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भैया दूज – भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व है

भैया दूज – भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व है

भैया दूज - भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व है

भैया दूज का पर्व भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का पर्व है। इस पर्व को बड़ी श्रद्धा-भक्ति और निःस्वार्थ प्रेम के रूप में मनाया जाता है। रक्षाबन्धन के अलावा भाई दूज ऐसा दूसरा त्योहार है, जो भाई बहन के अगाध प्रेम को समर्पित है।

भैया दूज – भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व है – भारतवर्ष संवेदनशील देश है, यहाँ के लोग संयुक्त परिवार के साथ रहना पसन्द करते हैं। संयुक्त परिवार में रहने से मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ्य रहा जा सकता है। परिवार में आपसी प्यार, दुलार, मीठी नोक-झाेंक होती है, लेकिन आपसी मन-मुटाव नहीं होता। इस कड़ी में भाई-बहन का प्यार बड़ा अनूठा होता है। बहिन अपने भाई के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहती है, वह अपने भाइयों की पूरी देखभाल करती है। खुद भूखी रहकर भाइयों को खाने के लिए देती है, अपने हिस्से की कितनी भी कीमती चीज हो, वह भाइयों को खुशी-खुशी दे देती है।

सनातन धर्म के सबसे बड़े त्योहार दीपावली के तीसरे दिन भैया दूज का पर्व मनाया जाता है। भैया दूज को ‘यम द्वितीया’ के नाम से भी जाना जाता है। भैया दूज का पर्व भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का पर्व है। इस पर्व को बड़ी श्रद्धा-भक्ति और निःस्वार्थ प्रेम के रूप में मनाया जाता है। रक्षाबन्धन के अलावा भाई दूज ऐसा दूसरा त्योहार है, जो भाई बहन के अगाध प्रेम को समर्पित है।

भैया दूज को मनाने का तरीका:

भाई दूज के दिन विवाहिता बहनें अपने भाई को भोजन के लिए अपने घर पर आमंत्रित करती है। बहन-भाई का प्यार अटूट होता है, विवाहिता बहन अपने भाई को तिलक लगाकर, उपहार देकर उसकी लम्बी उम्र की कामना करती है। भारतवर्ष अनेकता में एकता लिए बहुत बड़ा देश है, देश के प्रत्येक राज्य में अलग तरह से भाई दूज से जुड़ी कुछ मान्यताएँ हैं, जिनके आधार पर अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग-अलग तरह से मनाया जाता है।

कथा-भैया दूज की

ऐसा कहा जाता है कि सूर्यदेव की पत्नी छाया की कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। देवी यमुना अपने भाई यमराज से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें। परन्तु यमराज इतने अधिक व्यस्त रहते थे कि वे अपनी देवी यमुना की बात को टाल जाते थे। इस बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को देवी यमुना अपने द्वार पर अचानक अपने भाई यमराज को खड़ा देखकर हर्ष-विभोर हो गई। अपने हृदय को काबू में करते हुए, प्रसन्नचित्त मुद्रा में अपने भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा उसको भोजन करवाया। अपने बहन देवी यमुना के हाथों का स्वादिष्ट भोजन करके यमराज बड़े प्रसन्न हो गये और उन्होंने अपनी बहन से वर मांगने को कहा।

बहन यमुना तो अपने भाई के दर्शन को तरसती रहती थी, तो उसने अपने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहाँ भोजन करने आया करें तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए, उसे आपका भय न रहे। यही आशीर्वाद आप दीजिए। यमराज ‘तथास्तु‘ कहकर यमपुरी चले गए। ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं, उन्हें तथा उनकी बहन को यम का भय नहीं रहता।

वर्तमान परिवेष में भाई-दूज का पर्व:

आज व्यस्तता का समय है, हर किसी के पास समय का अभाव है। इसलिए इस अभाव के कारण भाई-दूज की परिपाटी भी धीरे-धीरे बदलते जा रही है। अब भी विवाहित बहनें अपने भाइयों के घर मिठाई, नारियल आदि लेकर जाती हैं और भाई के घर पर जाकर ही भाई को तिलक लगाती हैं। भाई बहिन को उपहार स्वरूप कुछ न कुछ देता है और घर में एक खुशी का माहौल बन जाता है।

निष्कर्ष:

यह देखा गया है कि भाई-बहन का प्रेम एक बेहद सच्चा प्रेम है। भाई-बहन के प्यार में कोई बनावट नहीं होती क्योंकि वे बचपन से ही एक दूसरे के दुःख-दर्द में सहभागी बनते रहे हैं। आज के इस स्वार्थी युग में हम आशा करते हैं कि भाई-बहन का ये प्यार हमेशा जागृत रहे।
भैया दूज के अवसर पर विश्व जागृति मिशन एवं डाॅ. अर्चिका फाउण्डेशन की ओर से समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ।