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बुराई पर अच्छाई की जीत ‘दशहरा पर्व’ ध्यान गुरु डाॅ. अर्चिका दीदी

बुराई पर अच्छाई की जीत ‘दशहरा पर्व’ ध्यान गुरु डाॅ. अर्चिका दीदी

The victory of good over evil | Dr Archika Didi

भारतवर्ष प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों का देश रहा है। इस देश में अनेक चमत्कार हुए हैं। ऋषि-मुनि तपस्या में इतने लीन हो जाते थे कि उनको खाने-पीने, सर्दी-गर्मी-बरसात तथा जंगली जानवरों की भी कोई चिन्ता नहीं होती थी। वे इतनी घोर तपस्या करते थे कि भगवान को भी उनकी तपस्या के आगे झुकना पड़ता था तथा भगवान उनके सामने प्रकट होकर उन्हें वरदान देते थे। यह इस देश में इसलिए सम्भव हो सका, क्योंकि यहाँ लोगों में सत्यता, कत्र्तव्यपरायणता और परोपकार की भावना कूट-कूट भरी हुई है। आज भी जो लोग सच्चे हृदय से भगवान पर श्रद्धा रखते हुए उनकी भक्ति में तल्लीन होते हंै, उनका आत्मबल बढ़ जाता है और वे दिव्यता को प्राप्त कर लेते हैं। उनके मुखमण्डल में यह दिव्यता साफ झलकती है।

अनेकता में एकता समाए हुए है भारत देश:

भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर विभिन्न धर्मों, भाषाओं, संस्कृतियों और परम्पराओं को मानने वाले लोग रहते है। इसलिए भारत में अनेकता में एकता दिखाई देती है। भारत मेले और उत्सव के लिए विश्व भर में विख्यात है। यहाँ पर प्रत्येक धर्म के लोग पर्वों को बड़े हर्षाेल्लास के साथ मनाते हैं तथा एक दूसरे के त्योहारों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

असत्य पर सत्य की विजय:

भारत के प्रत्येक भाग में दशहरे का त्योहार बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। भारत सरकार ने इस उत्सव पर राजपत्रित अवकाश घोषित किया है। यह उन दिनों की बात है जब लंका के असुर राजा रावण का अत्याचार चारों तरफ इस कदर बढ़ गया था कि वह अपने आपको भगवान समझने लगा था। इसी अहंकार के कारण रावण ने प्रभु श्रीराम की आर्या माता सीता का हरण कर लिया था और उन्हें वापस देने के लिए तैयार नहीं था। भगवान राम माता सीता के वियोग में बहुत दुःखी हो गए थे। उन्होंने हनुमान की वानर सेना और लक्ष्मण के साथ मिलकर रावण को युद्ध में परास्त कर दिया था। इस उत्सव की शुरुआत हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा उस दिन से हुई, जब भगवान श्रीराम ने लंका के राजा रावण को दशहरे के दिन मार गिराया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है।

पापों से मुक्ति का पर्व दशहरा:

इस पर्व को विजयादशमी के नाम भी जाना जाता है क्योंकि आश्विन शुक्ल दशमी को ही रावण का वध किया गया था। दशहरे के दिन को इतना शुभ माना जाता है कि प्राचीन काल के राजा भी इसी दिन विजय की प्रार्थना कर रणक्षेत्र के लिए प्रस्थान करते थे। दशहरे का पर्व दस प्रकार पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी जैसे अवगुणों को छोड़ने की प्रेरणा देशवासियों को देता है।

कृषि उत्सव पर्व दशहरा:

भारत कृषि प्रधान देश है। भारत के लोग धरती को धरती माता के नाम से पुकारते हैं। यह धरती से ही नर-नारी, पशु-पक्षी, जानवर आदि अपना जीवन-यापन करते हैं। यदि धरती नहीं होती को हमारा जीवन जीना असम्भव हो जाता। मनुष्य या किसी भी जीवन प्राणी को जीने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज अनाज, पानी, हवा, पेड़-पोधे और शुद्ध वातावरण है, जो हमें धरती से प्राप्त होता है। भारत का किसान अपने खेतों से सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी सम्पत्ति जब अपने घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का कोई ठिकाना नहीं रहता। वह इसे भगवान की कृपा मानता है और अपनी भावना प्रकट करने के लिए वह दशहरे के दिन पूजन करता है और भगवान को कोटि-कोटि धन्यवाद देता है।

