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समर्पण से सच्चे प्रेम के हकदार बनें!

समर्पण से सच्चे प्रेम के हकदार बनें!

समर्पण से सच्चे प्रेम के हकदार बनें!

जब व्यक्ति आत्मचिंतन के लिए तैयार होता है, तो साधारण से सद्प्रयास में भी चमत्कार घटता है। तब उसे असीम प्रेम मिलता है।

समर्पण से सच्चे प्रेम के हकदार बनें!

 

तब होगा कर्म परिष्कार खूब मिलेगा प्रेम

भगवान के नियम अनुसार अच्छे कर्मों का अच्छा फल और बुरे कर्मों का बुरा फल भोगना ही पड़ता है। याद रखिए फल मिलने में देर हो सकती है, मगर अन्याय नहीं होता। ऐसा कोई व्यक्ति भी नहीं है, जिसे फल नहीं प्राप्त हुआ हो। इसलिए हर इंसान को चाहिए निष्ठा और लगन से अपना कर्त्तव्य-पालन करता रहे। कर्म दुःखदायक न हो, इसलिए अपने कर्म विकारों को दूर करने की कोशिश भी करें, तभी शांति, आनन्द, धर्म जीवन में प्रवेश करेगा। मैं चेतन आत्मा हूँ, कर्म करने आया हूँ। भोग-भोगने भेजा है परमात्मा ने। जब वह बुलाएगा जाना पड़ेगा। वह हमें सदा सुखी करे, दुःखों से बचाए। इस चिन्तन से जब हम कर्म करेंगे, तो हमारे कर्मों के विकार मिटेंगे।

हमारा कर्म परिष्कार होगा। तभी जीवन की आध्यात्मिक यात्र आगे चलेगी। कर्म परिष्कार के लिए आत्म चिंतन-आत्म सुधार भी महत्वपूर्ण तरीका है। जब व्यक्ति आत्मचिंतन के लिए तैयार होता है, तो साधारण से सद्प्रयास में भी चमत्कार घटता है। तब परमात्मा का प्रेम खूब मिलता है।

तब आती हैं विशेषतायें

कहते हैं वही समय, वही घड़ी, वही मुहूर्त, वही बेला अच्छी है, जब हमारा मन परमात्मा के प्यार की ओर जाता है। परमात्मा के नजदीक आने का आशय है जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आना। उस परम-सत्ता के नजदीक आने से व्यक्ति में विशेषताएं आनी शुरू हो जाती हैं। तब परिवर्तन के लिए कोई अज्ञात शक्ति हृदय में आकर बोलती है कि तू दूसरों के हृदय में खुशी पैदा कर, मैं सदा तेरे करीब हूँ। सम्पूर्णता से, एकाग्रता से भक्ति में बैठ। प्राणों से, रोम-रोम से पुकारो उस प्रभु के नाम को, कर्म शुद्ध होंगे कृपा होगी’ भगवान तो प्रेम-भावना के भूखे हैं। अगाध श्रद्धा, पूर्ण निष्ठा, अविरल भक्ति, पवित्र भावनाओं से उसे पुकारें तो वह जरूर सुनता है।

वह न्यायकारी है अपने भक्त की सच्ची पुकार सुनता जरूर है। पुकार लगाने के साथ-साथ समस्त दोषों को दूर करने की शक्ति जगाना जरूरी है। दोष-रहित होकर उसके दरबार में बैठना भी आवश्यक है। इस प्रकार परमात्मा का अनुशासन जीवन में उतरने लगेगा। वास्तव में यही हमारी निष्ठा व लगन के जागरण का मापदण्ड है।

प्रेम से उसी को पुकारें:

देवी भागवत में एक सुंदर वाक्य आया है कि एक माँ भी अपने बच्चों के आंसू बर्दाश्त नहीं कर पाती, जो जगत की माता है, वह अपने भक्तों के आंसू कैसे बर्दाश्त करेगी? हां अगर तुम रोओगे तो उसे दया जरूर आयेगी। इसलिए जब अपनी निष्ठा व कर्तव्य पालन में कमी न आने देकर भक्ति एवं समर्पण के आनंद से अपने को जोड़ लेगें तभी जीवन में सब कुछ फलित होगा। खास बात कि शिकायत करने की भी उससे आवश्यकता नहीं है, क्योंकि दाता देख रहा है, बस तुम उसे पुकारो, उसी को पुकारो, और किसी को पुकारने की आवश्यकता नहीं। दुनिया का भरोसा टूट सकता है, लेकिन मालिक का भरोसा टूटने वाला नहीं है।

प्रेम में वफादारी निभायें:

संसार में ऐसे भी आदमी देखे होंगे, जिसे एक हाथ, एक टांग ही है, फिर भी उसे परमात्मा से कोई शिकायत नहीं है। पर मुझे जब उसने सब कुछ दे रखा है। बड़े-बड़े गुण दे रखे हैं, आदर दिला रहा है। बहुत कुछ दे रखा है, फिर शिकायत क्यों। सच कहें तो जीवन को फलित करने के लिए शिकायत की नहीं, परमात्मा के साथ वफादारी की जरूरत है। वास्तव में जितना वफादार हम परमात्मा के प्रति बनेंगे, अंदर भगवान के नाम का जितना स्वाद पैदा करेंगे, रुचि पैदा करेंगे, उतना ही जीवन में रस आने लगेगा।

भक्त भी वही है जिसे रस आता हो। भजन करने बैठे तो मन लगने लगे। ऐसे में समझें कि वफादारी बढ़ रही है। इसे और अधिक बढ़ाने के लिए पूर्व में घटित हुई परमात्मा की कृपाओं को याद करें। हम आसन पर बैठें तो अपने भगवान के अनन्त-अनन्त उपकार याद करें कि तूने कब मेरा बिगड़ा काम बनाया, कब कैसे भगवान ने कृपा की।

न जाने कैसे-कैसे क्या-क्या करके परमात्मा मेरी नांव किनारे लेकर आया। भगवान की ऐसी अनेक कृपाओं को याद करेंगे, तो उसके प्रति लगन जगेगी। इस लगन से सद्कर्मों के प्रति निष्ठा जगेगी और जीवन धन्य बनेगा।