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इसलिए आवश्यक है मानव में देवत्व

इसलिए आवश्यक है मानव में देवत्व

इसलिए आवश्यक है मानव में देवत्व

मनुष्य में देवत्व के गुण जगें, मनुष्य मनुष्य की सही पहचान कर सके, सभी विचारों की सहिष्णुता अपनाएं, सत्य, प्रेम और अहिंसा में निष्ठा रखे, विश्वबंधुत्व, वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा को जीवन में धारण करें, यही तो है देवत्व का जागरण। मानव में परमात्मा का अंश है, जिसमें संपूर्णता के गुण एवं सम्पूर्ण ऊर्जाएं समाई हैं। इसी को आत्मा व परमात्मा के बीच का संबंध कहते हैं। एक शरीर से दूसरे शरीर में इस आत्मा का आवागमन जीवन की अमरता का द्योतक है। संत बताते हैं इस यात्र में आत्मा का एक योनि से दूसरे योनि में जाना शरीर के कर्मों पर निर्भर है। मानव के इनकर्मों को सही दिशा मिले यह हमारे देश के ऋषियों-संतों की अनन्तकालीन परम्परा है।

लोकधार्म जरूरीः

अर्जुन की आशंकाओं का निवारण करते हुए भगवान् श्रीकृष्ण ने कर्म के तीन प्रकार बताते हुए कहा कि एक जन्मजात कर्म जो व्यक्ति को माता-पिता, परिवार और समाज के प्रति कर्तव्य रूप में प्राप्त होते हैं। दूसरे प्रकार के स्वाभाविक कर्म हैं, जो व्यक्ति अपनी प्रकृति, प्रवृत्ति, संस्कारगत अभिरुचि, शिक्षा, अभ्यास, संग और आवश्यकता के अनुसार ग्रहण करता है। तीसरा है आपात कर्म। आपात कर्म जैसे देश पर संकट के समय देश की आवश्यकता अनुसार मानवता पर आयी आपदाओं के निवारणार्थ कदम उठाना, देश के रक्षार्थ युद्ध के लिए आपात् भर्ती में शामिल होना।

किसी महामारी के समय सरकार के निर्देशों के अनुसार सेवा के दायित्व निभाना आदि। राष्ट्रीय आपात की अवस्था में किसान, मजदूर, विद्यार्थी, शिक्षक, वकील, व्यापारी, लेखक, कवि, डाक्टर, नर्स, कम्पाउण्डर, सफाईकर्मी, चपरासी, अफसर सब राष्ट्रहित हेतु एक ही तरह के कर्म में तत्पर होकर लग जाते हैं। इसे लोकधर्म निर्वहन भी कहते हैं। यद्यपि भारतीय ऋषियों ने लोकहित से जुड़े कर्म को जीवन में अनवरत करते रहने पर जोर दिया है, ताकि परमात्मा का यह विश्व उद्यान सतत सुखी-समुन्नत बना रह सके। इस स्तर की भूमिका निभाने वाले भी देवत्वपूर्ण संत मनः स्थिति वाले व्यक्तित्व माने जाते हैं।

वापस लौटना होगाः

आज देवत्व जागरण की बड़ी जरूरत है। पर वैर-भाव, शत्रुता, घृणा एवं स्वार्थ में आकंठ लिप्त मनुष्य ने जैविक से लेकर परमाणु बम जैसे असंख्य हथियार आज जुटा लिए हैं। परिणामतः विश्व भर में फैली युद्धोन्माद, महामारी, संग्रह वृत्ति आदि ने मनुष्य की मनुष्यता को अप्रमाणित कर दिया है। लगता है जैसे मनुष्य को मनुष्यता व समाज की जरूरत ही नहीं। यह सब बहुत ही भयावह स्थिति है। मनुष्य में देवत्व को जगाये बिना यह सम्भव नहीं है। आज मनुष्य स्वयं ही एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। ऐसे में मनुष्य में इसलिए आवश्यक है मानव में देवत्व व्यवहार जगत विश्व को सर्वधर्म के रूप में अहिंसा को अनिवार्य रूप से स्वीकृति प्रदान कराना कैसे सम्भव है। भगवान बुद्ध,

महावीर, ईसा मसीह और महात्मा गांधी के अहिंसा धर्म को विश्व के हर तंत्र में न्याय एवं विधि व्यवस्था का अंग बनाने का संदेश ऐसा मनुष्य क्यों स्वीकार करेगा।

पशुवत व्यवहार क्यों?

एक और दुःखद पहलू कि आज मनुष्य अपने ही प्रियजनों, बंधु-बांधवों पर अमानवीय अत्याचार करने से नहीं हिचक रहा। वह परिवार के पवित्र प्रांगण से लेकर, शिक्षालय, धर्मस्थल, न्यायालय परिसरों में पशुवत व्यवहार करने पर उतारू है। मनुष्य अपराध, द्वेष, लोभ, मोह, भ्रष्टाचार, अत्याचार जैसी बुराई से नहीं चूकता। क्योंकि इन पापों के बीज मनुष्य में गहराई तक समाये हैं। ऐसे में मानव मन से पाप के बीज को पनपने से पूर्व नाश करने का उपाय खोजना होगा। इसके लिए उसे अपनी कमाई, अपनी आत्म आजादी, अपनी आत्म प्रसन्नता की ओर मोड़ना होगा। सच कहें तो प्रत्येक व्यक्ति हृदय से जानता है कि हमें क्या करना उचित है, क्योंकि हर मन में देवत्व बीज बैठा है। जरूरत है मन व भाव के स्तर पर उसे जगाने की। अपने सम्पूर्ण नेक कर्तव्यों की पूर्ति के लिए उसे परमात्मा की कृपा एवं शक्ति के प्रति सचेत करना होगा।

कर्मों, भावों की पवित्रता

मन मंदिर में बैठे परमात्मा से उसे सत्संग, ध्यान, ज्ञान, जप, द्वारा जोड़ना होगा। पूज्य सद्गुरुदेव श्री सुधांशु जी महाराज कहते हैं कि ‘‘समाज को स्वस्थ, शक्तिमान एवं संपूर्ण बनाने के लिए आज देश को ऐसे संत मन वाले व्यक्तियों की बड़ी जरूरत है। लोकमंगल के दर्शन की पुनर्स्थापना इसी से सम्भव है। तभी मनुष्य में देवत्व जगेगा और हर मानव के कर्म से देवत्व फल सकेगा।’’ वर्तमान परिस्थितियां संकेत देती हैं कि परमात्मा की मर्जी और इच्छा भी यही है। यदि हम उनके पुत्र, मनुष्यों में देवत्व का जागरण कर सकें तो धरती पर स्वर्ग लाना असम्भव नहीं। पर आत्मा को उसके स्त्रोत्  परमात्मा से जोड़ने और परमात्मा से मिलने के लिए हमें अपने कर्मों, भावों की पवित्रता आवश्यक है। यही एकमात्र उपाय है धर्म की स्थापना का, मानवता और नैतिकता के पुनर्जागरण का। आइये सभी देवत्व जागरण के इस अभियान में जुड़ें

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