मनुष्य का स्वभाव उसके जीवन की दिशा तय करता है, उसके जीवन की सफलताएं-विफलताएं उसके स्वभाव पर निर्भर करती हैं, समाज के साथ उसके सम्बन्ध उसका स्वभाव ही बनाता है, बिगाड़ता है। स्वभाव क्या है? स्वभाव मनुष्य के चिन्तन, उसकी धारणाओं, विचारों का समुच्चय है, जो उसके अन्तःकरण पर इतने प्रभावशाली तरीके से अंकित है, जो उससे जीवन में सब काम करवाता है। आदतें स्वभाव नहीं हैं, वे स्वभाव का एक हिस्सा हैं।
मनुष्य के स्वभाव का निर्माण दो तरीके से होता हैµएक तो प्रकृति जनित और दूसरा समाज जनित। भगवान श्रीकृष्ण भगवद्गीता में कहते हैं, ‘‘सात्विक, राजसिक और तामसिक गुण मनुष्य के स्वभाव का स्वरूप निश्चित करते हैं। गीता के अठारहवें अध्याय की श्लोक संख्या 40 से 48 तक मनुष्य पर प्रकृति के गुणों के प्रभाव की विस्तृत चर्चा है। भगवान कहते हैं-
न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः।
सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुत्तफ़ं यदेभिः स्यात्त्रिभिर्गुणैः।।
अर्थात् इस लोक में, स्वर्ग लोकों में या देवताओं के मध्य में कोई भी ऐसा व्यत्तिफ़ विद्यमान नहीं है, जो प्रकृति के तीन गुणों से मुत्तफ़ हो।
तदुपरान्त श्लोक 41 से 44 तक ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों और शूद्रों में प्रकृति के गुणों के अनुसार उनके स्वभाव द्वारा उत्पन्न गुणों का उल्लेख किया गया है।
भगवान स्पष्ट कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अपने- अपने कर्म का पालन करते हुए सिद्धि को प्राप्त हो सकता है और फिर कृष्ण भगवान ने गीता के इसी अध्याय में आगे सिद्धि प्राप्ति के तरीके बताये हैं।
अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया था, किन्तु इसी अध्याय के 60वें श्लोक में भगवान अर्जुन को चेतावनी देते हुए कहते हैंµ
स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा।
कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत्।।
अर्थात् ‘‘इस समय तम के मोहवश मेरे निर्देशानुसार कर्म करने से मना कर रहे हो, किन्तु हे कुन्ती पुत्र! तुम अपने ही स्वभाव से उत्पन्न कर्म द्वारा बाध्य होकर वही सब करोगे।’’ अर्थात् प्रकृति जनित गुणों से उत्पन्न स्वभाव के अनुकूल मनुष्य को कर्म करने ही पड़ते है। अगर वह ऐसा नहीं करता तो वह धर्म का पालन नहीं कर रहा।
अब हम चर्चा करेंगे सामाज जनित स्वभाव की। इस श्रेणी में मनुष्य के स्वभाव को प्रभावित करने वाले अनेक तत्व हैं, जिनका प्रारम्भ उसके जन्म से ही हो जाता है, जन्म के समय शिशु पर माँ की वात्सल्यमयी दृष्टि और उसकी मुस्कराहट उसके चित्त को प्रभावित करती है, शिशु के पूर्वजन्मों के संस्कार, परिवार का वातावरण, पड़ोस के लोगों का चिन्तन व व्यवहार, शिक्षा संस्थाओं में प्राप्त किये गये संस्कार, व्यवसायिक संस्थान में वातावरण, सहयोगी कर्मचारियों का व्यवहार, विशेषकर जिस अधिकारी के आधीन या साथ कार्य अथवा