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चलो लौटा लें अपने जीवन में खुशियाँ

चलो लौटा लें अपने जीवन में खुशियाँ

चलो लौटा लें अपने जीवन में खुशियाँ

जो प्राप्त है, उसके प्रति ईश्वर को धन्यवाद देने की आदत डालें। बस इतना ही बदलाव जीवन के लिए चमत्कारी साबित होता है और जीवन सुख-सौभाग्य, खुशियों से भरने लगता है।

चलो लौटा लें अपने जीवन में खुशियाँ

बचपन से ही हर किसी ने घर में माता-पिता, स्कूल में शिक्षक, कार्य क्षेत्र में बॉस को कहते सुना होगा कि कार्य मन लगाकर करो। यही बात आध्यात्मिक जगत में प्रवेश करने पर गुरु भी कहते हैं कि जो कुछ जीवन में पाना चाहते हैं, उस पर पूरे मनोयोग के साथ फोकस करें, मन लगायें।

मन का लगना एक रहस्यात्मक विज्ञान– ‘‘लॉ ऑफ अट्रेक्शन’’

वास्तव में मन का लगना एक रहस्यात्मक विज्ञान है। मन को केन्द्रित करते ही व्यक्ति की भावनायें, चित्तवृत्तियां सहित सम्पूर्ण मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक शक्तियां, व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन  का एक-एक कोश उस एक ही दिशा में काम करने लगता है, परिणामतः व्यक्ति उस विशेष लक्षित दिशा में सफल होकर रहता है।

वैसे भी असफलता सिद्ध करती है कि ‘‘सफलता के लिए पूरे मन से प्रयास नहीं किया गया।’’ अर्थात् एक दिशा में शरीर-मन-भावों के अणु-अणु को झोंक देना ही सफलता की गारंटी है। इसी को ‘‘लॉ ऑफ अट्रेक्शन’’ कहते हैं। इस सूत्र का संदेश है कि ‘‘जिस चीज पर हम अपना सम्पूर्ण फोकस करते हैं, उसमें तेजी से वृद्धि होने लगती है।’’ अर्थात् यदि हम सकारात्मक दिशा में हर क्षण अपने मन को फोकस रखेंगे, तो जीवन में सकारात्मकता बढ़ेगी और नकारात्मक दिशा में फोकस रखेंगे तो निगेटीविटी में वृद्धि होगी। इसीलिए ‘‘भारतीय संस्कृति में सदैव सकारात्मक सोचने, सद्गुणों का चिंतन करने, प्रकृति व ईश्वर द्वारा जो प्राप्त है, उसी को शुद्ध अंतःकरण से पर्याप्त मानते हुए ईश्वर को धन्यवाद देने, निराशा को छोड़ आशाओं में जीने, अपनी क्षमताओं, योग्यताओं पर विश्वास बढ़ाने, स्वयं को शांति-संतोष, सौभाग्यशाली अनुभव करने की परम्परा है।’’

सकारात्मक सोच से जीवन की सकारात्मक शक्तियों में वृद्धि होती है और व्यक्ति नित्य प्रति सुख-सौभाग्य से भरता जाता है। पूज्य सद्गुरुदेव  श्री सुधांशु जी महाराज कहते हैं ‘‘मंदिर में जाकर अभावों की फेहरिस्त भगवान के सामने रखने की पराम्परा हमारी संस्कृति में कभी नहीं रही। मंदिर में तो भक्त अपने जीवन में जो कुछ उपलब्ध है, उसके लिए परमात्मा को धन्यवाद करने जाता है। अपनी सुख-सौभाग्य के लिए कृतज्ञता प्रकट करने जाता है। देवस्थल पधारे ऐसे धन्यवादी प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों को ही अक्सर सौभाग्यशाली होते देखा जाता है। चूंकि मंदिर में ‘‘लॉ ऑफ अट्रेक्शन’’ का नियम सर्वाधिक प्रभावशाली ढंग से काम करता है। इसलिए जो लोग अपनी दरिद्रता, दुःखों, कमियों, कमजोरियों, निराशाओं के साथ ईश्वर प्रतिमा के समक्ष खड़े होते हैं। देखने में आता है कि ये चीजें उनका पीछा जीवन भर नहीं छोड़ती। अंत में वे भगवान को ही पक्षपाती-दोषी मान कर अपनी खीझ मिटाते देखे जाते हैं।’’

