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फ़ैशन और प्रदर्शन से मुक्त होकर 365 दिन नववर्ष मनायें

फ़ैशन और प्रदर्शन से मुक्त होकर 365 दिन नववर्ष मनायें

फ़ैशन और प्रदर्शन से मुक्त होकर 365 दिन नववर्ष मनायें

आइये! जल्दी सोने, सूर्योदय से पूर्व ब्रह्ममुहूर्त में उठने, घर-परिवार में जप-उपासना-उपवास, ईश ध्यान, गुरु चिंतन, योगाभ्यास के साथ सादगी भरा आहार, सादगीपूर्ण जीवन को अपनायें, सदा मुस्कुराने का साहस जुटायें। दूसरों को भी प्रकाश बांटे, खुद जगमगाते हुए प्रत्येक दिन नववर्ष मनायें।

फ़ैशन और प्रदर्शन से मुक्त होकर 365 दिन नववर्ष मनायें

बीसवीं सदी लगते ही, प्रथम विश्व युद्ध आ धमका। देश व विश्व इससे निकला कि प्राकृतिक आपदा के रूप में 1918 के निकट सार्स से लेकर अबतक प्लेग, एड्स, कैंसर, डायविटीज, डेंगू, पोलियो, टी-वी-, हैजा न जाने कितने मानव जीवन पर स्वनिर्मित, प्राकृतिक एवं दैवीय आपदायें आयी। पर मनुष्य ने न केवल उनसे निजात पायी, अपितु नये-नये संकल्प व सूझबूझ के साथ खड़े होकर सदैव नये सूरज का स्वागत करता रहा। उन संकटों में विश्व ने नये-नये रास्ते तलाशे और आगे बढ़ा है। | 365 दिन नववर्ष मनायें |

संकटों की समीक्षा भी की पर हर बार जीवाणु- विषाणु से लेकर भूख, अति आहार, दैवीय से लेकर जन विरोधी-राष्ट्र विरोधी ताकतों को दोषी मानकर मनुष्य पुनः अपने ढर्रे की जिंदगी जीने में लग गया। लेकिन यह कोरोना संकट तो सम्पूर्ण मानव समुदाय को नये सिरे से सोचने को मजबूर कर रहा है। इसने मनुष्य के अहंकार पर चोट दी है, मानव निर्मित सम्पूर्ण सरंजाम को ठप सा कर दिया है।

सम्पूर्ण स्वास्थ्यपरक शोध आदि की महत्ता पर प्रश्न

उन सम्पूर्ण स्वास्थ्यपरक शोध आदि की महत्ता पर प्रश्न खड़ा कर दिया, जिसे लेकर विश्व के शीर्ष चिकित्सक, शोधरत स्वास्थ्य वैज्ञानिक गर्व करते रहे। यही कारण है कोरोना को प्राकृतिक एवं दैवीय आपदा के रूप में देखने से ज्यादा, आज व्यक्ति स्वयं की जीवन नीति को पहली बार कटघरे में खड़ा करता नजर आ रहा है। प्रथम बार स्वीकारने पर विवश है कि कोरोना जैसी समस्या मनुष्य के ही जीवन शैली, रहन-सहन, सोच, उसके द्वारा पर्यावरण को अपने उपभोग में अति स्तर तक दूषित करने का परिणाम है।

पूज्य सद्गुरु श्री सुधांशु जी महाराज कहते हैं ‘‘आज व्यक्ति अनुभव करने लगा है कि शायद वह अंध भक्ति का भी दण्ड इस कोरोना संकट के माध्यम से भोग रहा है। अंध का अर्थ किसी धर्म-सम्प्रदाय से नहीं, अपितु एक के पीछे एक भागते चले जाने वाली जीवनशैली से जुड़ी अंधभक्ति, जिससे मनुष्य अब उबरने का रास्ता तलाश भी रहा है। कोरोना संकट ने हर व्यक्ति को अपने-अपने स्तर से अपनी समीक्षा करके प्रकृति माता से जुड़कर अंदर के भगवान से जुड़ने के लिए विवश किया है।’’

कोविड-19 से लोगों के मनों में भय

इस कोविड-19 ने लोगों के मनों में भय ही नहीं पैदा किया, अपितु आम जनमानस अपना उल्लास भरा जीवन घर की चहरदीवारी में कैद करने के लिए विवश हुआ। विश्व के व्यापार से लेकर ऑफिसियल व्यवहार तक में यह आमूलचूल बदलाव कर गया।

बच्चों को विवश होकर प्रोढ़ता ओढ़नी पड़ी। एक तरफ माता-पिता-अभिभावक बच्चों के स्वास्थ्य-पोषण तक के लिए चिंतित हैं, तो दूसरी ओर बच्चे जिन्हें बेफिक्र होना चाहिए था, वे अपने अभिभावकों की जिन्दगी के लिए परमात्मा से प्रार्थना करते दिखे। उनका स्कूल छूटा, संगी-साथी छूटे। बचपन के खेल छूटे, बस बचा तो ऑनलाइन-डिजिटलाइज, एकांत भरा जीवन। कभी जो बच्चे माता-पिता के हाथ में मोबाइल देखकर ललक से भर जाते थे, उन्हीं बच्चों को आज ऑनलाइन से डर सा लगने लगा। बोझ बनती जा रही उनकी जिंदगी।

इस कोरोना संकट के भय से ऑनलाइन से जुड़े विश्व भर के बच्चे सम्भवतः अपने अगले 20 वर्ष को पूरा करते-करते अगर इंटरनेट झटक कर संवाद का कोई नया प्राकृतिक आविष्कार कर ले, तो आश्चर्य नहीं।