दशहरा त्योहार को दुर्गोत्सव भी कहते है:

पूजनीय धर्मग्रन्थ रामायण में ऐसा लिखा है कि देवी दुर्गा को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए राजा राम ने चंडी होम कराया था। राजा राम युद्ध की देवी दुर्गा के भक्त थे, इसलिए राजा राम ने नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की थी तथा दसवें दिन रावण को मारने का राज जानकर उस पर विजय प्राप्त की थी। रावण को मारने के बाद माता सीता को वापस पाया था। दशहरा को दुर्गोत्सव भी कहा जाता है क्योंकि उसी दसवें दिन माता दुर्गा ने भी महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था।

भारत के अनेक क्षेत्रों में रामलीला का आयोजन:

भारत में अधिकतर इलाकों में रामलीला का नाटकीय मंचन किया जाता है जिसे देखने के लिए नर-नारी, बूढ़े-बच्चे रामलीला का मंचन देखने के लिए जाते हैं और भरपूर मनोरंजन करते हैं। इस अवसर पर मेलों के आयोजन भी किए जाते हैं, जिनमें बच्चों के लिए झूले आदि लगाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त खाने-पीने एवं मनोरंजन हेतु अनेक प्रकार के स्टाॅल लगाए जाते हैं।

दशहरे पर विराट् मेले का आयोजन:

देश के विभिन्न इलाकों में दशहरे वाले दिन विराट् मेलों को आयोजन किया जाता है, इस दिन रावण, मेघनाथ एवं कुम्भकरण का पुतला जलाया जाता है। इस पुतले को आग के हवाले करने के लिए गणमान्य व्यक्तियों को बुलाया जाता है तथा उन्हीं के द्वारा पुतलों में आग लगाई जाती है और भारी मात्रा में आतिशबाजी की जाती है जिसे देखकर भारत के लोग आनन्दित हो उठते है। मेला देखने के लिए लोग अपने परिवार, दोस्तों के साथ आते हैं और खुले आसमान के नीचे मेले का भरपूर आन्नद लेते हैं। मेले में विभिन्न प्रकार की वस्तुएं, खिलौने, चूडियाँ, कपड़े, झूलने के लिए अनेक प्रकार के झूले, खाने-पीने के लिए अनेक प्रकार के व्यंजनों के स्टाल लगाए जाते हैं जिसमें सभी कुछ न कुछ खरीदते है और खाते-पीते है। लोग अगले दशहरे का इन्तजार करने के लिए अपने घर वापस खुशी-खुशी लौट जाते हैं।

निष्कर्ष:

आज के इस आधुनिक युग में हमारे चारों तरफ अहंकारी, विश्वासघाती, घूसखोर, दगाबाज, बलात्कारी और अपना हित साधने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में फैले हुए है। इसलिए आज जरूरत आन पड़ी है कि भगवान राम के आदर्शों पर चलते हुए सबसे पहले हम अपने अन्दर के रावण का अन्त करें । रावण रूपी मानव पर विजय पाने के लिए हमें पहले खुद राम बनना होगा। हम लोग बाहर रावण का पुतला तो जलाते हैं लेकिन अपने अन्दर रावणत्व को पालते हैं। जब भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की वह काल सतयुग था परन्तु आज कलयुग है जिसमें प्रत्येक घर में रावण मौजूद हंै।
इसलिए रावण पर विजय प्राप्त करने में अनेकों कठिनाइयों का सामने करना पडे़गा। प्रत्येक मनुष्य को इस दिन अपने अन्दर के रावण पर विजय प्राप्त कर हर्षोंल्लास के साथ इस त्योहार को मनाना होगा। जिस प्रकार अन्धकार का नाश करने के लिए एक दीपक ही काफी होता है, वैसे ही अपने अन्दर के रावण का विनाश करने के लिए एक श्रेष्ठ सोच ही काफी है। आज हमें अपने संस्कारों, ज्ञान, कत्र्तव्यपरायणता, ईमानदारी, लगन और अपनी इच्छा शक्ति से जितने भी गलत कार्य हैं, उनसे दूर रहकर इस समाज और राष्ट की सेवा करनी है। हमें अपने अन्दर पाप, काम, क्रोध, मोह, लोभ, घमण्ड, स्वार्थ, जलन, अहंकार, अमानवता और अन्याय को घुसने नहीं देना है और सत्कर्म की ओर अपने आपको ले जाना है।