जो प्राप्त है, उसके प्रति ईश्वर को धन्यवाद

वास्तव में विश्व ब्रह्माण्ड ऐसा सागर है, जिसके अणु-अणु में हर प्रकार के तत्व समाये हैं, पर हमें वही प्राप्त होते हैं, जिसके प्रति हम अपने मन, विचार, मस्तिष्क, भावनाओं एवं क्रिया-कलापों के साथ फोकस करते हैं तथा जैसी फीलिंग्स हमारे अंदर रहती है। अभाव से भरे व्यक्ति को अभाव ग्रस्त रहने और खुशहाल की खुशहाली बढ़ने का यह रहस्यात्मक विज्ञान है।

‘‘हमें जो उपलब्ध है, उसके लिए ईश्वर-परमात्मा व विश्व चेतना के प्रति कृतज्ञतापूर्ण धन्यवाद देंगे, तो अंतःकरण खुशियों-संतोष, शांति से अधिक भर उठेगा। क्योंकि वह विश्व सत्ता हमारी भावनाओं, अहसासों को ही बढ़ाती है। अर्थात जैसा हम सोचते हैं वैसे वातावरण व साधनों का संयोग बनता है।’’

एक रिपोर्ट में पाया गया कि ‘‘हर व्यक्ति के जीवन में उपलब्धियों का एक बड़ा जखीरा होता है। जबकि अभाव व अनुपलब्धियों की संख्या बहुत कम होती है। पर सामान्यतः व्यक्ति अपनी आदत अनुसार उन उपलब्धियों पर खुशी मनाने, आह्लादित रहने, संतोष, शांतिपूर्ण जीवन जीने की जगह अपने सम्पूर्ण मन का फोकस जो वस्तुएं नहीं है, उसी पर केन्द्रित किये रहता है। लगातार यह वृत्ति बनाये रखने से एक समय बाद उसका जीवन निराशा-हताशा, कुढ़न, अभावों वाले नकारात्मक भावों-विचारों को अंतःकरण से स्वतः जनरेट करने लगता है। इस प्रकार जीवन में नकारात्मक अहसास बढ़ने से वैसी ही ब्रह्माण्डीय किरणों को व्यक्ति आकर्षित करके अधिक परेशानी भरा जीवन खड़ा कर लेता है। इस प्रकार नकारात्मक अहसास वालों का स्वयं का जीवन, घर-परिवार, संगी-साथी, कार्यालय, समाज सब कुछ उसे काटने से दौड़ते हैं। इसीलिए विशेषज्ञ अभावों पर ध्यान कम से कम केन्द्रित करने की सलाह देते हैं। हमारे ऋषियों-संतों ने भी कहा है कि जो प्राप्त है, उसके प्रति ईश्वर को धन्यवाद देने की आदत डालें। बस इतना ही बदलाव जीवन के लिए चमत्कारी साबित होता है और जीवन सुख-सौभाग्य, खुशियों से भरने लगता है।

जीवन से जुड़ी प्रत्येक उपलब्धियां जैसे हम भोजन कर रहे हैं, तो उपलब्ध भोजन के लिए धन्यवाद, कपड़े पहन रहे हैं तो धन्यवाद, सो कर उठें तो धन्यवाद दें कि परमात्मा ने हमें पुनः नया जीवन दिया है। इसी प्रकार कभी-कभी शांत-एकांत भाव में बैठकर बचपन से लेकर अब तक के उन सकारात्मक-खुशियों भरे दिनों के अहसासों में उतरकर जीवन के प्रत्येक खुशी के अवसरों की सूची बना डालें और खुश हों कि ईश्वर ने अद्भुत उपलब्धियां हमें दी हैं, जो असंख्यों लोगों के पास नहीं हैं। इस तरह सकारात्मक अहसास के साथ जीवन जीने की आदत पड़ेगी, जो निश्चित ही नव सौभाग्य को जन्म देगी और जटिल से जटिल जीवन में भी पुनः खुशियां लौटने लगेंगी। आसपास सुख-संतोष का वातावरण बनने लगेगा। भारतीय जीवन शैली इन्हीं मूल्यों के सहारे अब तक जीवंत है। आइये! हम सब भी अपनी उपलब्धियों के लिए सकारात्मक जीवंतता प्रकट करें, जीवन व समाज को खुशियों से भरें।

Dr Archika Didi

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