैली पकड़ा दी। लड़का बोला, बहुत बोर जगह थी, पता नहीं लोग वहां क्यों बैठते हैं? इस प्रकार बेटे का क्रम चलने लगा।

एक दिन बेटा बुद्ध के पास से वापस लौटा ही नहीं। कई दिन बीत गये तो पिता ने कहा पता करो, कहां गया? धनपति सेठ बेटे से मिलने के लिये चल पड़ा। अपने बेटे को देखा, वहीं बैठा था। पूछा, बेटा कैसा लगा? बेटा बोला गलती हो गयी हमसे। गलती से हमने इनकी बात अब सुन ली। बोले, फिर क्या हुआ? बेटा बोला पिता जी अब थैली नहीं चाहिए। अब तो यहीं रहना है।

मूर्खता भरा जीवन जी रहे है क्या

अब रास्ता मिल गया, समझ में आ गया कि अब तक मूर्खता भरा जीवन जी रहे थे। कमाना ठीक है, जिंदगी जीना भी ठीक है, लेकिन जीवन में जो फूल खिलने चाहिये थे, वे नहीं खिल पाये थे। पिता घबड़ा गया। बोला ये सब छोड़ घर चल। लड़का बोला एक चिड़िया भी इतना बड़ा घोंसला बनाती है, जितने में वह रह सके। चूहा भी उतना ही बिल बनाता है, जितने में वह रह सके। और हमें चैन नहीं, शांति नहीं, सारा दिन पैसा, पैसा। लड़का फिर बोला पिता जी पूरी दुनिया की सुनते हो, कभी उस मालिक की तो सुनकर देखो। बाप बहुत घबड़ा गया, बोला तू कह क्या रहा है? तेरी बुद्धि को क्या हुआ? बहुत सारी थैलियां मैंने तेरे लिए जोड़ रखी हैं, सब दे दूंगा तुझे, चल वापस। उसने कहा पिता जी अब मैं लौटने वाला नहीं हूं।

सच कहें तो अब वह शुद्ध-बुद्धि हो गया। यही है जीवन में गीता का जागरण, गीता का जीवन में प्रवेश। गीता जीवन में उतरती है, तो ऐसा ही होता है। हां जब कोई हमें असली कृष्ण संत, गुरु मिलता है तो ऐसा ही होता है जीवन में। मन में हिलोर भक्ति की जागती है, जीवन अपना अद्भुत रूप दर्शाता है।