व्यायाम और योगाभ्यास में अंतर
किसी के लिये योग एक असाध्य शारीरिक विन्यास, शारीरिक गतिविधियों का एक संग्रह, एक तकनीक है, तो कुछ लोगों के लिये यह सिर्फ एक विश्वास है, जो कला से विज्ञान में प्रवेश कराता है। पर जब योगमय जीवन की बात करते हैं, तो योग समग्र विज्ञान के रूप में अपनाना आवश्यकता हो जाता है।
यह एक ऐसा प्रयोग है, जिसके द्वारा जीवात्मा एवं परमात्मा की अनुभूति होती है। यही जीवात्मा एवं परमात्मा की एकता व महामिलन है। महर्षि पतंजलि ने इस योग को ‘चित्त वृत्ति निरोध’ बताया है। अर्थात आंतरिक और बाह्य सभी प्रकार के विचारों एवं बिना इच्छा के अंकुरित हो रहे विचारों पर नियंत्रण। इससे चंचलता पर काबू पाना, मस्तिष्क को स्थिर करना सम्भव बनता है, यही योग है।
मानव शरीर की तीन महत्वपूर्ण परतें हैं आत्मा, मन और शरीर। एक सच्चा योगी आत्मा, मन और शरीर के बीच संतुलन और समरसता बनाने में सक्षम होता है। मन और आत्मा को एकजुट किया जा सके, तो पांचों कोषों की गहराई से जुड़ने का योग बैठता है। तब आत्मविश्वास, साहस, तर्कसंगत दृष्टि खुलती है, जो योग के लिए एक वरदान है।
वास्तव में जब योगाभ्यास अपने व्यायाम अवस्था को पार करके गहरे उतरता है, तो परम मिलन को जन्म देता है। तब यह शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक स्तर पर एक हो जाता है। ऐसे में योग के सही स्वरूप को समझने के लिए व्यायाम व योगाभ्यास के भेद को समझना आवश्यक है।
व्यायाम: एक बंधनकारी घटक है, यह आरामदायक शारीरिक मुद्राओं का स्वरूप है। व्यायाम का अभ्यास मन को शांत करने, शरीर को लचीला बनाने की एक तकनीक रूप में प्रयोग किया जाता है।
‘व्यायाम’ मुद्रा का रूप भी है। दूसरे शब्दों में व्यायाम ऐसी मुद्रा जिसमें व्यक्ति बिना किसी परेशानी के स्थिर रह सकता है। जबकि योग की दृष्टि से स्थिर आसन में स्थिर का अर्थ एक ऐसी स्थिति से है, जहां साधक अपने शरीर को बिल्कुल भी महसूस नहीं करता। वह आरामदायक अवस्था जहां आप अपनी सभी इन्द्रियों व चेतना को खोकर पूरी तरह दिव्यता महसूस करते हैं। वास्तव में योगासन ऊर्जा का प्रबंधन करने की एक दिव्य प्रक्रिया है।
यह अभ्यास मन व भावनाओं को शांत करने के लिये एक तकनीक है। यह अपने अस्तित्व की सभी अनदेखे तत्वों के साथ तालमेल बिठाता है, जो दुनिया के प्रति हमारी आंतरिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से जीवन को श्रेष्ठ आकार देता है। योग हमारे मानसिक-भावनात्मक दृष्टिकोण की खोज करने और इच्छा को मजबूत करने का एक प्रयोग है। इससे सौम्यता की स्थिति में आगे बढ़ना सीखते हैं, जो भौतिक दुनिया और आध्यात्मिक दुनिया के बीच संतुलन बनाने में सहायक बनता है।
योगासन लाभकारी और प्रभावोत्पादक होते हैं, यदि उनका सही तरीके से अभ्यास किया जाए। इसके कुछ सामान्य अनुशासन हैं, जैसे-योगासन की जगह साफ, शांत और हवादार हो, बदबूदार या नमी वाली न हो, शांतिपूर्ण आभा को अनुकूलित करने वाली जगह का प्रयोग करें। अभ्यास शुरू करने से पहले पेट को खाली कर लें। भोजन करने के बाद योगाासन के लिये कम से कम तीन घंटे का गैप रखें। अभ्यास करने का सबसे अच्छा समय सुबह और अल्पाहार से पहले का होता है। शांतिपूर्ण वातावरण और सकारात्मक ऊर्जा के साथ योग करें।
हर रोज पन्द्रह मिनट योग अभ्यास आवश्यक है। योगासन के लिये अत्यधिक बल का प्रयोग न करें, स्वयं को तनावग्रस्त ना करें, मांसपेशियों में लचीलापन अभ्यास करते -करते थोड़े समय में हो जाता है। हल्का कपड़ा पहनें। अभ्यास करते समय नाक के माध्यम से श्वांस लें, मुंह से नहीं। गहरे और लयबद्ध श्वांस को बनाए रखें। गद्दे पर या सीधे फर्श पर अभ्यास ना करें। बीमारी में, सर्दी या दस्त होने पर योगाभ्यास न करें।
ध्यान रहे योगासन शरीर को लचीला बनाता है। यह धमनियों द्वारा अपशिष्ट पदार्थ को उत्सर्जित करता है। श्वांस लेने की गतिविधि पर नियंत्रण लाता है, शारीरिक और मानसिक स्तर पर श्वांस लेने-छोड़ने से फेफड़े मजबूत होते हैं। इससे ग्रंथियां नियमित रूप से अपने हार्मोन को स्त्रावित करती हैं। नियमित रूप से रक्त परिसंचरण पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। योगासन थकान को दूर करते हैं, शरीर को हल्का और सक्रिय बनाते हैं।