यही नहीं विवाह शादी जैसे मांगलिक कार्यों से लेकर वे धर्मकार्य जो प्रदर्शन, फैशन, दिखावे में सराबोर हो चुके थे, उन पर अचानक विराम लग गया। एक से एक ब्रांडेड वस्तुएं उपेक्षा पाने लगीं कि कहीं कोरोना न आ जाये। होटल के लजीज व्यंजनों तक के प्रति उपेक्षा दिखने लगी। उत्सवों का डिजटलाइज होना संदेश देता है कि अब बहुत हो गया फैशन और प्रदर्शन। अब नहीं चाहिए यांत्रिक व रासायनिक प्रगति। अब प्रकृति के रास्ते जो प्राकृतिक हो, शुद्ध हो वही पर्याप्त है।

कोरोना के चलते जीवन

निश्चित ही जिसे कोरोना के चलते जीवन के अंतिम क्षण आक्सीजन के लिए वेंटीलेटर पर जाना पड़ा होगा। उसके अंतःकरण में कटते पेड़ों के प्रति एक बार प्रेम अवश्य जगा होगा। कि प्राकृतिक वृक्ष-वनस्पतियों से मिले आक्सीजन के ड्डोत नष्ट करने का दण्ड आज जीवन के अंत के साथ चुकाना पड़ रहा है। निश्चित ही ऐसा व्यक्ति अपनी भावी पीढ़ी से कहना चाहता रहा होगा कि बेटे इस प्राकृतिक ड्डोत-प्रकृति की गोद की उपेक्षा मत करना।

मनुष्य से घृणा करके परमात्मा को पाने का ख्याल पालने वालों के लिए भी यह वर्ष किसी बड़े झटके से कम नहीं था। एक बार प्रत्येक को लगा कि रासायनिक व अप्राकृतिक यांत्रिक दुनिया में जीते-जीते विषैले बन चुके मानव को दण्ड रूप ही तो यह विषैला वायरस संकट मिला है। अतः अब क्यों न विष मुक्त होने का संकल्प लें।

जन्मभूमि की मिट्टी में जीवन का सत्य

शहर छोड़कर भाग रहे लोगों को जरूर अपनी जन्मभूमि की मिट्टी में जीवन का सत्य दिखा होगा कि उन्हें हजारों किलोमीटर पैदल की दूरी भी छोटी लगने लगी। सच कहें तो अंदर से उमड़ती अपनी अनन्त महात्वाकांक्षायें व्यक्तियों ने इस स्तर से समेटा कि जो सहजता से उपलब्ध है, उसी में गुजारे की सोचा जाय। इन परिस्थितियों में भी जिन्होंने क्रूरतायें नहीं छोड़ीं, अपने व्यापार को मानवीय जीवन को रौंदते हुए बढ़ाना अवसर माना उनको नजरंदाज कर दें, तो यह श्लोक इस वर्ष हर मन में जरूर कौधा होगा कि

‘‘अतितृष्णा न कर्तव्या, तृष्णां नैव परित्यजेत्।
शनैः शनैश्च भोक्तव्यं, वित्तंस्वयमुपार्जितम्।।’’

अर्थात् न बहुत अधिक इच्छाएं करना सही है और न इच्छाओं का त्याग कर देना, अपितु हमें अपने अंदर ईमानदारी से उपार्जित संसाधनों के अनुरूप संतुष्टि भाव जगाना चाहिए, यही जीवन के उत्थान का संतोष व सुखद मार्ग है।

बाजारवाद ने भी तो अपने करोड़ों सहयोगियों को अभाव में अनाथ छोड़कर यही सीख तो दी कि औद्योगिक घरानों, बाजारवादी मानसिकता व कार्पोरेट जगत का अधिक भरोसा उचित नहीं। अतः आत्म निर्भर बनें।

जो लोग फैशन व प्रदर्शन की मानसिकता के चलते भूल चुके थे कि मनुष्य की वास्तविक जरूरतें पेट भरने के लिए तीन मुट्ठी अनाज एवं तन ढकने के कपड़े और छोटी सी छत में पूरी हो सकती है, उस भूल सुधार का अवसर बनकर भी यह कोरोना संकट आया। |365 दिन नववर्ष मनायें |

कोरोना संकट का यह एक सकारात्मक

इन सब स्थितियों के बीच लोग अपने बच्चों को बहुत ज्यादा अमीर होने की अपेक्षा, खुश रहने की दिशा में प्रेरित करने लगे हैं। कोरोना संकट का यह एक सकारात्मक पहलू है। फ्रांस के वाणिज्य मंत्री ने कहा ही कि ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं, जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों की जेब से पैसा निकालना होता है, लेकिन इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं गरीब और मध्यम वर्ग के लोग।

वास्तव में अब मानव मूल स्वभाव से जुड़ने, नैतिकता, व्यवहार, मेलजोल में पारदर्शिता-सहानुभूति और भाईचारा, सहकारिता, सहयोग का मार्ग प्रशस्त करने का समय आ रहा है। आइये! जल्दी सोने, सूर्योदय से पूर्व ब्रह्ममुहूर्त में उठने, घर-परिवार में जप-उपासना-उपवास, ईश ध्यान, गुरु चिंतन, योगाभ्यास के साथ सादगी भरा आहार, सादगीपूर्ण जीवन को अपनायें, सदा मुस्कुराने का साहस जुटायें। दूसरों को भी प्रकाश बांटे, खुद जगमगाते हुए प्रत्येक दिन नववर्ष मनायें।

Special spiritual meditation and yoga session will be conducted by Dr. Archika Didi

From 20th to 25th August, 2022

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