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किस मंत्र में विराजते हैं साक्षात् शिव:?

किस मंत्र में विराजते हैं साक्षात् शिव:?

किस मंत्र में विराजते हैं साक्षात् शिव | Dr. Archika Didi

ॐ स्वयं में पूर्ण है। इस एकाक्षर मंत्र में तीनों गुणों से अतीत, सर्वज्ञ, सर्वकर्त्ता, द्युतिमान, सर्वव्यापी प्रभु स्वयं शिव प्रतिष्ठित हैं। इसी के साथ ईशान आदि जो सूक्ष्म एकाक्षर रूप ब्रह्म हैं, वे सब ‘नमः शिवाय’ में क्रमशः स्थित हैं। इसके सूक्ष्म षडाक्षर मंत्र में पञ्चब्रह्मरूपधारी साक्षात् भगवान शिव स्वभावतः वाच्यवाचक भाव से विराजमान हैं।

यहां शिव वाच्य हैं और मंत्र उनका वाचक माना गया है। शिव और मंत्र का यह वाच्य-वाचक भाव अनादिकाल से समाहित है, ठीक जैसे संसार से छुड़ाने वाले भगवान शिव अनादिकाल से ही इस ब्रह्माण्ड में नित्य विराजमान हैं।

जीव के बन्धन और मोक्ष कटते हैं

जैसे औषधि रोगों की स्वभावतः शत्रु है, उसी प्रकार भगवान शिव सांसारिक दोषों के स्वाभाविक शत्रु माने गये हैं। नारायण शैव उपासक एवं वेद धारक सभी मानते हैं कि यदि भगवान विश्वनाथ न होते, तो यह जगत अंधकारमय हो जाता, क्योंकि जड़ प्रकृति एवं अज्ञानी जीवात्मा को प्रकाश देने वाले परमात्मा ही हैं। प्रकृति से लेकर परमाणु पर्यन्त जो कुछ भी जड़ रूप तत्व हैं, वह किसी दिव्य कारण के बिना स्वयं कर्ता नहीं है।
इसीलिए जीवों के लिए धर्म करने और अधर्म से बचने का उपदेश दिया जाता है। इससे जीव के बन्धन और मोक्ष कटते हैं।

इससे यह भी स्पष्ट होता है कि सर्वज्ञ परमात्मा शिव के बिना प्राणियों की पूर्ण सिद्धि नहीं होती। जैसे रोगी, वैद्य के बिना सुख से रहित हो क्लेश उठाते हैं, उसी प्रकार सर्वज्ञ शिव का आश्रय न लेने से संसारी जीव नाना प्रकार के क्लेश भोगते हैं। अतः यह सिद्ध है कि जीवों का संसार सागर से उद्धार करने वाले अनादि सर्वज्ञ परिपूर्ण सदाशिव मंत्र में विद्यमान हैं।

सदाशिव अर्थात् जो सत, चित, और आनन्द के रूप में सबके लिए कल्याणकारी हैं। वे किसी रूप में होंगे शिव ही कहलायेंगे। वे प्रभु आदि, मध्य और अन्त से रहित हैं, स्वभाव से ही निर्मल हैं तथा सर्वज्ञ एवं परिपूर्ण हैं। यह उनका स्वरूप है, इसीसे उन्हें शिव नाम से जाना जाता है। यह पञ्चचाक्षर मंत्र उन्हीं का अभिधान है और वे शिव अभिधेय हैं। अभिधान और अभिधेय रूप होने के कारण परमशिवस्वरूप यह मंत्र सिद्ध माना गया है।

‘ॐ नमः शिवाय’ षडाक्षर शिववाक्य परमपद भी है। यह शिव का विधि वाक्य है। यह शिव का स्वरूप है, जो सर्वज्ञ, परिपूर्ण और स्वभावतः निर्मल शिव है।

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