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धनतेरस – माँ लक्ष्मी और भगवान धन्वन्तरि का जन्म दिवस

धनतेरस – माँ लक्ष्मी और भगवान धन्वन्तरि का जन्म दिवस

धनतेरस - माँ लक्ष्मी और भगवान धन्वन्तरि का जन्म दिवस

कहा जाता है कि समुद्र मन्थन के दौरान भगवान धन्वन्तरि और माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था, यही वजह है कि धनतेरस को भगवान धनवंतरी और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

धनतेरस माँ लक्ष्मी और भगवान धन्वन्तरि का जन्म दिवस

धनतेरस के पवित्र पर्व पर आप धन की कामना से पूजा-पाठ, यज्ञ जरूर करें, लेकिन इस पावन पर्व पर अष्टलक्ष्मी का आह्नान करना भी न भूलें। अष्टलक्ष्मी में सभी तरह की सिद्धि-सफलता प्राप्त हो जाती है। आप जब लक्ष्मी की कामना करें तो माँ भगवती महालक्ष्मी से विद्या लक्ष्मी, सौभाग्य लक्ष्मी, अमृत लक्ष्मी, काम लक्ष्मी, सत्य लक्ष्मी, भोग लक्ष्मी और योग लक्ष्मी प्राप्ति की प्रार्थना भी अवश्य करें।

अमृत से भरा कलश लेकर प्रकट हुए थे धन्वन्तरि

धनतेरस आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरि का और माँ लक्ष्मी का जन्म दिवस है। धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।

चाँदी खरीदने की प्रथा के पीछे क्या कारण है ?

धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है, जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि चांदी ‘‘चन्द्रमा’’ का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है, सुखी है, और वही सबसे धनवान है।

स्वास्थ्य और सेहत की कामना करें इस दिन

भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता हैं। उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के के साथ संतुष्टि का धन भी माँगा जाता है। संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी, गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।

क्या करें कि अकाल मृत्यु का भय न रहे

धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोककथा है। कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहाँ  किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।

विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार के प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। परन्तु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे, उसी समय उनमें से एक ने यम देवता से विनती की- हे यमराज! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए।

दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यम देवता बोले, हे दूत! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति  का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं, सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेंट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रहते हैं।

क्या करें धनतेरस के दिन

धनतेरस के दिन दीप जलाकर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरि से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चाँदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चाँदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदें जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं। कहा जाता है कि समुद्र मन्थन के दौरान भगवान धन्वन्तरि और माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था, यही वजह है कि धनतेरस को भगवान धनवंतरी और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

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