उसे सेवा करनी है, विवाह के उपरान्त पति या पत्नी का व्यवहार, नये सम्बन्धों में अपनापन आदि ऐसे अनेक तत्व हैं, जो मनुष्य के स्वभाव को प्रभावित करते हैं। यहां तक कि देश की शासन प्रणाली का भी मनुष्य के स्वभाव पर प्रभाव पड़ता है। लोकतंत्रीय, तानाशाही, राजतंत्र या साम्यवादी शासन प्रणालियों अथवा शासन पद्धति मनुष्य के स्वभाव को प्रभावित करती है। यूनानी विद्वानों ने भी इस तत्व की चर्चा की है।
इन सभी तत्वों के प्रभाव में मनुष्य का जो स्वभाव बनता है, वह समाजजनित है। एक बार मनुष्य का जो स्वभाव बन जाये, उसकी जकड़ इतनी मजबूत होती है कि जीवन भर वह उसी में बंधा व्यवहार करता है। कोई मनुष्य सहयोगी होता है, दयालु होता है, कोमल मनवाला या दयावान होता है, उसका व्यवहार शालीन होता है। परोपकारी होता है, स्वयं कष्ट सहकर भी दूसरे की सहायता करता है। इसके विपरीत स्वार्थी, क्रोधी, ईर्ष्यालु, वैर रखने वाले, व्यक्ति का स्वभाव अलग होता है।
व्यवहार में देखा गया है कि धार्मिक वृत्ति के लोगों का स्वभाव अक्सर अनेक गुण सम्पन्न व सकारात्मक होता है, जबकि धर्मविहीन व्यक्ति का स्वभाव अक्सर इसके विपरीत होता है। सन्त का स्वभाव और होता है, दुष्ट व अहंकारी व्यक्ति का स्वभाव उसके विपरीत होता है। राम और रावण को देखिये, शिवभक्त और विद्वान होने के बावजूद भी वह अहंकारी या कृष्ण और कंस का उदाहरण इस तथ्य की पुष्टि करता है।
परमपूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज का स्वभाव
परमपूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज का स्वभाव देवतुल्य है। बचपन से ही अपना भोजन सहपाठियों को खिला देना, धार्मिक चिन्तन में आनन्द लेना, गायत्री का जाप करना, रात्रि को पिता जी से महान पुरुषों एवं वीरों की कहानियां सुनकर सोना। विद्यार्थीकाल में समय का सदुपयोग करना, स्वाध्याय में रुचि लेना, पाठ्यक्रम के पठन-पाठन के साथ-साथ धार्मिक ग्रन्थों, वीरों की गाथाओं को पढ़ना और इन सबका परिणाम यह हुआ एक ऐसे महान व्यक्तित्व का उदय हुआ, जिनके मन में जनकल्याण की नित नई योजनाएं बनाने में चिन्तन चलता रहता है। गरीबों, युवक-युवतियों, वृद्धजनों, वरिष्ठनागरिकों, नारियों, बच्चों की सहायता-सहयोग के लिए अनेक योजनाएं चलाईं। सनातन ज्ञान का प्रचार उनके जीवन का उद्देश्य है। ईश्वर भक्ति, मातृ-पितृ भक्ति, राष्ट्रभक्ति के साक्षात देव हैं गुरुदेव जी महाराज। जीवन में आराम नहीं, बस हर क्षण मानव सेवा का स्वभाव। बचपन से ही वही शिक्षा डॉ- अर्चिका जी को दी, जो अब उनके दिखाये पथ पर चलकर मानव सेवा के नये आयाम तलाश कर रही हैं। और सबसे बड़ी बात, गुरुदेव जी के इन प्रयासों से हजारों-लाखों लोगों के स्वभाव में सकारात्मक परिवर्तन आये हैं। इस सत्य से भारतीय शास्त्रें की सीख, ट्टषियों-मुनियों की सोच, यहां तक कि सुकरात, प्लेटो जैसे दार्शनिकों के कथन की पुष्टि होती है कि संतों के संग से जीवन के रंग बदल जाते हैं।