अपने स्वभाव को शांत बनाइए और अपने आपको सरल बनाइए। छल-कपट से अपने आपको बचाइए। ‘मनु’ के अनुसार आदमी जितना बनावटी होगा, दिखावा करेगा उतना ही वह अशांत होगा। व्यक्ति सरल बने, मन को संतोष दे, ऐसे व्यक्ति का नाम है ‘सौम्य’।
सोम का अर्थ चन्द्रमा भी है। चन्द्रमा में 16 कलायें हैं।
1- पहली कला है प्रसन्नता-भक्ति के मार्गपर चलना चाहते हो तो प्रसन्नता को चेहरे पर से जाने मत दो। श्रीकृष्ण विपत्तियां देखने के बाद मुस्कुराते थे। विपत्तियां आएं तो घबराओ नहीं, मुस्कुराओ, हिम्मत जुटाओ। हिम्मत आएगी तो विपत्तियां टल जाएंगी। दुःख के बादल जब घिरते हैं उस समय किसी अपने को आते देखकर रोना आ जाता है।
यही हाल द्रौपदी का हुआ था जब श्रीकृष्ण उनके सामने आए। श्रीकृष्ण ने उन्हें कहा था, द्रौपदी जो बीत गया उसको सोच-सोचकर अपनी हिम्मत ना हारो, भविष्य को सोच-सोचकर मत डरो और वर्तमान में हिम्मत जुटाओ। द्रौपदी बोली, ‘आपने दुःख नहीं देखा, आप मेरा दुःख कैसे समझोगे।’ श्रीकृष्ण का इस पर कहना था कि जिसका जन्म ही जेल में हुआ हो उसने क्या कम दुःख देखा है दुःख सामने आया है दुःख को दुःख समझा नहीं है।
2- मुसीबत जब आए तो माथे को गर्म नहीं होने देना-अर्थात् दिमाग को संतुलित नहीं करेंगे तो बुद्धि चकराने लग जाती है और फेल हो जाती है।
3- मुसीबत के समय वाणी को कठोर नहीं होने देना चाहिए।
4- मुसीबत से हाथ-पांव में जोश बढ़ जाना चाहिए। सुख बहुत भोगा है, दुःख में संघर्ष करना है इसीलिए तैयार हो जाओ।
जो भी कुछ तुम पाना चाहते हो उसकेा बांटना सीखो। अगर जिन्दगी में बुरा करते रहे और साथ-साथ अच्छा दान भी करते रहे तो फल दोनों का भोगोगे। अगर हम खुद पाप कर रहे हैं और चाहते हैं कि पुण्य का फल भोगें तो यह सम्भव नहीं है।
एक चोर ने किसी की घोड़ी चुरा ली और अपने गांव लौट गया। गांव वालों के पूछने पर बोला कि इसे खरीदकर लाया हूं। एक दिन मेले में वह घोड़ी बेचने गया। सुबह से शाम तक कोई ग्राहक नहीं आया। अंत में एक व्यक्ति ने आकर घोड़ी का दाम पूछा तो उसने कहा 5 हजार रुपये की है। व्यक्ति बोला कि नहीं 5 हजार तक तो नहीं मैं 3 हजार देने को तैयार हूं। घोड़ी वाला चोर बोला कि 5 हजार से कम नहीं लेगा।
व्यक्ति बोला कि में देखना चाहता हूं कि इसमें 5 हजार वाली क्या चीज है? घोड़ी को परखने के लिए वह घोड़ी पर चढ़ा। बोला-चाल तो अच्छी नहीं है। घोड़ी को जब उसने ऐड़ लगायी तो दौड़ी। चोर रात भर इंतजार करता रहा लेकिन घोड़ी और वह व्यक्ति वापस नहीं आये। गांव गया, लोगों ने पूछा कितने की बेची। बोला जितने में खरीदी उतने में बेच दी। चोरी का माल चोरी हो गया। जो जैसा करेगा वैसा भरेगा उसका किया उसके सामने आयेगा।
हर व्यक्ति को अपने हिस्से का दुःख तो सहना ही पड़ेगा। मनुष्य दुःख से बचने के लिए अनेक प्रकार की वस्तुओं जैसे धागा, तावीज इत्यादि बांधते हैं। लेकिन क्यों? ऐसा करने से क्या तुम्हारे हिस्से का दुःख दूर होगा? कभी नहीं। सुख-दुःख में अपने मन को एक रंग में रंगना सीखो।
परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिए कि मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं दुःख झेल सकूं, उनका खुशी से सामना करूं। सुख और दुःख क्या है? जहां तक, जिस सीमा तक तुम सहन कर सकते हो वहां सुख है। जहां सहन करने की ताकत खत्म हो जाए वहां दुःख है।
हममें जितना आत्मिक बल होगा हम उतना ही सुख भोगेंगे। परमात्मा की भक्ति से आत्मिक बल मिलता है। पहाड़ जैसा दुःख भी तिनके की भांति हल्का लगेगा और जिनके पास आत्मिक बल नहीं है उसके लिए तिनका भर दुःख भी पहाड़ के समान है। व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने समय को व्यर्थ न जाने दे। खाली समय का भी ऐसा उपयोग होना चाहिए कि उसमें भी कोई पुण्य कार्य कर लें।
अच्छे व्यक्ति खाली समय संगीत, साधना या मनोरंजन में बिता देते हैं। बुरे व्यक्ति खाली समय में विवाद करते हैं, तान कर सोते हैं या फिर बुरी लत में पड़ जाते हैं।
18 साल में माता-पिता, गुरु अपने बच्चों को राम नहीं बना सकते जितना कि जवानी के 18 दिन की बुरी संगति उसे रावण बना सकती है। इसीलिए कर्म के साथ जुड़ें, मन को खाली न रखें।
परमात्मा की भक्ति पर चलना है तो अपने चरित्र को कोमल बनाओ। दूसरों की तरक्की से खुश हो। हमें द्वेष भाव नहीं रखना है। मन को कोमल बनाना है। बनावटी जीवन जियोगे तो अशांति आयेगी, जितना खुश, सरल रहोगे उतना उत्साह बढ़ेगा।
From 20th to 25th August, 2022
Register Now: Muktinath & Pashupatinath Special Meditation retreat