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बहुजन हिताय बहुजन सुखाय- महात्मा बुद्ध ने दिया महामंत्र

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय- महात्मा बुद्ध ने दिया महामंत्र

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय- महात्मा बुद्ध ने दिया महामंत्र

मानवता को बुद्ध की सबसे बड़ी देन है भेदभाव को समाप्त करना। यह एक विडम्बना ही है कि बुद्ध की इस धरती पर आज तक छूआछूत, भेदभाव किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं। जिसके निवारण हेतु जनमानस को बुद्ध चेतना आत्मसात करनी होगी।

सुनते हैं बुद्ध के ‘‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’’ मंत्र की अलौकिक गूंज

उन दिनों हिंदू समाज को अनेकानेक कर्मकांडों ने अपने बंधनों में जकड़ा हुआ था। परिणामतः कुछ वर्ग अपने स्वार्थों के लिए अन्य वर्गों का शोषण करने में जुटे थे। बलि प्रथा, पशु-पक्षियों के प्रति हिंसा का वातावरण था। तंत्र-मंत्र के प्रचलन के कारण लोगों की धर्म से आस्था उठने लगी थी। भौतिकता के बढ़ते प्रकोप के कारण उनके मन अविश्वासी और शंकालु बनते जा रहे हैं। ऐसे समय में महात्मा बुद्ध ने लोगों को आशा की किरण दिखाई। उनके द्वारा दिया करुणा का सिद्धांत आज भी जनमानस के लिए वरदान है।
ऐसे महापुरुष एवं बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई- पू- बैसाऽ पूर्णिमा को हुआ था, इसीलिए इस पावन दिवस को बुद्धपूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। भगवान बुद्ध ने बैसाऽ पूर्णिमा 483 ई- पू- में 80 वर्ष की आयु में देवरिया जिले के कुशीनगर में निर्वाण भी प्राप्त किया। सुखद यह कि जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ ने कठिन तपस्या कर बोधिसत्व प्राप्त किया, उसका रोपण भी बैसाऽ पूर्णिमा को ही हुआ था। इसी दिन सुजाता नामक महिला ने तपस्यारत कृषकाय सिद्धार्थ को पूजा के लिए ऽीर अर्पित की थी।
बौद्ध साहित्य के अनुसार बैसाऽ पूर्णिमा भगवान बुद्ध के प्रत्येक सहयात्री, घटनाक्रम और जीवन परिवर्तन का पावन दिवस रहा है। इसीलिए आज विश्व के कोने-कोने में बैसाऽ पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है।
भारत की धरती पर यह बौद्ध धर्म जन्मा है और भारतीय जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। आज विश्व भर में इसका विस्तार है।
सद्गृहस्थ से आगे की यात्रः
सिद्धार्थ के रूप में भगवान गौतम बुद्ध का जन्म राजा शुद्धोधन के यहाँ लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ। राजा शुद्धोधन शाक्य क्षत्रिय वंश के एक अच्छे शासक थे। सिद्धार्थ की माता महामाया कौशल राजवंश की राजकुमारी थी। बचपन में ही सिद्धार्थ की माता का स्वर्गवास होने के कारण उनका लालन-पालन विमाता महाप्रजापति गौतमी ने किया।
बचपन से ही सिद्धार्थ में किसी को भी कष्ट में देऽ कर उसकी सहायता करने की सहज ललक उठ आती थी। कहते हैं बालक की इस करुणा में वैराग्य की सम्भावना देखकर ज्योतिषियों ने राजा शुद्धोधन को सचेत किया कि यदि उनका पुत्र चक्रवर्ती सम्राट नहीं बन पाया तो सन्यासी हो जाएगा। सिद्धार्थ का मन इसी दुनिया के भोग विलास में रमा रहे, पिता ने इसक ध्यान में रखकर 18 वर्ष की अवस्था में उनका यशोधरा से विवाह करा दिया। उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, पर शीघ्र ही उन्होंने परिवार के सब बन्धन तोड़ डाले और 21 वर्ष की युवावस्था में ज्ञान की ऽोज में घर से निकल पड़े।
गृह त्याग के पश्चात सिद्धार्थ ने निरंजना नदी के तट पर पीपल के एक वृक्ष के नीचे घोर तपस्या करके ज्ञान प्राप्त किया, इसी ज्ञान की ज्योति कालान्तर में भारत ही नहीं विश्व के कोने कोने में फैली। आज भी मानवता इसके आलोक में आलोकित हो रही है। ज्ञान की इस दिव्य ज्योति के कारण राजकुमार सिद्धार्थ गौतम बुद्ध कहलाए।
वह प्रथम उपदेशः
गौतम बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं का पहला उपदेश सारनाथ में दिया और बहुजन हिताय, बहुजन सुऽाय का महामंत्र गूँज उठा। दुःऽ, अज्ञान और परस्पर वैमनस्य से त्रस्त लोग इस अवतरित महापुरुष के समक्ष नतमस्तक होने लगे। गौतम ने अपने संदेश से जन जन को अन्धविश्वासों, आतंक, हिंसा और स्वार्थ की संकुचित प्रवृतियों को उतार फेंकने और सम्पूर्ण जगत के कल्याण के लिए सत्य, अहिंसा और प्रेम का सन्देश दिया। जन-जन को प्राणीमात्र के लिए दया, ममता, परस्पर मेल जोल और अपरिग्रह का पाठ पढ़ाया।
परिव्रज्या धर्मः
गौतम बुद्ध ने लगभग 40 वर्ष तक घूम घूम कर अपने सिद्धांतों का प्रचार प्रसार किया। अपने धर्म प्रचार में उन्होंने समाज के सभी वर्गों, अमीर- गरीब, ऊँच नीच तथा स्त्री-पुरुष को बिना भेदभाव समानता के आधार पर सम्मिलित किया। उन्होंने संघ की स्थापना की जहाँ सभी लोग मिल जुल कर समाज के उत्थान के लिए कार्य करते थे और योगदान देते थे। उन्होंने अविद्या को दुःऽ का मूल कारण माना। मन, वचन और कर्म से साधना के मार्ग पर चलने के लिए उन्होंने सम्यक दृष्टि, सम्यक वाणी, सम्यक कर्म, सम्यक संकल्प, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि को अनिवार्य बताया।
गौतम बुद्ध ने अपने आप को आत्मा और परमात्मा के निरर्थक विवादों में फँसाने की अपेक्षा समाज कल्याण की ओर अधिक ध्यान दिया। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सात वर्षों तक कठोर तप किया और अंततः वैशाऽ पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।
बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बुद्ध पूर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार का दिन है। अलग-अलग देशों में वहाँ के रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार इस दिन समारोह आयोजित होते हैं। इस दिन बौद्ध धर्मावलम्बियों के घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है। दुनियाभर से बौद्ध धर्म अनुयायी प्रार्थनाएँ करते हैं। बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है। बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है।
मानवता को बुद्ध की सबसे बड़ी देन है भेदभाव को समाप्त करना। यह एक विडम्बना ही है कि बुद्ध की इस धरती पर आज तक छूआछूत, भेदभाव किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं। जिसके निवारण हेतु जनमानस को बुद्ध चेतना आत्मसात करनी होगी। पूज्य सद्गुरुदेव अपनी विश्व जागृति मिशन अभियान द्वारा उसी चेतना के विस्तार में लगे हैं। हम-आप सभी इसके सहभागी बनें। यही युग की मांग है।