fbpx

वर्तमान से जुड़ें, घुटनभरी अनिश्चितता से बचें

वर्तमान से जुड़ें, घुटनभरी अनिश्चितता से बचें

वर्तमान से जुड़ें, घुटनभरी अनिश्चितता से बचें

शोध-अध्ययनों में पाया गया है कि तनावग्रस्त व्यक्तियों को साइकोसोमेटिक रोग, माइग्रेन, हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, अल्सर जैसी बीमारियां होने की संभावना भी अधिक बढ़ जाती हैं। ऐसे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक अवसादग्रस्त व मानसिक रूप से परेशान रहते हैं।

वर्तमान से जुड़ें, घुटनभरी अनिश्चितता से बचें
सही मायने में हमने यदि हंसी-खुशी से भरे हल्के-फुल्के भारहीन जीवन की कीमत नहीं समझी, तो मानकर चलें कि हम अपने कीमती जीवन की कद्र नहीं कर सकते। ऐसा व्यक्ति हमेशा तनावग्रस्त होने के साथ कार्यों के भार से लदा रहता है। हम कह सकते हैं कि तनावग्रस्त जीवन हमारी प्रगति व उन्नति में बाधक है। तनाव न केवल हमारे व्यक्तित्व का विकास रोकता है, बल्कि यह हमारी सोच को भी कुंद बनाता है। तनाव से व्यक्ति के शरीर में प्रवाहित होने वाले हॉर्मोन प्रभावित होकर स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। शोध-अध्ययनों में पाया गया है कि तनावग्रस्त व्यक्तियों को साइकोसोमेटिक रोग, माइग्रेन, हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, अल्सर जैसी बीमारियां होने की संभावना भी अधिक बढ़ जाती हैं। ऐसे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक अवसादग्रस्त व मानसिक रूप से परेशान रहते हैं।
तनाव में रहकर कार्य करने वाला व्यक्ति बस मन मारकर कार्य करता है, लेकिन वह अपनी कला-कुशलता का सही प्रयेाग नहीं कर पाता। दरअसल जो लोग अपने कार्यों को तनाव के साथ करते हैं, वे रचनात्मकता से भी कोसों दूर होते हैं। ऐसे लोग कुछ हट के कर नहीं कर सकते। अपनी इसी संकीर्णता के कारण वे नवीनता से कोसों दूर हो जाते हैं। विख्यात साइकोलॉजिस्ट फ्रेंक एडलर के अनुसार अनिच्छा हमेशा काम को पुराने ढर्रे पर करने की राह बनाती है, जबकि रचनात्मक लोग परम्परागत से हटकर कार्य करते हैं।
वर्तमान से भागने और हाथ में लिए गये कार्यों के प्रति बोझ अनुभव करने से सम्पूर्ण जीवन कष्ट एवं बोझ से भर उठता है। यह स्थिति लम्बे समय तक रहे, तो जीवन के हर कार्य में अरुचि पैदा हो जाती है, जो अत्यधिक खतरनाक है। मनोवैज्ञानिक फ्रेड बुशमैन कहते हैं कि तनाव का यह बोझ स्वाभाविक नहीं है। यह केवल हमारे कंधों पर इसलिए सवार है, क्योंकि हमारे अंदर प्रकृति, व्यवस्था और आस-पास के परिवेश की कार्यप्रणाली को समझने की कमी है, अयोग्यता है। यह अयोग्यता प्रकृति एवं स्वाभाविक जीवन के प्रति हमारे व्यवहार से आई है। क्योंकि हम अपने जीवन में छोटी-छोटी उपलब्धियों से संतुष्ट न होकर तनाव के बोझ को खुद ही आमंत्रण कर लेते हैं। मनोविशेषज्ञ बताते हैं कि जब हम अपने कार्यों में रुचि नहीं लेते, अपने कार्य इस तरह करते हैं, जैसे किसी ने इन कार्यों को पूरा करने का भार हम पर थोप दिया हो, तो कार्यों को करने में अरुचि व उत्साह हीनता आ ही जाती है।
वर्तमान की उपेक्षा भी हमारे हंसी-खुशी के लिए बाधक है। विशेषज्ञ कहते हैं वर्तमान हमारी अनमोल, परंतु गतिशील सम्पत्ति है। जितना हम इसका उपयोग करेंगे, उतनी ही मात्र में हमारा सौभाग्य जगता है, अन्यथा हमारे पास वर्तमान होकर भी हमारे किसी काम का नहीं है।
दूसरे शब्दों में कहें तो जब तक जीवन है, केवल तब तक ही वर्तमान की सम्पत्ति हमारे पास है, इसके बाद नहीं। हम हैं कि अक्सर वर्तमान का उपयोग न करके तनाव भरी जिंदगी जीते हैं। समझदार वही है, जो वर्तमान के महत्व को न केवल समझते हैं, बल्कि इस अमूल्य सम्पदा का उपयोग करके हल्की-फुलकी, हंसी-खुशी भरा तनावमुक्त जीवन जीते हैं।
आइये! हम सब वर्तमान का स्वागत करें और जीवन को हंसी खुशी से भर लें। वर्तमान से जुड़कर हम जीवन की कलात्मकता से जुडें और जीवन को तनाव-घुटनभरी अनिश्चितता का शिकार बनने से बचायें।